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गणेश चतुर्थी में बप्‍पा के 12 प्रसिद्ध मंदिरों के करें दर्शन

हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। भाद्रपस मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाते हैं। सभी देवों में प्रथम आराध्य देव श्रीगणेश की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने का त्योहार इस साल 10 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस मौके पर भगवान गणेश के दर्शन के लिए लोग विभिन्न मंदिरों में जाते हैं। यहां हम आपको गणपति बप्‍पा के 12 प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करा रहे हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई

पहले स्थान पर है मुंबई का प्रसिद्ध श्री सिद्धिविनायक मंदिर। सिद्धिविनायक मन्दिर मुम्बई स्थित एक प्रसिद्ध गणेशमन्दिर है। सिद्घिविनायक, गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्धिविनायक मंदिर कहलाते हैं। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरन्त पूरा करते हैं। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं।

सिद्धि विनायक का यह विग्रह चतुर्भुजी है, उनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल, बाएं हाथ में अंकुश, नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला तथा बाएं हाथ में मोदक से भरा पात्र है। धन और ऐश्वर्य की प्रतीक श्री गणपति की दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि उनके दोनों ओर विराजमान हैं, जो कि सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वालीं हैं। मस्तक पर अपने पिता भगवान शिव के समान तीसरा नेत्र शिशोभित कर रहा है, और गले में हार के स्थान पर एक सर्प लिपटा हुआ है। सिद्धि विनायक का यह विग्रह ढाई फीट ऊंचा एवं दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना हुआ है।

रणथंभौर गणेश मंदिर, राजस्‍थान

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर है. इसे रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। सबसे बड़ी खासियत यह यहां आने वाले पत्र। घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरदास भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं। कहते है यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है।

त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए। गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे—पीछे सब जगह खोद दिया। कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। तब गणेशजी हर मंगल कार्य करने से पहले पूजते है। कुष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है। मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।

श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे

श्री दगडूशेठ हलवाई गणपती भक्तों के लाडले भगवान हैं । श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपती को पुणे शहर के गौरव का उच्चतम स्थान माना जाता है । हर साल भारत भर के और देश विदेशों के अनगिनत भक्त इस भगवान के दर्शन पाने के लिये आते हैं। श्री दगडूशेठ हलवाई गणपती यह मंदिर भक्तों के आदर और भक्ती का स्थान तो है ही, पर इतना ही नहीं, बल्कि समाज-सेवा और संस्कृति-संवर्धन के लिए प्रयत्नशील रही हुई एक महत्त्वपूर्ण संस्था के रूप में भी लोग इसे जानते हैं। ’श्री दगडूशेठ हलवाई गणपती मंदिर ट्रस्ट’ इस नाम से यह संस्था कार्यरत है। मंदिर के ट्रस्‍ट देश भर के सबसे अमीर ट्रस्‍टों में से एक है।

गणेश टोक मंदिर, गंगटोक

गंगटोक में गणेश टोक एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, यह एक छोटा मंदिर है जो हिंदू देवता भगवान गणेश को समर्पित है और पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर गंगटोक के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह अपनी सुंदरता और उत्कृष्ट स्थान के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के इस स्थान पर गणेश का यह मंदिर पर्यटकों के लिए एकआस्था का केंद्र है। आप यहां से कंचनजंगा पहाड़ी का विहंगम दृश्य देख सकते हैं, यह बेहतर होगा कि आप यहां सुबह के समय आएं। गणेश टोक का मनोरम दृश्य बर्फ से ढके पहाड़ों का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।

गणेश टोक बहुत छोटे, रंगीन झंडे बाहर सीढ़ियों में बंधे हैं, जो इसकी सुंदरता को बढ़ाते हैं। यह पवित्र गणेश टोक पहाड़ों, प्राकृतिक परिदृश्य और खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है। गंगटोक के दौरे पर रहते हुए, इस मंदिर में परिवार और दोस्तों के साथ आएं।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर

