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धनबाद अग्निकांड: 14 लोगों की मौत के बीच सात फेरे, हादसे से अनजान थी दुल्हन

“पत्नी और पिता की मौत हो गई, पत्नी को मुखाग्नि मैं दूँगा या मेरा बेटा?”

आँखों में आँसू और ग़मगीन चेहरे से ये सवाल धनबाद के आशीर्वाद टावर में रहने वाले सुबोध लाल अपने मित्र से कर रहे थे.

सुबोध लाल के इर्द-गिर्द मौजूद मित्रों में से एक विनोद अग्रवाल ने सांत्वना देते हुए कहा कि बेटा ही माँ को मुखाग्नि देता है.

सुबोध ये सुनकर कांपते स्वर में बस इतना ही कह सके “इधर कल की रात बेटी का कन्यादान था तो उधर मैंने पत्नी और पिता के अलावा 12 रिश्तेदारों को हमेशा के लिए खो दिया.”

मंगलवार को धनबाद के आशीर्वाद टावर में लगी आग में 14 लोगों की मौत हो गई थी. सुबोध लाल ने इस घटना में अपने कई परिजनों को गँवा दिया है.

आशीर्वाद टावर में कुल 68 फ्लैट्स हैं. आशीर्वाद टावर में दो ब्लॉक हैं- ए और बी.

बी टॉवर के एक फ़्लैट में लगी आग तेज़ी से फैली और इसी आग में शादी के इकट्ठा हुए सुबोध के कई परिजनों की मौत हो गई.

साठ वर्षीय मुकेश अरोड़ा ए-ब्लॉक में रहते हैं. वे कहते हैं, “चूँकि आग बी-ब्लॉक में लगी थी इसलिए ए-ब्लॉक में रहने वाले लोग 15 मिनट में आसानी से बाहर आ गए. लेकिन बी-ब्लॉक के सेकेंड फ़्लोर में आग लगने से स्थिति अलग थी.”

वे कहते हैं कि अगर दोनों ब्लॉक से बाहर निकलने का रास्ता अलग-अलग नहीं होता, तो अफ़रातफ़री और बढ़ जाती, जो बड़े नुक़सान का कारण बनती.

आशीर्वाद टावर के चौथे और पाँचवें फ़्लोर पर मौजूद सुबोध लाल के दो फ़्लैट्स में उनकी पत्नी, माँ और पिता के अलावा अन्य रिश्तेदार बेटी की शादी में जाने की तैयारी कर रहे थे.

शादी से जुड़े काम को लेकर सुबोध लाल बाहर गए थे. लेकिन पौने सात बजे वे जैसे ही आशीर्वाद टावर पहुँचे, तो देखा कि सेकेंड फ़्लोर में आग लगने के बाद अफ़रा-तफ़री की स्थिति बनी हुई थी.

सुबोध लाल के मित्र सिकंदर कुमार साव कहते हैं, ”हम सभी मित्र मैरेज हॉल में सुबोध की पुत्री स्वाति के विवाह की तैयारी में लगे थे. लेकिन आग की ख़बर मिलते ही मैं लगभग पौने सात बजे घटनास्थल तक पहुँचा. जहाँ देखा कि आशीर्वाद टावर के सेकेंड फ़्लोर के बी-2 फ़्लैट से आग की लपटें आ रही थीं.”

सिकंदर साव आगे कहते हैं कि धीरे-धीरे फ़्लैट से निकलती आग की लपटों का असर तीसरे और चौथे फ़्लोर तक पहुँच गया. लगभग सात फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ पहुँचीं, लेकिन आग पर नियंत्रण नहीं हो सका.

आग पर नियंत्रण न हो सकने की स्थिति से नाराज़ ए-ब्लॉक के आठवें फ़्लोर पर रहने वाले मुकेश अरोड़ा कहते हैं- मैं क्या बताऊं, धनबाद प्रशासन 10 फ़्लोर तक नक्शा पास करता है. लेकिन इनके पास ऐसी फायरब्रिगेड गाड़ियाँ नहीं हैं, जो 50 फ़ीट की ऊँचाई तक पानी डाल कर आग बुझा सकें.

सुबोध लाल के एक अन्य मित्र विनोद अग्रवाल के अनुसार फ़ायर ब्रिगेड की वाटर फ़ोर्स उस समय 50 फीट ऊँचाई तक पहुँचने में नाकाम हो रही थी.

तब आशीर्वाद टावर से ठीक 100 फ़ीट की दूरी पर मौजूद पाटलिपुत्र मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल ने अपने फ़ायर फ़ाइटिंग यंत्र का इस्तेमाल किया. जिसकी मदद से लगभग दस बजे आग पर नियंत्रण हासिल हुआ.

