Uttar Pradesh

पर्यावरण संरक्षण से बचेगा मानव जीवन

पर्यावरण की रक्षा एवं इसके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1972 में इसकी घोषणा की गई थी। इसके पश्चात 5 जून, 1974 को प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था तथा तबसे यह निरन्तर मनाया जा रहा है। पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ एवं ‘आवरण’ से मिलकर बना है अर्थात जो चारों ओर से घेरे हुए है।

मानव शरीर पंचमहाभूत से निर्मित है। पंचभूत में पांच तत्त्व आकाश, वायु, अग्नि,  जल एवं पृथ्वी सम्मिलित  है। सभी प्राणियों के लिए वायु एवं जल अति आवश्यक है। इसके पश्चात मनुष्य को जीवित रहने के भोजन चाहिए। भोजन के लिए अन्न, फल एवं सब्जियां उगाने के लिए भी मानव जाति के संरक्षण के लिए पर्यावरण की सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है। दिन-प्रतिदिन दूषित होते जल की ही आवश्यकता होती है। परन्तु पर्यावरण के प्रदूषित होने से मानव के समक्ष अनेक संकट उत्पन्न हो गए हैं। वर्षा अनियमित हो गई है। बहुत से कृषकों को अपनी फसल की संचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। पर्याप्त वर्षा न होने पर उनकी फसल सूख जाती है। अधिकांश क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर वर्षा नाममात्र की ही होती है। अत्यधिक रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग से उपजाऊ भूमि बंजर होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन एवं जल के अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में जल संकट बना हुआ है। लोग जल के लिए त्राहिमाम कर रहे हैं।  

भारतीय संस्कृति में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसी कारण भारत में प्रकृति के विभिन्न अंगों को देवता तुल्य मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। भूमि को माता माना जाता है। आकाश को भी उच्च स्थान प्राप्त है। वृक्षों की पूजा की जाती है। पीपल को पूजा जाता है। त्रिवेणी की पूजा की जाती है। त्रिवेणी में सभी देवी-देवताओं एवं पितरों का वास माना जाता है। त्रिवेणी तीन प्रकार के वृक्षों के समूह को कहा जाता है, जिसमें वट, पीपल एवं नीम सम्मिलित हैं। इनके पौधे त्रिकोणीय आकार में रोपे जाते हैं तथा जब ये सात फीट तक ऊंचे हो जाते हैं, तो इन्हें आपस में मिला देते हैं। इनका संगम ही त्रिवेणी कहलाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति त्रिवेणी लगाकर इसका पालन-पोषण करता है, तो पूण्य की प्राप्ति होती है तथा उसका कोई भी सात्विक कर्म विफल नहीं होता। पंचवटी की पूजा होती है। पंचवटी पांच प्रकार के वृक्षों के समूह को कहा जाता है, जिसमें वट, पीपल, अशोक, बेल एवं आंवला सम्मिलित है। इन्हें पांचों दिशाओं में रोपा जाता है। पीपल पूर्व दिशा में लगाया जाता है, जबकि, बरगद पश्चिम दिशा में, बेल उत्तर दिशा में तथा आंवला दक्षिण दिशा में लगाया जाता है। मान्यता है कि बरगद वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा का वास होता है तथा तने में विष्णु एवं डालियों में शिव वास करते हैं. इसके अतिरिक्त वृक्ष की लटकी हुई शाखाओं को देवी सावित्री का रूप माना जाता है। महिलाएं मनोकामना की पूर्ति के लिए वट की पूजा करती हैं। घरों में तुलसी को पूजने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। नदियों को माता मानकर पूजा जाता है। कुंआ पूजन होता है। अग्नि और वायु के प्रति भी लोगों के मन में श्रद्धा है। वेदों के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण पंचतत्व के योग से हुआ है, जिनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल एवं अग्नि सम्मिलित है।

इमानि पंचमहाभूतानि पृथिवीं, वायुः, आकाशः, आपज्योतिषि

पृथ्वी ही वह ग्रह है, जहां पर जीवन है। वेदों में पृथ्वी को माता और आकाश को पिता कहा गया है।

ऋग्वेद के अनुसार-

द्यौर्मे पिता जनिता नाभिरत्र बन्धुर्मे माता पृथिवी महीयम्

अर्थात् आकाश मेरे पिता हैं, बंधु वातावरण मेरी नाभि है, और यह महान पृथ्वी मेरी माता है।

अथर्ववेद में भी पृथ्वी को माता के रूप में पूजने की बात कही गई है। अथर्ववेद के अनुसार-

माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः

इतना ही नहीं वेदों में सभी जीवों की रक्षा का भी कामना की गई है। ऋग्वेद के अनुसार–

पिता माता च भुवनानि रक्षतः

जल जीवन के लिए अति आवश्यक है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

वेदों में जल को अमृत कहा गया है-

अमृत वा आपः

जल ही है, जो मनुष्य के तन और मन के मैल को धोता है। तन और मन को पवित्र करता है-

इदमाप: प्र वहत यत् किं च दुरितं मयि

यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वा शेष उतानृतम्

अर्थात हे जल देवता, मुझसे जो भी पाप हुआ हो, उसे मुझसे दूर बहा दो अथवा मुझसे जो भी द्रोह हुआ हो

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