राजस्थान के जयपुर में मोती डूंगरी गणेश मंदिर है। मंदिर की गणेश प्रतिमा 1761 में जयपुर के राजा माधौसिंह की रानी के पैतृक गांव मावली (गुजरात) से लाई गई थी। 1761 से पहले भी इस प्रतिमा का इतिहास 500 सालों से ज्यादा पुराना माना जाता है। मोती डूंगरी गणेश के प्रति जयपुर के लोगों की गहरी आस्था है। गणेश चतुर्थी, नवरात्र, दशहरा और दीपावली पर यहां विशेष उत्सव होते हैं और इस दौरान लोग बड़ी संख्या में नए वाहन लेकर यहां आते हैं और पूजन करवाते हैं। सामान्य तौर पर गणेश उत्सव के दौरान यहां 50 हजार से ज्यादा लोग प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं।

गणपतिपुले मंदिर, रत्‍नागिरी

महाराष्‍ट्र के रत्‍नागिरी में स्थित इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति का मुख उत्तर के बजाए पश्चिम दिशा में है। स्‍थानीय निवासियों का मानना है कि मंदिर में किसी ने प्रतिमा की स्‍थापना नहीं की है, बल्कि यह स्‍वयं प्रकट हुई है।

रॉकफोर्ट उच्ची पिल्लयार मंदिर, तमिलनाडु

तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (त्रिचि) में रॉकफोर्ट नामक पहाड़ी के सबसे उपर स्थित उच्ची पिल्लयार मंदिर बहुत ही प्राचीन माना जाता है। इससे जुड़ी एक मान्यता है कि यहां रावण के भाई विभीषण ने एक बार भगवान गणेशजी पर वार किया था। कथा अनुसार राम ने उन्हें विष्णु की मूर्ति लंका में विराजमान करने के लिए दी थी और शर्त यह कि ले जाते वक्त भूमि पर न रखें अन्यथा ये मूर्ति वहीं विराजमान हो जाएगी। इधर, देवता लोग नहीं चाहते थे कि यह मूर्ति राक्षस राज्य में विराजमान हो तब उन्होंने गणेशजी को पाठ पढ़ा दिया। बिचारे गणेश जी एक बालक का वेशधारण करके विभीषण के पीछे हो लिए। रास्त में विभीषण ने सोच थोड़ा स्नान ध्यान कर लिया जाए। उन्होंने उस बालक को देखकर कहा कि ये मूर्ति संभालों इसे नीचे मत रखना मैं अभी नदी में स्नान करके आता हूं।

बालरूप में गणेशजी ने वह मूर्ति ले ली और उनके जाने के बाद भूमि पर रख दी और जाकर उक्त पहाड़ी पर छुप गए। जब वि‍भीषण को पता चला तो दिमाग खराब हो गया वह उस बालक को ढूंढते हुए उसी पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गए जहां उन्होंने उस बालक को देखकर उसके सिर पर प्रहार किया। तब गणेशजी अपने असली रूप में प्रकट हो गए तो यह देखकर विभीषण पछताए और उन्होंने क्षमा मांगी तभी से इस चोटी पर गणेशजी विराजमान हैं। हालांकि इसका संबंध 7वीं शताब्दी से बताया जाता है। 273 फुट की ऊंचाई पर बसे इस मंदिर में 400 के लगभग सीढ़ियां हैं।

कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर

आंध्रप्रदेश में चित्तूर जिले के इरला मंडल में कनिपकम गणेश मंदिर है। इस मंदिर को पानी के देवता का मंदिर भी कहा जाता है। तिरुपति जाने वाले भक्त पहले इस मंदिर में गणेश के दर्शन करते है। मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चोल राजा कुलोठुन्गा चोल प्रथम ने करवाया था। इसके बाद विजयनगर के राजा ने 1336 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर की मूर्ति के संबंध मान्यता है कि इसका आकार बढ़ रहा है। हर साल यहां मूर्ति कुछ रत्ती बढ़ जाती है। ये प्रतिमा काले ग्रेनाइट की एक बड़ी चट्टान को ही तराश कर बनाई गई है।