मुकेश अरोड़ा बताते हैं- आग बुझने के बाद जब हम अंदर गए, तो देखा कि सारी लाशें दूसरे और तीसरे फ़्लोर के बीच सीढ़ियों पर पड़ी थीं. ये मौत धुएँ के कारण घुटन से हुई प्रतीत हो रही थीं.

वे आगे कहते हैं कि जो लोग ऊपर की तरफ़ नहीं गए, वही घायल हुए, और उन्हीं में से 14 लोगों की मौत हो गई.

विदाई तक दुल्हन को नहीं दी गई हादसे की ख़बर

विनोद अग्रवाल कहते हैं कि सुबोध लाल की माँ अब भी आईसीयू में हैं. उन्होंने बताया कि आग नियंत्रित होने के बाद जब वे ऊपर गए, तो देखा कि वे सीढ़ियों पर बेसुध अवस्था में थीं.

बेटी की शादी में आए सुबोध लाल के जिन 12 रिश्तेदारों की मौत हुई है, वे झारखंड के दूसरे ज़िले जैसे बोकारो, गिरिडीह और हज़ारीबाग के रहने वाले थे.

लाशों की पहचान के बाद मित्रों की सलाह पर सुबोध लाल ने बेटी स्वाति की विदाई हादसे के बाद कर दी.

उस समय वहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था, सिर झुकाए पिता सुबोध बैठे थे और दुल्हन कन्यादान की रस्म का हिस्सा बनने बैठी थीं.

सुबोध के मित्रों का दावा है कि दुल्हन स्वाति को विदाई तक पता नहीं होने दिया गया कि उनके दादा, माँ, मौसी आदि अब इस दुनिया में नहीं रहे.

स्वाति के पिता सुबोध लाल मंडप के पास एक कुर्सी पर बैठे थे, लेकिन वह कन्यादान की रस्म को पूरा नहीं सके. तब उस रस्म को स्वाति के भाई ने पूरा किया.

विनोद अग्रवाल कहते हैं कि सुबोध बेटी को बग़ैर पत्नी की मौजूदगी के कैसे विदा करें, इस उधेड़बुन में सुबह के पाँच बज गए.

स्वाति की विदाई गिरिडीह के लिए तो हुई लेकिन माँ, दादी, दादा, मौसी आदि के बिना.

जिस घर में लगी आग, वो रेसेक्यू के बाद सही-सलामत

कई प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत में मालूम हुआ कि सबसे पहले सेकेंड फ़्लोर के बी-2 फ़्लैट में से आग की लपटें दिखाई दीं.

इस फ़्लैट के मालिक पंकज अग्रवाल ने बताया कि वे प्राइवेट फ़र्म में सर्विस करते हैं, वे कहते हैं, ”दोनों बच्चे, मैं और पत्नी ज़िंदा बच गए लेकिन तीनों लोग ख़ौफ़ज़दा हैं.”

घटना का ज़िक्र करते हुए पंकज अग्रवाल बताते हैं, ” जिस समय घटना घटी, मेरी पत्नी किचन में काम कर रही थीं. जबकि मैं अपने बेटा और बेटी के साथ सो रहा था. अचानक मुझे विस्फोटक अवाज़ सुनाई दी. मैंने देखा कि दूसरे कमरे के स्विच बोर्ड में आग लगी हुई है. मैं कुछ कर पाता कि आग स्विच बोर्ड के बगल में लगे लकड़ी के छोटे से मंदिर तक पहुँच गई, उसके बाद आग खिड़की के परदों तक पहुँच गई.”

वह आगे कहते हैं. ”बढ़ती आग को देख कर मैंने बिल्डिंग में लगे फ़ायर एक्सटिंग्विशर से आग बुझाने का प्रयत्न किया. लेकिन वह काम नहीं कर रहा था, तब तक आग भयावह रूप ले चुकी थी. मैं थक-हार कर नीचे की तरफ़ भागा, इस दौरान मेरे हाथ से बेटी का हाथ छूट गया. जब मैं, बेटा और पत्नी के साथ बाहर आया, तो बेटी याद आई.”

पंकज अग्रवाल बताते हैं- मैं हताश परेशान था, स्थानी थाना प्रभारी अपनी जान की परवाह न करते हुए बेटी को ढूँढ़ने ऊपर गए. जहाँ से मुझे ख़बर मिली कि मेरे पड़ोसी बेटी को आग से बचाकर बिल्डिंग की छत पर ले गए. जब आग बुझी तो मालूम हुआ कि बेटी घबराहट में मेरा हाथ छोड़कर अपने घर की तरफ जाने लगी, तभी पड़ोसी ने उसे खींचा क्योंकि मेरे घर का सारा सामान बुरी तरह जल रहा था.

