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स्कूल को सता रहा ये अजीबोगरीब डर, बैन कर दी गई छात्राओं की पोनीटेल…

आधी आबादी यानी छात्राओं और महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को लेकर आज तक पुरुषों पर शायद ही कोई प्रतिबंध लगा हो लेकिन सुरक्षा के नाम पर लड़कियों को आए दिन किसी न किसी अजीब प्रतिबंध और आपत्तियों का सामना करना पड़ता है. उन्हें उस हर काम के लिए रोका जाता है जिससे ये एहसास भी हो कि ऐसा करने से किसी तरह से उत्तेजना का भाव आ सकता है.

सोच बदलने की जरूरत

भारत की बात करें तो लड़कियों के पहनावे को लेकर पता नहीं कब से सवाल उठाए जाते रहे हैं. वेस्टर्न ड्रेस या टॉर्न्ड जींस पहनी हो तो बस मत पूछिए. पड़ोसियों से लेकर अजनबी लोगों के ऐसे ऐसे कमेंट सुनने को मिल जाएंगे कि यकीन ही नहीं होगा कि आज के जमाने में भी वही पुरानी दकियानूसी सोच लोगों के दिमाग में गहरी जड़े जमाए बैठी है. वहीं जापान (Japan) की बात करें तो वहां के अधिकांश स्कूलों में लड़कियों पर ऐसे-ऐसे प्रतिबंध है जिनके बारे में जानकर आप दंग रह जाएंगे.

पोनीटेल पर बैन

जापान में लड़कियों को सिंगल चोटी या पोनीटेल बनाकर स्कूल जाना सख्त मना है. वजह है असुरक्षा का भाव. इस बारे में तर्क है कि लड़कियों को पोनीटेल में देखकर लड़के उत्तेजित हो सकते हैं. इस बकवास वजह का विरोध भी किया गया लेकिन स्कूलों में बैन जारी है. इसके अलावा भी कई ऐसे नियम हैं जो बेहद अजीब हैं. दरअसल इस नियम को लेकर 2020 में फुकुओका इलाके के कई स्कूलों में सर्वे किया गया था. जिसमें बताया गया कि चोटी बनाने के बाद लड़कियों की दिखती गर्दन से पुरुष यौन रूप से उत्तेजित महसूस कर सकते है लिहाजा उनकी चोटी यानी पोनीटेल पर बैन बना रहेगा.

ब्लैक रूल कहलाते हैं ऐसे नियम

स्कूलों के ऐसे नियमों पर जहां सैकड़ों पैरेंट्स नाराजगी जता रहे हैं वहीं कुछ पूर्व शिक्षकों ने भी इस नियम पर हैरानी जताते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है. पैरेंट्स का कहना है कि ऐसे कुछ नियम और भी हैं जिनका कोई तुक नहीं है लेकिन स्कूल मैनेजमेंट की सख्ती के चलते ऐसे नियमों को मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं है. कुछ लोग ऐसे नियम कायदों को ब्लैक रूल कहते हैं.

दरअसल स्कूलों में इस तरह के नियम 1870 के दशक में बनाए गए तभी से इसमें बदलाव नहीं किया गया. कुछ गिने-चुने स्कूल हैं जो कुछ नियमों में हल्का फुल्का बदलाव कर पाए हैं, लिहाजा इन नियमों को बुराकू कोसोकू या ‘ब्लैक रूल्स’ (Buraku kosoku or ‘Black Rules’) के नाम से जाना जाता है.

इनकी भी मनाही

इतना ही नहीं कई और भी नियम हैं जैसे बच्चों के मोज़े का रंग, स्कर्ट की लंबाई, अंडरवियर का सफेद रंग और तो और भौंहों के आकार तक को कड़े नियम में बांध दिया गया है. इसके साथ ही बालों का रंग भी काले के अलावा दूसरा नहीं हो सकता.

पैरेंट्स को देनी होती है जानकारी

टोक्यो के लगभग हर स्कूल में छात्रों से इस बात की पुष्टि करने वाले प्रमाण पत्र जमा कराए जाते हैं जिनमें ये गारंटी देनी होती है कि उनके बाल कृत्रिम रूप से नहीं बदले गए हैं. टोक्यो के मेट्रोपॉलिटन यानी सरकारी स्कूलों की बात करें तो वहां के करीब 177 हाई स्कूलों में से 79 में पैरेंट्स को ऐसे सर्टिफिकेट पर खुद साइन करके अपने बच्चों के बारे में जानकारी देनी होती है.

वहीं इन नियमों के विरोध के इतर स्कूल मैनेजमेंट का तर्क है कि कड़े नियमों के जरिए छात्र और छात्राओं को अनुशासन के दायरे में रखा जाता है ताकि वो इस संवेदनशाली उम्र में अपनी सीमाओं को न पार कर सकें.

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