विधायक बने बिना मुख्यमंत्री कैसे रह सकते हैं तीरथ, जानिए क्या है विकल्प
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मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। एक ओर विपक्ष विधानसभा कार्यकाल एक वर्ष से कम शेष रहने पर उपचुनाव टालने के संवैधानिक प्रावधान पर जोर दे रहा है वहीं, सीएम के पास बिना सदस्य चुने हुए छह माह बाद दोबारा शपथ लेने का विकल्प भी नहीं है। इन सब चिंताओं के पार यदि तीरथ 10 सितंबर तक विधायक निर्वाचित होते हैं तो उन्हें अगले 14 दिन में लोकसभा से इस्तीफा देना होगा। इसके बाद विस चुनाव तक गढ़वाल लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हो सकते हैं। उत्तराखंड विस के पूर्व सचिव जगदीश चंद्र ने बताया कि किसी भी सदस्य के लिए 14 दिन से अधिक एक साथ दो सदनों की सदस्यता रखना मुमकिन नहीं। अंतिम निर्वाचन की तिथि के 14 दिन में उक्त सदस्य को एक जगह से इस्तीफा देना होगा।
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क्या टल सकता है उपचुनाव?
विपक्ष संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय शेष रहने पर उपचुनाव टालने पर जोर देर रहा है। चूंकि उत्तराखंड में विधान परिषद नहीं है और मनोनयन से भी सिर्फ एक सीट एंग्लो इंडियन समुदाय से भरी जा सकती है(जो पहले भरी है), इस कारण तीरथ के सामने कुर्सी पर बने रहने को 10 सितंबर तक विधानसभा चुनाव जीतने की मजबूरी है। जन प्रतिनिधित्व कानून का हवाला देते हुए विधायी मामलों के जानकार और विधानसभा के पूर्व सचिव जगदीश चंद्र कहते हैं कि यदि विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचा हो या भारत सरकार निर्वाचन आयोग को देश के हालात को देखते हुए चुनाव टालने की सिफारिश करे और आयोग सिफारिश से संतुष्ट हो तो चुनाव टाले जा सकते हैं। चंद्र के मुताबिक, 2019 में संदीप यशवंत राव बनाम भारत निर्वाचन आयोग के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा की शेष अवधि का निर्धारण उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से विधानसभा भंग होने तक की बताई है।
चुने बिना दोबारा शपथ नहीं
दूसरी तरफ, बिना सदस्य निर्वाचित हुए सीएम के सामने दोबारा छह माह के लिए शपथ लेने का विकल्प नहीं बचा है। नैनीताल हाईकोर्ट के एडवोकेट चंद्रशेखर करगेती ने वर्ष 2001 में एसआर चौधरी बनाम पंजाब सरकार के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए बताया कि छह माह के कार्यकाल तक यदि सीएम, विधायक नहीं बने तो उनके पास इस्तीफा देकर दोबारा छह माह को शपथ लेने का विकल्प नहीं होगा। उन्होंने बताया, पंजाब सरकार के तत्कालीन मंत्री तेजप्रकाश सिंह को छह माह का एक कार्यकाल खत्म होने पर बिना विधायक निर्वाचित हुए दोबारा शपथ दिला दी गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत करार दिया था।
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