Uttar Pradesh

कानपुर: बुल्डोजर पहुँचने के बाद माँ-बेटी के झुलस कर मरने का पूरा मामला जानिए

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात का मड़ौली गाँव.

इसी गाँव के एक घर में बड़े बेटे की शादी की पहली सालगिरह पर माँ-बेटी बड़े उत्साह से 15 फ़रवरी को अखंड (पूजा की एक रस्म) कराने की तैयारी कर रही थीं. पर उन्हें क्या पता था कि इसी तारीख़ को उन दोनों की अर्थियां उठेंगी.

ख़ुशियों की जगह घर में मातम होगा. गाँव में लोगों की भीड़, पूजा के लिए नहीं बल्कि अफ़सोस जताने के लिए जुटेगी. आज इस घर के बाहर गाँव में पुलिस फ़ोर्स भारी संख्या में मौजूद हैं. माँ-बेटी के शव का अंतिम संस्कार जो होना है.

कानपुर देहात के मड़ौली गाँव में माँ-बेटी के शव 14 फरवरी को देर रात पोस्टमॉर्टम के बाद गाँव आ गए थे. रात के सन्नाटे के बीच रह-रहकर परिजनों की चीखें सुनाई पड़ रही थीं. पूरे गाँव में मातम का माहौल पसरा था.

क्या हुआ था 13 फ़रवरी को

यूपी के कानपुर देहात ज़िला मुख्यालय से क़रीब 25 किलोमीटर दूर मड़ौली गाँव में 13 फ़रवरी दिन सोमवार को दोपहर क़रीब तीन बजे एसडीएम मैथा ज्ञानेश्वर प्रसाद, रूरा एसओ दिनेश कुमार गौतम, क़ानूनगो, लेखपाल अशोक चौहान और पुलिस की टीम अतिक्रमण हटाने के लिए बुल्डोजर लेकर मड़ौली गांव कृष्ण गोपाल दीक्षित की झोपड़ी गिराने पहुँचे थे.

कृष्ण गोपाल दीक्षित का परिवार इसका विरोध कर रहा था. परिजनों ने बताया कि अभी इस ज़मीन का मामला कोर्ट में चल रहा है. इस पर अधिकारियों और परिवार के सदस्यों के बीच काफ़ी विवाद हुआ.

बाद में बात इतनी बढ़ गई कि माँ और बेटी आग की लपटों में जलने लगीं जिनकी चीखें उस भीड़ में किसी को सुनाई नहीं पड़ीं और कुछ ही देर में सब कुछ जलकर राख हो गया.

लेखपाल अशोक चौहान ने 14 जनवरी को एसडीएम से शिकायत की थी जिसमें कृष्ण गोपाल दीक्षित और उनके बेटे शिवम के ख़िलाफ़ केस दर्ज करवाया गया था.

उन्होंने एसडीएम को लिखे पत्र में लिखा था कि कानपुर देहात की गाटा संख्या 1642, रकबा 0.657 हेक्टेयर ग्राम सभा की संपत्ति है. जिस ज़मीन पर कृष्ण गोपाल दीक्षित ने अवैध कब्जे की नीयत से पिलर और छप्पर बना लिया है. इसी की कार्रवाई में यह कदम उठाया गया.

पहले परिजन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गाँव में बुलाने के बाद ही शव उठने की बात कह रहे थे.

घटना के 24 घंटे होने और ग्रामीणों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए प्राशासन ने उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो कॉल के ज़रिए बड़े बेटे शिवम से बात कराई.

उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने इस कॉल पर कहा, “ये घटना बहुत दुखी करने वाली है. जब से हमने सुना है, हम लगातार कार्रवाई करने के लिए काम कर रहे हैं. ज़िम्मेदार लोगों पर धारा 302 के तहत एफ़आईआर दर्ज हो गई है. दोषियों को हम कड़ी से कड़ी कार्रवाई करेंगे उनकी पुश्ते भी याद करेंगी. हम पूरी तरह से तुम्हारे साथ हैं. जो तुम्हारी मांगे हैं उसे हमें गंभीरता से लेंगे. हम इस घटना से जुड़े एक-एक व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा दिलाएंगे.”