मनकुला विनायगर मंदिर, पुडुचेरी

भारत के दक्षिण में पुडुचेरी में मनाकुला विनायगर मंदिर स्थित है। यहां मान्यता प्रचलित है कि सन् 1666 में यहां कुछ फ्रांसीसियों का एक दल आया था, मंदिर का इतिहास उससे भी पहले का है। मंदिर में चित्रों में गणेशजी से जुड़ी कथाएं अंकित की हुई हैं। शास्त्रों में बताए गए गणेश के 16 स्वरूपों के चित्र भी यहां हैं।

मंदिर का मुख समुद्र की ओर है। इसीलिए, इसे भुवनेश्वर गणेश भी कहते हैं। कहा जाता है कि फ्रांसीसी लोगों ने इस मंदिर की प्रतिमा को कई बार समुद्र में फेंका, लेकिन हर बार ये प्रतिमा किनारे पर मिलती।

तमिल में मनल का मतलब बालू रेत और कुलन का मतलब सरोवर होता है। पुराने समय में गणेश प्रतिमा के आसपास ढेर सारी बालू रेत थी, इसलिए इन्हें मनाकुला विनायगर गणेश कहा जाने लगा। मंदिर की सजावट में सोने का उपयोग किया गया है।

मधुर महागणपति मंदिर, केरल

केरल की मधुरवाहिनी नदी के किनारे पर मधुर महागणपति मंदिर स्थित है। इसका इतिहास 10वीं शताब्दी का माना जाता है। उस समय यहां सिर्फ शिवजी का मंदिर था, लेकिन बाद में ये गणेशजी का प्रमुख मंदिर बन गया। मान्यता है कि जब ये शिवजी का मंदिर था, तब यहां पुजारी के साथ उनका बेटा भी रहता था। एक दिन पुजारी के बेटे ने मंदिर की दीवार पर गणेशजी का चित्र बना दिया। कुछ समय बाद चित्र का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगा और चित्र मूर्ति जैसा दिखने लगा। दीवार पर चमत्कारी रूप से उभरी इस प्रतिमा को देखने के लिए लोग आने लगे। दीवार पर उभरी प्रतिमा की वजह से ये शिव मंदिर की जगह भगवान गणेश का मंदिर बन गया। ये मंदिर भगवान गणेश का बेहद खास मंदिर हो गया।

श्री डोडा गणपति मंदिर, बेंगलुरु

डोड्डा बसवन्ना गुड़ी में स्थित यह मंदिर बेंगलुरु के प्रसिद्ध में मदिरों में से एक है। यहां आने वाले पर्यटकों और आगंतुकों संख्या में हर साल वृद्धि होती है।

डोडीताल, उत्तराखंड

उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेशजी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर हैं जहां गणेशजी अपनी माता के साथ विराजमान हैं। डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्‍याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्‍म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि केलसू, जो मूल रूप से एक पट्टी है (पहाड़ों में गांवों के समूह को पट्टी के रूप में जाना जाता है) का मूल नाम कैलाशू है। इसे स्‍थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं। केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है।

गणेश भगवान को स्‍थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है। मान्यता अनुसार डोडीताल क्षेत्र मध्‍य कैलाश में आता था और डोडीताल गणेश की माता और शिव की पत्‍नी पार्वती का स्‍नान स्‍थल था।

स्‍वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्‍वामी तपोवन ने मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण के हवाले से अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्‍मस्‍थल होने की बात लिखी है। वैसे कैलाश पर्वत तो यहां से सैंकड़ों मील दूर है परंतु स्थानीय लोग मानते हैं कि एक समय यहां माता पार्वती विहार पर थी तभी गणेशजी का जन्म हुआ था।

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