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महाशिवरात्रि पर निशीथ काल में करें शिवपूजा, जानिए पूजा विधि और मंत्र

मानव जीवन के कल्याण के लिए भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में आने की रात्रि महाशिवरात्रि है। यह प्रत्येक वर्ष में फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को देशभर में धूम-धाम से मनाई जाती है। इस वर्ष 11 मार्च की अर्धरात्रि को निशीथ काल में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक किया जाएगा। इस दिन शिवयोग के साथ-साथ धनिष्ठा नक्षत्र एवं मकर के चंद्रमा का विशेष योग भी होगा। इस योग में व्रत, पूजन, अर्चना, अभिषेक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मनोवांछित फल मिलते हैं।

मगर, क्या आपको पता है कि कई तिथियों जैसे उदयात् तिथि, मध्याह्नव्यापिनि, प्रदोष व्यापिनि, निशीथव्यापिनि तिथि आदि में से महाशिवरात्रि पर्व को निशीथ व्यापिनि तिथि में मनाने की मान्यता है। यानी फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को यह पर्व मनाया जाता है। इंदौर के ज्योतिषी पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी पर शिवरात्रि होती है और शिवभक्त प्रत्येक कृष्णचतुर्दशी का व्रत अभिषेक अर्चन इत्यादि करते ही हैं। सप्तशती के अनुसार संसार में तीन रात्रियां बताई गई हैं- कालरात्रि, महारात्रि मोहरात्रि।

शिवरहस्यानुसार:-

चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्।

तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत्।।

ईशानसंहिता के अनुसार-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।

शिवलिङ्गतयाद्भूतः कोटसूर्यसमप्रभः।।

अर्थात् फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथकाल (अर्धरात्रि) में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग में प्रादुर्भाव माना जाता है। इस कारण महाशिवरात्रि मनाने का विधान है। यह व्रत करोड़ों पापों का शमन करने वाला तथा मोक्ष प्राप्ति कराने वाला महाव्रत है। कहते हैं-

शिवरात्रिव्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।

आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्।।

रात्रि के समय भूत, पिशाच, प्रेत, शक्तियां और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं। अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं। यदि यह शिवरात्रि त्रिस्पर्शा अर्थात् त्रयोदशी, चतुर्दशी की तिथि में पड़ रही हो और उस दिन अमावस्या भी हो तो यह अधिक उत्तम होती है।

पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी तिथि में सूर्य और चन्द्रमा अधिक निकट होते हैं। अतः यही समय जीवनरूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। यह व्रत काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि विकारों से मुक्त करके परम सुखशान्ति ऐश्वर्यादि को प्रदान करता है।

व्रतविधि

शिवपुराण के अनुसार, प्रातः काल स्नान करके मस्तक पर त्रिपुण्ड लगाए तथा पत्र, पुष्प, धतुरा, बिलफल इत्यादि शिवप्रिय वस्तुओं को एकत्रित करके शिवमन्दिर जाए। शिव को नमस्कार कर हाथ में बेलपत्र, पुष्प, अक्षतादि लेकर संकल्प कहे-

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम्।

निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।

यह कहकर हाथ की सामग्री भगवान शिव पर छोडने के पश्चात् यह श्लोक पढ़ें-

देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तुते। कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।

तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भेवदिति। कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।। (शिवपु. कोटिरूद्रसंहिता.38.28.29)

उसके पश्चात् भगवान का ऊॅ नमः शिवाय मन्त्र का जप करना चाहिए। समस्त व्याधियों के निवारण के लिए व्यापार वृद्धि एवं सुख शान्ति के लिए ब्राह्मण को बुलाकर भगवान का रात्रि में चारों प्रहर में रूद्राभिषेक करना चाहिए। वास्तव में से शिवरात्रि का अर्थ ही है शिवजी का रात्रि में पूजन करना और इसका विधान शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन भगवान को स्वयं को समर्पित करके शिवमय जीवन ही व्यतीत करना चाहिए तथा इस दिन दूध, घी, गन्ने का रस, सरसों, दूध, शहद आदि पदार्थों द्वारा शिव का अभिषेक करना चाहिए।

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