अब क्या हैं हालात

घटनास्थल पर जली हुई राख के अलावा एक गैस सिलिंडर और कुछ एक बर्तन पड़े थे.

एक चारपाई पर कुछ बिस्तर रखे थे, पेड़ के नीचे इनकी दो गायें और उनके बछड़े बंधे हुए थे. सड़क से नीचे घुसते ही एक तरफ उखड़ा हुआ नल और दूसरी तरह शिव की मूर्ति और चबूतरा टूटा हुआ था. इसी शिव मूर्ति पर बेटे की शादी की पहली सालगिरह के मौके पर अखंड कीर्तन होना था.

एक साल पहले इसी घर में शादी की शहनाई बज रही थी. 16 फरवरी को एक साल पहले इस घर के बेटे की शादी हुई थी.

सूरज ढलने के साथ ही यहाँ पुलिस के कुछ सिपाही और कुछ एक मीडिया कर्मी बचे थे. जैसे-जैसे अँधेरा बढ़ता गया वैसे धीरे-धीरे कतारों में खड़ी गाड़ियों की संख्या कम होने लगी.

घटनास्थल से करीब एक किलोमीटर दूर मड़ौली गांव में पीड़ित परिवार का एक पक्का मकान बना है जिसमें ये लोग रहते हैं पर जानवरों के लिए उस जगह का इस्तेमाल करते थे जहाँ ये दर्दनाक घटना हुई.

लखनलाल कुशवाहा जिन्होंने आख़िरी बार नेहा और उनकी माँ को खाना लेते हुए जाते देखा था

पुलिस और प्रशासन का पक्ष

घटनास्थल पर मौजूद कानपुर देहात पुलिस अधीक्षक बाल गंगाधर तिलक संतोष मूर्ति ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “घटना कैसे हुई ये तो जांच का विषय है. हम लगातार पूछताछ और जांच कर रहे हैं. अगर संयम के साथ काम करते तो शायद ये बड़ा हादसा नहीं होता.”

”परिजनों के बताए अनुसार 8 लोगों की नामजद और कुछ अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कर ली गई है. जेसीबी चालक और लेखपाल को गिरफ़्तार कर लिया गया है. परिजनों की जो भी मांगे हैं उसे समयसीमा में पूरा किया जाएगा.”

किस अधिकारी के लिखित आदेश पर ये झोपड़ी गिराई गई?

इस सवाल के जवाब में एसपी बीबीजीटीएस ने कहा, “मुझे इसकी जानकारी नहीं है. पर जब एक महीने पहले इनका एक कमरा गिराया गया था तब इन्हें यह जगह खाली करने के लिए कहा गया था. मेरी यहां एक महीने पहले ही पोस्टिंग हुई है इसलिए अभी इस मामले की बहुत जानकारी नहीं है.”

वहीं ज़िलाधिकारी नेहा जैन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “मेरे आवास पर धरना दिया गया यह कहना ग़लत है. इन्होंने कलेक्ट्रेट में धरना दिया था जो एडीएम से कहकर हटवाया गया था. हमने अगले दिन जनसुनवाई में इन्हें सुना था.”

”अभी इस प्रकरण में एडीएम की अध्यक्षता में मैजिस्ट्रेट की जांच बैठ गई है. मेरी पीड़ित परिवार के साथ संवेदनाएं हैं लेकिन ये भी सच है कि धार्मिक स्थल बनाकर ग्राम सभा की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा किया जा रहा था. अवैध जमीन पर कब्जे की शिकायत हमें मिली थी जिसके बाद इन्हें एक महीने पहले सूचित किया गया था.”

क्या कह रहे हैं गाँव के लोग

गांव के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मैं अगर पुलिस-प्रशासन की ही बात मान लूं कि उन्होंने आग खुद लगाई तो वहां मौजूद अधिकारियों ने उन्हें बचाया क्यों नहीं? ऐसी परिस्थितियां क्यों बनाई गईं कि उन्हें आग लगाने की नौबत आ गई. एक वीडियो में मैंने देखा कि उसी वक़्त बुलडोजर से छप्पर गिरा दिया गया. कई अधिकारियों के सामने ये सब हुआ पर किसी ने कुछ नहीं किया. इसलिए ये पूरी तरह से हत्या है. सफाई में कोई कुछ भी कहे.”

