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चीन से अगर हुई जंग तो क्या काम करेगा अमेरिका का ये प्लान?

अमेरिकी और जापानी नेताओं के बीच हुई मुलाक़ात में प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिकी फ़ौज की प्रतिबद्धता को एक बार फिर रेखांकित किया गया है.

यूएस मरीन कोर अमेरिकी फ़ौज का सबसे सम्मानजनक अंग है. पर इस कोर में इन दिनों एक कड़वाहट भरी बहस छिड़ी हुई है.

मरीन कोर के रिटायर वरिष्ठ कमांडर, मौजूदा जनरलों पर एक के बाद एक शब्द बाण चला रहे हैं. उन्हें अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित योद्धाओं की फौज में परिवर्तनों की कोशिश पर सख़्त एतराज़ है.

रिटायर योद्धाओं को फ़ोर्स डिज़ाइन 2030 नाम की योजना पर आपत्ति है. इस योजना का उद्देश्य अमेरिकी सेना के इस विशेष अंग को भविष्य में चीन के विरुद्ध किसी संभावित युद्ध के लिए तैयार करना है.

जब से इस योजना की बात शुरू हुई है, रिटायर जनरलों ने अप्रत्याशित ढंग से मीडिया में खुलकर इसकी आलोचना शुरू कर दी है. सेना के मामलों में रिटायर अधिकारी भी प्रेस से बात करने से गुरेज़ करते रहे हैं.

लेकिन इस बार रिटायर अधिकारी खुलेआम सेमिनारों में इस नए प्लान की धज्जियां उड़ा रहे हैं. वे इसे मरीन कोर के भविष्य के लिए डिज़ास्टर यानी तबाही बता रहे हैं.

अमेरिकी नेवी के एक पूर्व सचिव जिम वेब विएतनाम युद्ध में मरीन अधिकारी थे. वे साल 2015 में डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर राष्ट्रपति के नोमिनेशन के लिए चुनाव लड़े थे.

अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट में जिम वेब ने इसे ‘परिक्षण के अभाव वाली त्रुटिपूर्ण योजना’ बताया है.

उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज़ में ‘मरीन कोर की संरचना, हथियार प्रणाली और सैनिकों के स्तर में नाटकीय कमी’ के दीर्घकालिक जोखिम के बारे में गंभीर प्रश्न उठाए हैं.

क्यों ग़ुस्से में हैं रिटायर जनरल?

ये प्लान साल 2020 में मरीन कोर कमांडर डेविड बर्गर ने लॉन्च की थी. प्लान का मक़सद इंडो-पैसेफ़िक क्षेत्र में चीन के साथ संभावित युद्ध की स्थिति में अमेरिका के मरीन सैनिकों को तैयार करना है. इन सैनिकों ने अब तक इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान जैसे काउंटर इनसर्जेंसी युद्धों में ही हिस्सा लिया है.

इस योजना में मरीन सैनिकों को समुद्र के द्वीपों पर अलग-अलग यूनिट के रूप में लड़ना सिखाया जाएगा. ये यूनिट छोटे तो होंगे लेकिन नए हथियारों की वजह से इनकी मारक क्षमता बहुत अधिक होगी.

दूसरे विश्व युद्ध की तर्ज पर समुद्र किनारे ढेरों सैनिकों को उतारना या इराक़ में हुई तैनाती, अमेरिकी सेना के लिए एक अतीत की बात हो जाएगी.

योजना का सबसे विवादास्पद हिस्सा है पैदल सैनिकों की संख्या में कटौती और टैंकों का इस्तेमाल बिल्कुल बंद करना.

अमेरिका का मरीन कोर यूएस नेवी का ही एक अंग है, पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद ये एक अलग सर्विस के रूप में उभरा है. इसी कोर के सैनिकों ने इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं.

जनता की नज़र में मरीन कोर की साख बहुत कुछ दूसरे विश्व युद्ध से जुड़ी हुई है. हॉलीवुड फ़िल्मों ने भी अमेरिकी सेना की इस सर्विस पर कई फ़िल्में बनाई हैं. हाल ही में स्टीवन स्पीलबर्ग और टॉम हैंक्स ने ‘द पैसेफ़िक नाम’ की एक सीरिज़ भी बनाई है.

लेकिन नए प्लान में मरीन हॉलीवुड फ़िल्मों जैसे तो बिल्कुल नहीं लड़ेंगे.

आलोचकों का कहना है कि मरीन कोर में आने वाले परिवर्तनों का सबसे बड़ा असर इन सैनिकों को ज़रूरत पड़ने पर कहीं भी तैनात किए जाने की भूमिका पर पड़ेगा. क्योंकि अब मरीन कोर का मुख्य फ़ोकस चीन और इंडो-पैसेफ़िक हो जाएगा.

द पैसिफिक सिरीज़ का दृश्य

तो आख़िर इस प्लान में ऐसा क्या है?

  • पैदल फ़ौज में कटौती
  • कुछ बटालियन ख़त्म किए जाएंगे
  • तोपखाने की करीब 75 फ़ीसदी तोपों को लंबी दूरी तक मार करने वाले रॉकेट सिस्टम से बदला जाएगा
  • कई हेलिकॉप्टर स्क़ॉड्रन बंद किए जाएंगे
  • अब मरीन कोर के पास कोई टैंक नहीं होंगे
  • नए हथियारों पर 15.8 अरब अमेरिकी डॉलर ख़र्च होंगे

जापान के प्रधानमंत्री और अमेरिका के राष्ट्रपति

इसका पैसा कहां से आएगा?

ये पैसे मरीन कोर के ख़र्चे में की जा रही 18.2 अरब अमेरिकी डॉलर की कटौती से ही फंड होगा.

