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आज है शुक्र प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इस समय ज्येष्ठ माह चल रहा है और इस माह के शुक्ल पक्ष का पहला प्रदोष व्रत 27 मई यानी आज है। आप सभी को बता दें कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। जी हाँ और यह व्रत महीने में दो बार आता है एक शुक्ल पक्ष में तो एक कृष्ण पक्ष में। आपको बता दें कि प्रदोष व्रत जब सोमवार के दिन आता है तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है। वहीं अगर प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन आता है तो उसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है। ऐसे में आज शुक्रवार है तो इसी वजह से आज शुक्र प्रदोष व्रत है।

प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

प्रारम्भ – 27 मई 2022 सुबह 11 बजकर 47 मिनट

समाप्त – 28 मई 2022 दोपहर 1 बजकर 9 मिनट

शुक्र प्रदोष व्रत पूजा विधि

  • जल्द उठकर स्नान आदि कर लें।
  • स्नान के बाद साफ-सुथरे सूखे वस्त्र धारण कर लें।
  • अगर आप व्रत रख रहे हैं तो भगवान शिव का स्नरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • सबसे पहले भगवान शिव का जलाभिषेक करें
  • आप चाहे तो पंच तत्व (दूध, पानी, दही, शहद, गंगाजल) से भी अभिषेक कर सकते हैं
  • अब भोलेनाथ को फूल और माला, बेल पत्र, धतूरा आदि चढ़ाएं।
  • इसके बाद भगवान शिव को भोग लगाएं।
  • भोग लगाने के बाद जल अर्पित करें।
  • अब घी का दीपक और धूप जलाकर शिव चालीसा, शिव मंत्र का जाप करें।
  • अंत में आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
  • दिनभर व्रत रहने के बाद शाम को व्रत खोल लें।

शुक्र प्रदोष व्रत की कथा- स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी।

ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है।

भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

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