बीबीसी से बातचीत में गाँव के लोगों ने लेखपाल पर घूसखोरी का भी आरोप लगाया, जिस पर प्रशासन की तरफ़ से कार्रवाई भी हुई है.

गाँव में घूम कर और स्थानीय लोगों की बातचीत से बीबीसी को पता चला कि पीड़ित परिवार ने घटनास्थल वाली जगह पर दिसंबर महीने में ही एक कमरा बनवाकर टीन सेड (छप्पर) डाला था जिसमें इनकी 20 से ज़्यादा बकरियां बंधती थीं.

बगल में प्लास्टिक की पन्नी और घास-फूस से झोपड़ी बना ली थी जहां 50 वर्षीय कृष्ण गोपाल दीक्षित और इनका 30 साल का बड़ा बेटा शिवम पशुओं की देखरेख के लिए सोते थे. मां और बेटी गांव में बने घर से खाना बनाकर सुबह-शाम यहां लेकर आती थीं.

मृतक के परिवार का आरोप

अपने चार महीने के बच्चे को झपकी देकर सुलाती 21 साल की शालिनी दीक्षित (शिवम दीक्षित की पत्नी) प्रशासन को रह-रहकर कोस रही थीं.

शालिनी घर की बड़ी बहू हैं, इनकी शादी के एक साल 16 फ़रवरी को पूरे होने को थे इसी उपलक्ष्य में इनके यहाँ 15 फ़रवरी को अखंड कीर्तन कराने की तैयारी चल रही थी.

शालिनी कहती हैं, “बुल्डोजर से झोपड़ी ही तोड़नी थी तो तोड़ देते पर हमारी मम्मी (सास) और दीदी (ननद) को क्यों जलाकर मार दिया? जब वो जल रही थीं तब वहाँ पर बहुत अधिकारी थे अगर उन्हें बचाने की कोशिश की होती तो वो बच जातीं. बचाना तो दूर उसी वक़्त उनके ऊपर बुलडोजर से छप्पर गिरा दिया जिसमें वो दब गईं. अब पुलिस कितनी भी कार्रवाई कर ले उन्हें वापस तो नहीं लौटा सकता. जब बचाना था तब बचाया नहीं.”

शालिनी पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहती है, “घटनास्थल पर पुलिस का पूरा फोर्स खड़ा है अब वहां उसकी क्या जरूरत है. अगर सुरक्षा करनी ही थी तो पुलिस के कुछ सिपाही रात में हमारे दरवाजे पर रहते कम से कम हमें डर तो नहीं लगता. अभियुक्त अशोक दीक्षित का घर मेरे घर के सामने ही है. दबंग परिवार है मुझे अब उनसे डर लग रहा है.”

घटनास्थल से क़रीब एक किलोमीटर दूर मड़ौली गांव में पीड़ित परिवार का घर है. वहीं शालिनी अपने घर में थी.

शालिनी बीते महीनों को याद करते हुए कहती हैं, “मेरे गहने बेचकर दिसंबर महीने में एक कमरा बनवाया गया था और कुछ बकरियां ख़रीदी गई थीं. प्रशासन ने 14 जनवरी को बुलडोजर से वो कमरा गिरा दिया. तभी घर के लोग जिलाधिकारी आवास पर धरने पर भी बैठे थे पर कोई सुनवाई नहीं हुई. 13 फरवरी को बिना किसी सूचना के बुलडोजर से झोपड़ी गिरा दी गयी. मम्मी और दीदी के साथ 22 बकरियां भी आग में जलकर मर गईं.”

