Uttarakhand

यूक्रेन से लौटे छात्रों ने बयां की हालात, बोले- कड़ाके की ठंड में पैदल चले

यूक्रेन व रूस के बीच चल रहे युद्ध भारतीय छात्र स्वदेश लौट रहे हैं। छात्रों ने बताया कि यूक्रेन में हालात बेहद खराब हैं। वहां उन्हें तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है। दैनिक जागरण को उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई।

तीन किमी दूर हुआ धमाका

चंद्रबनी निवासी शैक्षणिक सलाहकार अताउल्लाह ने बताया कि वह दिसंबर में छात्रों को लेकर इवानो गए थे। कभी सोचा भी नहीं था कि वहां इन हालात का सामना करना पड़ेगा। 24 फरवरी की सुबह को याद करते कहते हैं कि करीब पांच बजे दो-तीन किमी दूर धमाका हुआ। एयरपोर्ट और सैन्य क्षेत्र पर मिसाइल गिरी थी। सब बच्चे काफी डर गए थे। एकाएक साइरन बजने लगा। सबको बंकर में जाने के लिए कहा गया। दो दिन बाद हमने वहां से बस की। अपने छात्रों और दोस्तो को लेकर वहां से रोमानिया बार्डर की तरफ निकल गए। पता नहीं था कि बार्डर तक पहुंच भी पाएंगे या नहीं। रास्ते मे कुछ भी हो सकता था। बार्डर से पहले 10-15 किमी पहले तक जाम था। बस ने सभी को वहीं छोड़ दिया। हम अपने सामान के साथ भीषण ठंड में रात को बार्डर तक पहुंचे। वहां तीन हजार से अधिक छात्र पहले से ही पहुंचे थे। जैसे-तैसे एंट्री हुई। तब हम रोमानिया पहुंचे। 2 दिन रोमानिया के शेल्टर होम में रुके। कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार का शुक्रिया अदा करता हूं। वहां हमारे ऊपर क्या बीती बयां नहीं कर पा रहा हूं।

अभिनव बोले, शुक्र है घर लौट आए

मेहूंवाला निवासी अभिनव चौहान ने बताया कि वह तेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र हैं। यूक्रेन में जो स्थिति है, उसका अंदेशा पहले ही होने लगा था। ऐसे में उन्होंने व उनके कुछ साथियों ने यह फैसला लिया था कि वह भारत लौट आएंगे। 24 फरवरी को फ्लाइट थी और वह लोग कीव आ गए। पर युद्ध के कारण हालात बेहद खराब हो गए। फ्लाइट भी रद हो गई। वहां से निकलना मुश्किल था। ऐसे में भारतीय दूतावास ने छात्रों को आश्रय दिया। आसपास हर कहीं धमाके हो रहे थे।

बिगड़ते हालात के बीच कहा गया कि हम जल्द कीव छोड़ दें। पर पौलेंड बार्डर तक कैसे पहुंचा जाए, वह बड़ी समस्या थी। तमाम दुश्वारियां झेल आधा रास्ता ट्रेन व आधा बस से तय किया। बार्डर पर जाम की स्थिति होने पर कई किमी पैदल भी चलना पड़ा। राहत की बात ये रही कि बार्डर पर पहुंचने पर भारतीय दूतावास की पूरी मदद मिली। दूतावास ने फ्लाइट का प्रबंध किया था। अब अपने देश में आकर राहत मिली है। उनके ताऊ दिग्विजय चौहान, पिता सुरेंद्र सिंह चौहान, मां जगबाला चौहान ने कहा कि जब तक बेटा नहीं लौटा था, डर लग रहा था। पर अब खुशी मिली है।

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