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जानें बारिश के मौसम में एलर्जी से बचाव के उपाय और सही उपचार…

अक्सर हम एलर्जी को बदलते मौसम से जुड़ी परेशानी मानकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन कई बार यह गंभीर रूप ले लेती है। बारिश में वातावरण में नमी के साथ गर्मी भी रहती है। इसके साथ ही कुछ परागकण भी वातावरण में मौजूद रहते हैं। नमी व गर्मी के कारण विषाणुओं की भी सक्रियता बढ़ जाती है। पर्यावरण इतना दूषित हो चुका है कि धूल, धुआं आदि हर मौसम का हिस्सा बन चुके हैं। इसके साथ ही पालतू पशु भी एलर्जी के वाहक होते हैं। कई बार कुछ एलोपैथिक दवाओं का सेवन भी एलर्जी का कारण बनता है। किसी भी तरह की एलर्जी से ग्रसित हों तो अनदेखी करने के बजाय उपचार कराएं और इस बात का भी ध्यान रखें कि आपको जिस चीज से एलर्जी है, उससे बचना है।

नाक की एलर्जी (एलर्जिक राइनाइटिस) : एलर्जिक राइनाइटिस या नाक की एलर्जी मौसमी या बारहमासी (पूरे साल) हो सकती है। हालांकि इसका प्रकोप बदलते मौसम में परागकणों के कारण अधिक होता है। इसमें नासिका वायुमार्ग में सूजन आ जाती है। छींक, नाक में खुजली तथा नाक का बंद होना आदि समस्याएं होती हैं। कुछ मामलों में इसके कारण साइनस में सूजन आ जाती है, जिसे चिकित्सकीय भाषा में साइनूसाइटिस कहते हैं। बच्चों में एलर्जी की परेशानी यदि लंबे समय तक रहती है तो कान में दर्द, कम सुनाई देना और बहरेपन की दिक्कत हो सकती है।

बचाव-उपचार: नाक की एलर्जी भविष्य में अस्थमा का कारण बनती है। इससे बचने के लिए धूल व मिट्टी वाले वातावरण से दूर रहें। नाक का स्प्रे व एंटी एलर्जिक दवाओं का प्रयोग इसके नियंत्रण में कारगर है। इससे बचने के लिए घर को साफ रखें और पालतू पशुओं से दूर रहें।

आंख की एलर्जी (एलर्जिक कंजक्टीवाइटिस): आंखों में होने वाली एलर्जी को कंजक्टीवाइटिस भी कहते हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब संक्रमण आंख की ऊपरी सतह पर स्थिति झिल्ली कंजक्टाइवा को प्रभावित करता है। इसके कारण आंखों से पानी आना, खुजली, लाली, सूजन और जख्म की समस्या हो सकती है। इससे बचाव के लिए धूप के चश्मे का प्रयोग करें और धूल, मिट्टी व पालतू जानवरों से दूरी बनाकर रहें। अच्छा रहेगा कि समय पर चिकित्सक को दिखाएं।

बचाव-उपचार: आंख की एलर्जी के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह से आर्टीफीशियल टीयर्स, एंटी एलर्जिक ड्राप्स आदि का प्रयोग करना चाहिए। आंख बहुत संवेदी अंग है। इसलिए खुद से किसी तरह की दवा का प्रयोग न करें।

त्वचा की एलर्जी (एटापिक डर्मेटाइटिस) : एटापिक डर्मेटाइटिस भी एलर्जी का एक प्रकार है। इसे कांटैक्ट डर्मेटाइटिस भी कहते हैं। इसके होने की आशंका उन लोगों में ज्यादा होती है, जिनके परिवार के अन्य सदस्यों में इसके लक्षण देखे जाते हैं। यह एलर्जी बचपन में अधिक होती है, लेकिन उम्र बढ़ने पर तीव्रता कम होने लगती है। इसके लक्षणों में दर्द, खुजली, खुश्की, छाले पड़ना, छालों से पानी निकलना, जलन होना आदि शामिल हैं। एटापिक डर्मेटाइटिस के कारकों में पर्यावरण प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण व धूमपान प्रमुख हैं। प्लास्टिक की चीजों, नकली आभूषण, कास्मेटिक्स का प्रयोग, जैसे बिंदी, पाउडर, परफ्यूम आदि से भी संक्रमण होता है।

बचाव-उपचार: इसके उपचार में त्वचा की नमी बढ़ाने वाले मरहम, खुजली की दवाएं, एंटीबायोटिक्स व फोटोथेरेपी का प्रयोग किया जाता है।

खाद्य एलर्जी (फूड एलर्जी) : फूड एलर्जी में प्रतिरक्षा तंत्र भोजन में शामिल किसी खास प्रोटीन के प्रति अतिसंवेदनशीलता प्रकट करता है। इस तरह के खाने की थोड़ी सी मात्रा से इसके लक्षण प्रकट होने लगते हैं। वैसे खाद्य एलर्जी का पता आमतौर पर कम उम्र में ही लग जाता है, पर कई बार इसके लक्षण किशोरावस्था या वयस्क होने पर स्पष्ट होते हैं। कुछ विशेष जांचों द्वारा इसका पता चलता है।

बचाव-उपचार: किसी भी प्रकार के फास्ट फूड का सेवन न करें। मांसाहार का सेवन करने से भी बचें। इसके साथ ही प्रिजर्वेटिव्स फूड्स अर्थात विभिन्न रासायनिक द्रव्यों से यळ्क्त डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का सेवन भी नहीं करना चाहिए। नाश्ते में अलग-अलग तासीर वाले और कई खाद्य पदार्थों को एक साथ मिलाकर न खाएं। उन दवाओं के खाने से भी परहेज करें, जिनसे एलर्जी की समस्या हो सकती।

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