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हाइड्रोजन ऊर्जा जैसे विकल्प में ही निहित है भविष्य, भंडारण की राह में आने वाली चुनौतियां

बीते दिनों देश के अनेक बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले की कमी के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ। ऐसे में हमें यह जानना चाहिए कि भारत में बिजली के उत्पादन का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से आता है। मालूम हो कि वर्ष 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन सरकारी कंपनियां ही करती हैं। दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में शामिल भारत आज कोयला संकट के कगार पर खड़ा है। चिंता जाहिर की गई है कि यदि समय रहते देश इस संकट से नहीं उबरा तो बड़े पैमाने पर बिजली कटौती हो सकती है। साथ ही आने वाले समय में कोयला आपूर्ति में कमी आने से कई राज्यों में औद्योगिक उत्पादन पर भी इसका असर पड़ सकता है।

हालांकि इस माह के आरंभ में जिस प्रकार से यह संकट गंभीर हो गया था, वह अब कम हो गया है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि अब सरकार ने बिजली उत्पादकों से कहा है कि वे आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए कोयला आयात करें। दरअसल वर्तमान में जिस प्रकार से कोयला संकट के हालात बने हैं उसके कई कारण हैं। वैसे माना यह भी जा रहा है कि इस बार बारिश का सीजन ज्यादा लंबा खिंचने के कारण कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ है, जिससे बिजली उत्पादन औद्योगिक मांग से तालमेल नहीं रख सका। ऐसे में हमें कोयले से अलग हरित ऊर्जा की ओर अधिक से अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा, क्योंकि आने वाले समय में कोयले का स्रोत निश्चित ही खत्म हो जाएगा।

आज स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते प्रयास को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन लागत प्रभावी हो सकता है, जो आने वाले समय में न केवल ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी देगा, बल्कि देश को ऊर्जा के मामले में धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायता करेगा। सर्वविदित है कि सरकार हरित ईंधन की दिशा में अनेक पहल और प्रयास कर रही है। हाल ही में सरकार ने कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले ईंधन के रूप में हाइड्रोजन को प्रमुखता देनी शुरू की है और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन भी शुरू किया जा चुका है।आज स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता पूरी दुनिया की अनिवार्यता बन गई है। यह भारत के लिए एक और कारण से भी महत्वपूर्ण है। देश में ईंधन की जितनी मांग है, उसका अधिकतर भाग हम आयात करते हैं, जिसके लिए देश को हर साल 160 अरब डालर खर्च करने पड़ते हैं। इससे विदेशी मुद्रा का बहिर्गमन होता है। हालांकि भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत और उत्सर्जन वैश्विक औसत के आधे से भी कम है। बता दें कि हम ग्रीनहाउस गैसों के दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को भारत की ऊर्जा पर्याप्तता और सुरक्षा लक्ष्यों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन शुरू करने की घोषणा की थी। स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री ने ऊर्जा स्वतंत्रता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा था कि इस योजना के तहत आने वाले समय में भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात के लिए एक ग्लोबल हब बनाना है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि भारत को अपनी आजादी के सौ साल पूरे होने से पहले ऊर्जा के क्षेत्र में स्वतंत्र बनने का संकल्प लेना होगा। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में देश में एडवांस बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और रोजगार के अवसर तैयार करने के लिए सौ लाख करोड़ रुपये की ‘गतिशक्ति योजना’ के शुरुआत की घोषणा की है।

पिछले महीने रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने उम्मीद जताई थी कि देश में एक दशक में ग्रीन हाइड्रोजन की लागत कम होकर एक डालर प्रति किलोग्राम हो जाएगी। इंटरनेशनल क्लाइमेट समिट 2021 में अंबानी ने कहा था कि शुरुआत में इसकी लागत को दो डालर प्रति किलोग्राम से कम करके ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे किफायती ईंधन का विकल्प बनाने के प्रयास चल रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत एक दशक के अंदर ग्रीन हाइड्रोजन के लक्ष्य को एक डालर प्रति किलोग्राम से भी कम कर सकता है, जिसके बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा। बहरहाल भारत में एक नई हरित क्रांति शुरू हो चुकी है। पुरानी हरित क्रांति ने तो भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया था। लेकिन अब इस नई हरित क्रांति से भारत को ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।

हरित ऊर्जा के लिए प्रयास : देश में हरित स्रोतों से प्राप्त हाइड्रोजन, जिसे ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है, उसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का कहना है कि उर्वरक कारखानों, तेल शोधन संयंत्रों और स्टील प्लांट में इसके उपयोग को जल्द ही अनिवार्य किया जाएगा। हाइड्रोजन का उपयोग करके ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। इंडियन आयल कारपोरेशन भी कुछ समय से इस मामले में सुधार प्रक्रिया को तेजी से अपना रहा है। इस ईंधन के उपयोग से सीएनजी चालित बसों से कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। हाइड्रोजन ईंधन अधिक कुशल और लागत प्रभावी है। इस मामले में एक अच्छी बात यह है कि बड़े पैमाने पर इनके आयात की भी आवश्यकता नहीं होगी।