मृतक नेहा अपने दो भाईयों (शिवम दीक्षित और अंश दीक्षित) की इकलौती दुलारी बहन थी. ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने के बाद से नेहा की शादी के लिए लड़का खोजा जा रहा था. दो तीन लड़के देखे थे जिसमें से अभी कहीं बात फिक्स नहीं हुई थी पर अप्रैल-मई में शादी होने की तैयारी थी.

नेहा की नानी 65 वर्षीय सरोज दुबे कहती हैं, “अब तो बुढ़ापा का एक-एक दिन भारी पड़ेगा. बेटी और जवान नातिन बेमौत मर गईं. पुलिस रक्षा करने के लिए होती है उन्होंने तो हमारा पूरा घर उजाड़कर विनाश कर दिया. खाते-कमाते थे. धन-दौलत तो थी नहीं ज़्यादा लेकिन जो था वो भी सब अब ख़त्म हो गया.”

मामले का मुख्य अभियुक्त कौन

पूरे मामले में मुख्य अभियुक्त अशोक दीक्षित का घर पीड़ित परिवार के ठीक सामने दो मंजिला बना हुआ है इनके दो बेटे फ़ोर्स में नौकरी करते हैं. परिवार आर्थिक रूप से संपन्न है. और वो ख़ुद खेती करते हैं.

कृष्ण गोपाल दीक्षित की बड़ी बहन 52 वर्षीय मंजू तिवारी बताती हैं, “अशोक हमारे परिवार के ही हैं. हमारा खानपान भी चलता था पर कुछ महीने पहले ये ज़मीन विवाद हुआ. तब से दोनों के बीच बोलचाल बंद है. अब इस घटना के बाद से उनसे डर भी लगने लगा है. पूरा परिवार अब कैसे रहेगा?

वो आगे कहती हैं, “कम से कम कुछ दिन के लिए तो पुलिस को इन लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए. शव उठने से पहले तक कह रहे थे कि आप लोगों को सुरक्षा मिलेगी. लेकिन आज तो घर में कोई आदमीं भी नहीं है फिर भी कोई सुरक्षा नहीं.”

शाम के करीब आठ बजे सुनसान हो गया था. बीबीसी ने अशोक दीक्षित के परिवार से भी संपर्क करने की कोशिश की. घर के बाहर ताला लगा था. गाँव वालों को नहीं मालूम कि अशोक दीक्षित का पूरा परिवार अब कहाँ है.

मृतक परिवार की माँगें

गाँव के लोग अभियुक्त से ज़्यादा लेखपाल और पुलिस प्रशासन से नाराज़ हैं जिनके सामने यह घटना घटी.

अपनी दुकान बैठे लखनलाल कुशवाहा कहते हैं, “मैंने माँ-बेटी को 13 फरवरी को दोपहर करीब डेढ़ बजे खाना ले जाते हुए देखा था. साढ़े तीन बजे घटना के बारे में सुनने को मिल गया. बहुत तकलीफदेह घटना है. गरीब परिवार था अगर ग्राम पंचायत की ज़मीन पर जानवर बाँध भी रह थे तो बातचीत करके यह मामला सुलझा लिया जाता. जब से परिवार ने जिलाधिकारी आवास धरना रखा था तबसे ही प्रशासन ज़्यादा नाराज़ था. लेखपाल व्यवहार कुशल नहीं हैं. जिसके पल्ला भारी उसी की बात ज़्यादा सुनते हैं.”

शव का अंतिम संस्कार करने के लिए परिवार किन मांगों के बाद राजी हुआ है इस पर कृष्ण गोपाल दीक्षित के बड़े भाई अरविन्द दीक्षित ने कहा, “बृजेश पाठक से बात हुई है उन्होंने दोनों बेटों को नौकरी, एक करोड़ रुपया, ज़मीन का पट्टा और सरकारी आवास देने की बात कही है. हमने तुरंत गिरफ़्तारी की भी मांग की है. चार दिन में सभी की गिरफ़्तारी हो जाएगी हमें ऐसा आश्वासन दिया गया है.”

गाँव में हर कोई इस घटना से डरा-सहमा था कि प्रशासन के सामने अगर इतनी बड़ी घटना हो गयी तो मदद की किससे उम्मीद की जाए.

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