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जानिए क्यों मनाई जाती है संकष्टी चतुर्थी व्रत, जाने पूजा की विधि

हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार 23 नवंबर को संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान गणेश को 108 नामों से स्मरण किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से गणपति बप्पा की पूजा करता है। उसके सभी दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती है। आइए, संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा और पूजा विधि जानते हैं-

संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा

एक बार की बात है जब माता पार्वती भगवान् शिव जी के साथ बैठीं थी तो उन्हें चोपड़ खेलने की बड़ी इच्छा जागृत हुई। इसके पश्चात उन्होंने शिव जी से चोपड़ खेलने की बात कही लेकिन इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करता इसके लिए शिव जी और माता पार्वती ने मिटटी से एक मूर्ति बनाई और उसमें प्राण दे दिए। खेल शुरू हुआ और लगातार चार बार माता पार्वती विजयी हुई लेकिन पांचवी बार बालक ने शिव जी को विजयी घोषित कर दिया,जिससे माता अप्रसन्न हो गयी। उसी समय माता ने श्राप दे दिया की बालक लंगड़ा हो जाएगा। इसके पश्चात बालक खूब रोया लेकिन इसका कोई उपाय नहीं निकला। तत्पश्चात, माता ने कहा-आने वाले समय में इस स्थान पर नागकन्याएं आएंगी। उनसे व्रत विधि जानकर गणेश जी की पूजा करना, तो तुम्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। कालांतर में नागकन्याओं ने बालक को गणेश चतुर्थी की व्रत विधि बताई। 21 दिनों तक भगवान श्रीगणेश का व्रत किया। इससे बालक को श्राप से मुक्ति मिल गई। अतः संकष्टी चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सर्वप्रथम आमचन कर भगवान गणेश के निम्मित व्रत संकल्प लें और भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके पश्चात, भगवान गणेश जी की षोडशोपचार पूजा फल, फूल, धूप-दीप, दूर्वा, चंदन, तंदुल आदि से करें। भगवान गणेश जी को पीला पुष्प और मोदक अति प्रिय है। अतः उन्हें पीले पुष्प और मोदक अवश्य भेंट करें। अंत में आरती और प्रदक्षिणा कर उनसे सुख, समृद्धि और शांति की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें।

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