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मां कूष्मांडा को जरूर लगाए यह ख़ास भोग और इन मन्त्रों का करें जाप,पूरी होगी हर मनोकामना

चैत्र नवरात्रि का पर्व चल रहा है और इस पर्व का आज चौथा दिन है। आप सभी को बता दें कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। जी हाँ और नवरात्रि का चौथा दिन मां कूष्मांडा को समर्पित है। आप सभी को बता दें कि इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। वहीँ पंचाग के अनुसार आज चतुर्थी तिथि दोपहर 3 बजकर 45 मिनट तक रहेगी और उसके बाद से पंचमी लग जाएगी। 

आज मां कूष्मांडा की पूजा के बाद इस मंत्र का 21 बार जप करें- सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्त पद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ जी दरअसल शास्त्रों में कहा गया है कि इस मंत्र के जप से सूर्य संबंधी लाभ तो मिलेगा ही। इसी के साथ ही, परिवार में खुशहाली आएगी और स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। इसके अलावा आय में बढ़ोतरी होगी। 

मां का प्रिय भोग- नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को मालपुआ का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। जी दरअसल ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और इसी के साथ ही इस दिन कन्याओं को रंग-बिरंगे रिबन या वस्त्र भेट करना चाहिए क्योंकि इससे धन में वृद्धि होती है।

इस तरह करें मां कूष्मांडा की पूजा- मां कूष्मांडा की पूजा सच्चे मन से करना चाहिए। इस दिन मन को अनहत चक्र में स्थापित करें और मां का आशीर्वाद लें। वहीँ कलश में विराजमान देवी-देवता की पूजा करने के बाद मां कूष्मांडा की पूजा करें। अब इसके बाद हाथों में फूल लें और मां का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें। 

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।
 
जीवन में आ रही परेशानियों और समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए इस मंत्र का जाप 108 बार करें।

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

बौद्धिक क्षमता में वृद्धि और परीक्षा में अच्छे रिजल्ट के लिए इस मंत्र का​ 5 बार जप करें। 

‘या देवी सर्वभूतेषु बिद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस मंत्र का 11 बार जप करें। 

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए शांति मंत्र का 21 बार जाप अवश्य करें। 

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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