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जानिए मन और व्यवहार पर तनाव कैसे डालता है प्रभाव

तनाव को किसी ऐसे शारीरिक, रासायनिक या भावनात्मक कारक के रूप में समझा जा सकता है, जो शारीरिक तथा मानसिक बेचैनी उत्पन्न करे और वह रोग निर्माण का एक कारक बन सकता है। ऐसे शारीरिक या रासायनिक कारक जो तनाव पैदा कर सकते हैं, उनमें – सदमा, संक्रमण, विष, बीमारी तथा किसी प्रकार की चोट शामिल होते हैं। तनाव के भावनात्मक कारक तथा दबाव कई सारे हैं और अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ लोग जहां “स्ट्रेस” को मनोवैज्ञानिक तनाव से जोड़ कर देखते हैं, तो वहीं वैज्ञानिक और डॉक्टर इस पद को ऐसे कारक के रूप में दर्शाने में इस्तेमाल करते हैं, जो शारीरिक कार्यों की स्थिरता तथा संतुलन में व्यवधान पैदा करता है। जब लोग अपने आस-पास होने वाली किसी चीज़ से तनाव ग्रस्त महसूस करते हैं, तो उनके शरीर रक्त में कुछ रसायन छोड़कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। ये रसायन लोगों को अधिक ऊर्जा तथा मजबूती प्रदान करते हैं।



क्या होता है तनाव

यूं तो मनुष्य का उदास या निराश होना स्वाभाविक है, लेकिन जब ये एहसास काफी लंबे समय तक बना रहे तो समझ जाइए कि वो तनाव की स्थिति में है। यह एक ऐसा मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उसे अपना जीवन नीरस, खाली-खाली और दुखों से भरा लगता है। प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग कारणों से तनाव हो सकता है। किसी बात या काम का अत्यधिक दवाब लेने से यह समस्या पैदा हो जाती है

तनाव के मुख्य कारण

* करियर में ग्रोथ न होना।
* ऑफिस के कार्यभार व जिम्मेदारियों की अधिकता।
* वैवाहिक, प्रेम और पारिवारिक संबंधों में दरार आना।
* वजन तेजी से घटना या बढ़ना।
* आर्थिक परेशानी।
* पुरानी या गंभीर बीमारी की वजह से।
* मादक पदाथार्ें का अत्यधिक सेवन करना।
* किसी काम के लिए न नहीं कह पाना।
* साधारण-सी बीमारी के लिए दवा का प्रयोग करना।

शारीरिक प्रभाव
तनाव के शारीरिक प्रभाव मुख्तः न्यूरो-एंडोक्राइनो-इम्युनोलॉजिकल मार्ग से उत्पन्न होते हैं। तनाव के कारक की जो भी प्रकृति हो पर उनके प्रति शरीर की प्रतिक्रिया सदैव एक समान रहती है। नीचे हमारे शरीर के ऊपर पड़ने वाले तनाव के शारीरिक प्रभाव दिए जा रहे हैं:
– धड़कन : हृदय का स्पंदन बढ़ जाता है।
– सांस बढ़ जाती है, और इसकी लंबाई छोटी हो जाती है।
– थरथराहट
– जुकाम, अत्यधिक चिपचिपाहट /पसीना छूटना
– गीली भौंह
– मांसपेशियों का कड़ापन, उदरीय मांसपेशियों का कड़ापन दिखना, तने हुए हाथ तथा पैर, दबे हुए जबड़े जहां दांत एक-दूसरे के साथ गुंथे हों।
– डिस्पेप्सिया /आंत में व्यवधान
– बार-बार पेशाब के लिए जाना
– बाल झड़ना

मानसिक प्रभाव

यदि पहचान न की जाए और सही तरीके से सुधारा न जाए तो तनाव के मानसिक प्रभाव कई रूप में दिखाई पड़ते हैं। यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि भावनात्मक तनाव को यदि दूर न किया गया तो यह इससे मानसिक कष्ट उत्पन्न हो सकता है और उससे शारीरिक परेशानी (मनोशारीरिक बीमारी के रूप में जाना जाता है) उत्पन्न हो सकती है।
अन्य सामान्य मानसिक प्रभाव हैं:

– एकाग्र करने में अक्षम होना।
– निर्णय न ले पाना।
– आत्मविश्वास की कमी।
– चिड़चिड़ापन या बार-बार गुस्सा आना।
– अत्यधिक लोभ वाली लालसा।
– बेवजह चिंता करना, असहजता तथा चिंता।
– बेवजह भय सताना।
– घबड़ाहट का दौरा।
– गहरे भावनात्मक तथा मूड विचलन।

व्यवहार प्रभाव
तनाव के व्यवहारगत प्रभावों ऐसे तरीके शामिल हैं, जिनमें कोई व्यक्ति तनाव के प्रभाव में कार्य करते हैं और व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
नीचे तनाव के कुछ व्यवहारगत प्रभाव दिए जा रहे हैं:
– अत्यधिक धुम्रपान
– नर्वस होने के लक्षण
– शराब या ड्रग्स का अत्यधिक सेवन।
– नाखून चबाने तथा बाल खींचने जैसी आदत।
– अत्यधिक तथा काफी कम खाना।
– मन का कहीं और खोना।
– जब-तब दुर्घटना का शिकार होना।
– जरा-जरा सी बात पर आक्रामक होना।

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