परमात्मा “जगदीश ” के जीवन में आने से होता है, मंगल ही मंगल ।
बरेली : बाबा श्री नील कंठ मंदिर ट्रस्ट के वार्षिकोत्सव के पावन अवसर पर श्री हृदय बिहारी संकीर्तन परिवार के पावन तत्वाधान में कथा व्यास पंडित गोपाल कृष्ण मिश्रा जी के, सानिध्य में श्रीमद् भागवत महापुराण की पावन कथा के अंतर्गत आज कथा व्यास पंडित गोपाल कृष्ण मिश्रा ने बहुत ही दिव्य श्री रुक्मणी मंगल का पावन चरित्र वर्णन किया, भगवान के विवाह उत्सव का वर्णन किया, उससे पूर्व परमात्मा की महारास लीला का सुंदर वर्णन करते हुए कथा व्यास ने बताया कि परमात्मा प्रत्येक जीव के मनोरथ को पूर्ण करते हैं, जितनी भी गोपियां ब्रज मंडल में वास कर रही थी वह सभी को पूर्व जन्म के संत थे, जिन संतों के हृदय में भगवान के साथ महारास करने की इच्छा प्रकट हुई भगवान ने कृष्ण अवतार लेकर के उन संतों ने गोपियों का अवतार धारण किया, ब्रिज मंडल में और भगवान ने गोपियों के मनोरथ को पूर्ण करते हुए दिव्य महारास किया पूर्णचंद्र में भगवान महारास करते हैं, महारास क्या है जिसने अपनी इंद्रियों के रस को पान किया हो, जिसने उस परमात्मा के दिव्य लीला रस का इंद्रियों तत्व का पान किया हो, वह है महारास उसे को महारास कहा जाता है ,परमात्मा ने रुक्मणी मंगल का वर्णन किया भगवान ने श्री रुक्मणी जी के साथ विवाह नहीं किया रुकमणी जी के साथ उनके मंगल हेतु जीवन में प्रवेश किया परमात्मा जीवन में प्रवेश करते हैं तो जीवन में मंगल होता है अमंगल नहीं l
गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान को दिव्य भाव से पुकारते हैं “रामचरितमानस में मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी’ परमात्मा जो प्रत्येक जीव के जीवन में मंगल ही मंगल प्रदान करने वाले हैं ,ऐसे भगवान श्री कृष्ण भागवत कथा के विश्राम में पावन रुकम मंगल में ‘मेरी सखियों मुझे मेहंदी लगा दो मैं तो दुल्हन बनूंगी शाम की आदि भजनों के साथ सभी भक्तों ने आनंद की प्राप्ति की ।।
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