मोहम्मद आसिफ फ़ायर ब्रिगेड कर्मचारी हैं.

वे बताते हैं कि एक तरफ फ़ायर ब्रिगेड के कर्मचारी आग की ओर पानी मार रहे थे, तो दूसरी तरफ़ जब किसी तरह हमारी टीम बी-ब्लॉक में घुसी, तो पाया कि 60 की तादाद में लोग थर्ड फ़्लोर के आसपास थे.

उन्होंने बताया- हमने उन सभी को समझाया कि आग पूरी बिल्डिंग में नहीं है. आग सेकेंड और थर्ड फ़्लोर पर है. अत: सभी लोग टेरेस पर चलिए. सभी ने बात मानी और टेरेस पर चले गए, इस तरह सभी सुरक्षित रेस्क्यू किए गए.

चौदह मौत के बारे में आसिफ़ कहते हैं कि चूंकि सभी एक परिवार से हैं इसलिए वे एक साथ नीचे भागे. अफ़रा-तफ़री में धुएँ के कारण घुटन महसूस होने पर सभी अचेत हो गए होंगे. चूँकि इस फ़्लोर पर आग ज़्यादा थी, इसलिए सभी के शरीर जल गए. इस दौरान इन सभी की मौत हो गई

फ़्लैट्स में लौटने की मिन्नतें

धनबाद के डीसी संदीप सिंह

“मेरे पिता हार्ट, किडनी, थायरॉयड के मरीज़ हैं. न वे रात में दवा खा सके, न ही आज सुबह. दवा हमारे फ़्लैट में रखी है और हम बाहर हैं.”

ये कहते हुए आशीर्वाद टावर के निवासी प्रेम अग्रवाल की आँखों में आँसू आ गए.

प्रेम अग्रवाल की तरह आशीर्वाद टावर में रहने वाले अधिकांश परिवारों के सदस्य बिल्डिंग के आसपास मौजूद हैं.

वे सभी प्रशासन से मिन्नतें कर रहे हैं कि उन्हें फ़्लैट्स के अंदर जाने दिया जाए.

प्रेम अग्रवाल बताते हैं कि रात जब आग लगी तो हमारे पास एक ही विकल्प था कि किसी तरह हम जान बचाकर बाहर निकलें. प्रशासन ने सभी परिवारों को रेस्क्यू कराने के बाद गेट बंद कर दिया.

वह आगे कहते हैं, ”सभी बाहर तो निकल गए लेकिन हड़बड़ी में निकलने की वजह से हम पैसे या ज़रूरत का कोई समान लेकर नहीं निकल सके.”

”मेरी तरह सभी परिवारों का हाल है. जान बचने के बाद हम सभी अपना सामान लेने के लिए मिन्नत कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से सहयोग नहीं मिल रहा है. हमें ज़रूरी सामान लाने के लिए अंदर जाने नहीं दिया जा रहा.”

धनबाद के डीसी संदीप सिंह कहते हैं कि चूँकि बिल्डिंग में हादसा हुआ है. इसलिए स्ट्रक्चरल स्टैबिलिटी, वाइरिंग की सेफ़्टी आदि सुरक्षात्मक श्योरिटी मिलने के बाद फ़ैमिली बिल्डिंग को यूज़ कर सकती है. इसके लिए नगर निगम की टीम स्पॉट की जाँच कर रही है.

नक्शा

डीसी संदीप सिंह ने कहा कि ‘झारखंड मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी’ शहरी क्षेत्र के नक्शे पास करती है.

उन्होंने 2012 में इस बिल्डिंग का नक्शा पास किया था. इसका रीसैंक्शन 2015 में किया गया है.

उन्होंने बताया- नगर निगम की टीम से कहा गया है कि पहले चेक करें कि अप्रूव्ड नक्शे में किसी तरह की अनियमितता तो नहीं बरती गई. साथ ही रेक्टिफाई करें कि बिल्डिंग बनने दौरान या बनने के बाद किसी तरह का नियम उल्लंघन तो नहीं हुआ है.

डीसी धनबाद संदीप कुमार ने पुष्टि की कि हादसे में मौत का शिकार होने वालों की कुल संख्या 14 है, जिनमें 11 महिलाएँ, तीन बच्चे और एक पुरुष शामिल हैं.

किसी भी प्रकार के कवरेज के लिए संपर्क AdeventMedia: 9336666601

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