आज देश में कचरे और बायोमास के जरिये बायोमीथेन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। लगभग 95 फीसद बायोमीथेन को सीएनजी ही माना जाता है। यह परिवहन के साधनों के लिए भी बेहद उपयुक्त ईंधन है। इसका दूसरा स्वरूप हाइड्रोजन मिश्रित सीएनजी होता है। निकट भविष्य में हाइड्रोजन ईंधन आटोमोबाइल के लिए एक अत्यंत आशाजनक विकल्प है। लागत-प्रभावी हरित हाइड्रोजन, तेल और इस्पात जैसे उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है। इससे देश कोयले पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे समाप्त कर सकता है और वर्तमान में उत्पन्न कोयला समस्या भविष्य के लिए संकट भी नहीं बनेगा।

हाइड्रोजन की क्षमता बहुत अधिक होती है और इससे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन लगभग शून्य है। ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक प्रसंस्करण, रसायनों के उत्पादन, लौह एवं इस्पात, खाद्य एवं सेमीकंडक्टर्स तथा शोधन संयंत्रों के क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए अच्छा विकल्प होगा। साथ ही पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता को कम करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में साथ मिलकर नवाचार को बढ़ावा देने की संभावनाओं का पता लगाना बहुत जरूरी हो गया है।

हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की राह में चुनौतियां भी कम नहीं। जहां तक तुलना की बात है तो एक किलो हाइड्रोजन में एक लीटर डीजल से करीब तीन गुना अधिक ऊर्जा होती है। परंतु हल्की होने के कारण सामान्य घनत्व पर एक किलो हाइड्रोजन को 11,000 लीटर जगह चाहिए, जबकि एक किलो डीजल को लगभग एक लीटर। इसके भंडारण और वितरण के लिए इसे विशेष टैंकों में संकुचित करके रखना होगा या फिर 250 डिग्री सेल्सियस ऋणात्मक दर पर तरल बनाना होगा। यह प्रक्रिया सीएनजी और एलपीजी के प्रबंधन से कहीं अधिक जटिल होती है।

बिजली की कीमत के अनुसार हरित हाइड्रोजन प्रति किलोग्राम 3.5 डालर से 6.5 डालर मूल्य पर उत्पादित हो सकती है और आने वाले समय में नई तकनीक के जरिये पहले दो और फिर इसे एक डालर प्रति किलो पर लाया जा सकेगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इसके भंडारण की होगी। हमें भंडारण की ऐसी सुविधा विकसित करनी होगी जिससे हाइड्रोजन ऊर्जा का वाणिज्यिक इस्तेमाल संभव हो सके। भविष्य में हरित हाइड्रोजन के कई लाभ होंगे, लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना होगा। साथ ही जो उद्यमी इस नए क्षेत्र में स्टार्टअप लाना चाहते हों, उन्हें जरूरी फंड जुटाने में सक्षम बनाना होगा। ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग के लिए अनुसंधान व विकास, भंडारण, परिवहन एवं मांग निर्माण हेतु हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में काफी अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।

हाइड्रोजन का उपयोग न केवल भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा, बल्कि यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा। इसलिए अब तेजी के साथ हाइड्रोजन के सभी संभव स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए। जीवाश्म ईंधन जैसे स्रोतों से इसकी खोज पहले ही की जा रही है। अन्य साधनों से भी इस ईंधन को ढूंढा जाना चाहिए, जिससे बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सके। हाइड्रोजन ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने के लिए हमें सर्वप्रथम हाइड्रोजन स्टेशन की एक सप्लाई चेन तैयार करनी होगी। सुरक्षा मानकों को पूरा करते हुए यदि हम इस दिशा में ठोस कदम उठा पाए तो पर्यावरण संरक्षण के साथ भारत के लिए आर्थिक तरक्की का नया द्वार हाइड्रोजन ऊर्जा के माध्यम से खुलेगा। साथ ही इससे ग्रीन हाउस गैसों में कटौती का लक्ष्य भी पूरा होगा। हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा माध्यमों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली के भंडारण के लिए भी बेहतर साबित हो सकती है। नतीजन ऊर्जा नीति की तैयारी भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार की अस्थिरता के प्रभाव से बचाने में मदद करेगी। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से भारत वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ते हुए अपनी ‘ऊर्जा लक्ष्य’ को अंतिम रूप देगा। इसी कारण से सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत भी की है।

बहरहाल सभी के लिए किफायती, विश्वसनीय, टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने के वैश्विक लक्ष्य के लिए लगभग दस वर्ष और बचे हैं, इसलिए मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करने तथा ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के नवाचारी उपायों की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा उत्पादन के लिए भविष्य में कोयले पर निर्भरता को धीरे धीरे पूरी तरह से खत्म किया जा सके।

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