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जानिए कैसे करें मासिक दुर्गाष्टमी का पूजन ,देखें शुभ मुहूर्त एवं व्रत से होने वाले लाभ

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार, माघ माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी 8 फरवरी यानी कल है। साथ ही गुप्त नवरात्रि की भी अष्टमी है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा-उपासना की जाती है। वहीं, गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रुपों की महादेवियों की भक्ति उपासना की जाती है। शास्त्रों में निहित है कि गुप्त नवरात्रि करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मासिक दुर्गाष्टमी का पुण्य अश्विन माह की अष्टमी के समतुल्य होता है। आइए, मासिक दुर्गाष्टमी के बारे में सबकुछ जानते हैं-

मां दुर्गा का स्वरूप

मां ममता का सागर होती है। इनके मुखमंडल से तेजोमय कांति झलकती है, जिससे समस्त संसार प्रकाशमय होती है। इनकी आठ भुजाएं हैं, जो अस्त्र और शस्त्रों से सुशोभित हैं। जबकि मां दुर्गा की सवारी सिंह है।

दुर्गाष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त दिन भर है, क्योंकि अष्टमी 8 फरवरी को प्रात: काल 6 बजकर 15 मिनट से शुरू होकर 9 फरवरी को सुबह में 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। अत: साधक मां आदिशक्ति की पूजा-उपासना दिन में किसी समय कर सकते हैं। हालांकि, प्रात:काल में पूजा करना श्रेष्ठकर होगा।

दुर्गाष्टमी पूजा विधि

मासिक दुर्गाष्टमी करने वाले साधकों को सप्तमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। साथ ही रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए। इसके अगले दिन यानी अष्टमी तिथि को ब्रह्म बेला में उठकर घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई कर गंगाजल से पवित्र करें। तदोपरांत, गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। फिर लाल रंग का नवीन वस्त्र धारण कर आमचन करें और अपने आप को पवित्र कर लें। इस समय माता का ध्यान कर व्रत संकल्प लें। अब पूजा गृह में एक चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित कर षोडशोपचार करें। मां दुर्गा को लाल रंग अति प्रिय है। अतः पूजा में उन्हें लाल पुष्प और लाल फल अवश्य भेंट करें। साथ ही सोलह श्रृंगार और लाल चुनरी भी चढ़ाएं। अब मां दुर्गा की पूजा धूप-दीप, दीपक आदि से करें। पूजा करते समय दुर्गा चालीसा का पाठ करें और निम्न मंत्र का जाप करें।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके।

शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

या देवी सर्वभूतेषु मां दुर्गा-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अंत में आरती आराधना करें। दिन भर उपवास रखें। साधक चाहे तो दिन में एक बार फल और जल ग्रहण कर सकते हैं। शारीरिक शक्ति का दमन न करें। जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से व्रत उपवास करें। शाम में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें। रात्रि में जागरण कर भजन कीर्तन कर सकते हैं। अगले दिन नवमी तिथि को नियमित तरीके से पूजा-पाठ कर व्रत खोलें।

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