नए रॉकेट आर्टिलरी सिस्टम के अलावा, नया एंटी-शिपिंग मिसाइल भी तैनात किए जाएंगे, जो ज़मीन या ड्रोन से फ़ायर किए जा सकते हैं.

कोशिश अमेरिकी सेना को एस ऐसे युद्ध के लिए तैयार करना है जो यूक्रेन की जंग जैसा हो सकता है.

फ़ोर्स डिज़ाइन 2030 का फ़ोकस बड़ी यूनिटों को छोटा करना और उन्हें छोटे-छोटे द्वीपों पर लड़ना सिखाना है. योजना यही है कि ये छोटे यूनिट अधिक बड़े इलाक़े में कम समय के भीतर युद्ध में हिस्सा लें.

वॉशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट में विदेश नीति के निदेशक और मिलिट्री मामलों के जानकार माइक ओ’हैनलॉन इस तर्क को ख़ारिज करते हैं कि चीन पर फ़ोकस से मरीन कोर के बाक़ी दुनिया में ऑपरेशन मे ख़लल पड़ेगा.

वे कहते हैं कि मरीन की जहां भी ज़रूरत होगी वे जाएंगे और नई पॉलिसी से ये कतई प्रभावित नहीं होगा.

कई विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर मरीन के भविष्य की जंग की चुनौतियों के लिए तैयार करना है तो परिवर्तन अनिवार्य है.

यूएस नेशनल डिफ़ेंस यूनिवर्सिटी के रिसर्च फ़ैलो और मरीन ऑफ़िसर रह चुके डॉक्टर फ़्रैंक हॉफ़मेन कहते हैं, “आलोचक एक गौरवमयी अतीत की ओर झांक रहे हैं. ये चीन और टेक्नोलॉजी के परिपेक्ष्य में सामरिक तस्वीर को साफ़-साफ़ नहीं देख पा रहे हैं.”

सबसे अधिक आलोचना टैंकों को मरीन कोर से पूरी तरह से हटा देने पर हो रही है.

लेकिन डॉक्टर हॉफ़मेन कहते हैं कि ये फ़ैसला बिल्कुल सही है. उनका कहना है कि अब भी मरीन कोर के पास पर्याप्त बख़्तरबंद वाहन हैं, बस भारी-भरकम टैंक ही हटाए जा रहे हैं.

वे कहते हैं, “ये इसलिए ज़रूरी है ताकि हम किसी भी इलाक़े के भीतर तक हमला कर सकें. वो भी तेज़ गति और बेहतर फ़ायर पावर के साथ. अब तक मरीन्स इस काम के लिए हवाई हमलों का प्रयोग करते थे. लेकिन अब मरीन्स के पास परंपरागत आर्टिलरी के अलावा मिसाइलों का ज़ख़ीरा होगा जो घातक होने के साथ-साथ उनके रेंज को भी बढ़ा देगा.”

यूक्रेन से सबक?

कई जानकार कह रहे हैं कि ये सारे कदम यूक्रेन युद्ध से मिल रही सीख की वजह से ही उठाए जा रहे हैं.

रूस और यूक्रेन की जंग ने ड्रोन और रॉकेट आर्टिलरी की अहमियत को रेखांकित किया है. साथ ही इन दो हथियारों का सटीक निशाना और भीतर तक मार करने की क्षमता भी हाइलाइट हुई है.

लेकिन यूक्रेन की रणभूमि और पैसिफ़िक सागर में संभावित युद्ध में बहुत फ़र्क है. चीन के साथ संभावित जंग घने जंगलों और घास के मैदानों के बजाय समुद्र में हज़ारों मील के बीच फैले कई छोटे-छोटे द्वीपों पर होगी.

फ़ोर्स डिज़ाइन 2030 प्रोग्राम में लगातार सुधार किए जा रहे हैं. इस योजना में कई परिवर्तन किए जा चुके हैं और संभव है कि भविष्य में भी बदलाव होंगे.

योजना एक दिशा में आगे तो बढ़ रही है पर अब भी कुछ अनसुलझी समस्याएं हैं. इनमें एक लंबे-चौड़े महासागर में फैले द्वीपों पर लड़ने की लॉजिस्टिक चुनौती सबसे प्रमुख है.

जल और थल पर एक साथ युद्ध की क्षमता ही इस भविष्य की जंग के केंद्र में होगा. लंदन के नैवल फ़ोर्सज़ ऐंड मेरीटाइम सिक्यूरिटी में सीनियर फ़ैलो निक चाइल्ड बताते हैं कि ज़मीन और पानी पर होने वाले युद्ध के लिए नए किस्म के जहाज़ों की दरकार होगी.

निक चाइल्ड्स कहते हैं, “सिर्फ़ परंपरागत सुमद्री जहाज़ों पर भरोसा करना उन्हें महंगा पड़ सकता है क्योंकि उनका सामना अत्याधुनिक हथियारों से होने वाला है. ऐसी जंग के लिए बहुत सारे छोटे-छोटे समुद्री जहाज़ों की ज़रूरत होगी जो तेज़ी से तैनात किए जा सकें और आसानी से कहीं भी पहुँच सकें.”

छोटे जहाज़ अमेरिका के अपने कई बड़े शिपयार्ड्स में जल्दी से बनाए जा सकते हैं. लेकिन शायद उस गति से नहीं जिसकी नेवी को ज़रूरत होगी.

अमेरिकी नेवी को बड़ी संख्या में नए युद्धपोतों की भी ज़रूरत होगी. ये साफ़ नहीं है कि इनके लिए फंड कहां से आएंगे.

जोनाथन मार्कुस ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर में मानद प्रोफ़ेसर हैं. वे लंबे समय तक बीबीसी के वरिष्ठ संवाददाता भी रहे हैं.

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