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गणेश चतुर्थी: भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को माना जाता है विशेष, पढ़ें कथा

हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद मास का आरम्भ हो चुका है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के तौर पर मनाया जाता है। वैसे देखा जाए तो प्रत्येक महीने की चतुर्थी प्रभु श्री गणेश को ही समर्पित हैं, किन्तु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को बहुत विशेष माना जाता है। परम्परा है कि इसी चतुर्थी को गणपति का जन्म हुआ था। इस बार गणेश चतुर्थी 10 सितंबर को पड़ रही है।

वही देशभर में इस गणेश चतुर्थी को विशाल उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। ये पर्व पूरे 10 दिनों तक चलता है। महाराष्ट्र में इस पर्व की धूम को देखने के लिए दूर दूर से भक्त आते हैं। गणेश जी के श्रद्धालु चतुर्थी के दिन अपने बप्पा को ढोल नगाड़ों के साथ घर लेकर आते हैं तथा उन्हें घर में बैठाते हैं मतलब स्थापित करते हैं। ये स्थापना 5, 7,9 या पूरे 10 दिन की होती है। इन दिनों में गणेश जी के भक्त गण बहुत सेवा करते हैं। उनके पसंदीदा भोग उन्हें चढ़ाते हैं। पूजा पाठ तथा कीर्तन किया जाता है। तत्पश्चात, उनका विसर्जन कर दिया जाता है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन तक के पीछे की कथा।।।

ये है कथा:-

धर्म ग्रंथों के मुताबिक, महाभारत की रचना महर्षि वेद व्यास ने की थी, किन्तु उसे लिखने का काम गणेश जी ने पूर्ण किया था। लेखन का कार्य पूरे 10 दिनों तक ​चला था। उस समय गणेश जी ने दिन और रात ये काम किया था। कार्य के समय गणेश जी के शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए महर्षि वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप कर दिया था। बोला जाता है कि चतुर्थी के दिन ही महाभारत के लेखन का ये कार्य पूरा हुआ था। कार्य पूरा होने के ​पश्चात् वेद व्यास जी ने चतुर्थी के दिन उनकी पूजा की। किन्तु कार्य करते करते गणेश जी बहुत थक गए थे तथा लेप सूखने से उनके शरीर में अकड़न आ गई थी तथा उनके शरीर का तापमान भी बढ़ गया था एवं मिट्टी सूखकर झड़ने लगी थी। तत्पश्चात, वेद व्यास जी ने उन्हें अपनी कुटिया में रखकर उनकी बहुत देखरेख की। उन्हें खाने पीने के लिए कई पसंदीदा व्यंजन दिए तथा उनके शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए सरोवर में डुबोया। तभी से चतुर्थी के दिन गणपति को घर लाने की परम्परा चल पड़ी। चतुर्थी के दिन गणेश जी के भक्त उन्हें घर लेकर आते हैं। उन्हें 5, 7, 9 दिनों तक घर में रखकर उनकी सेवा करते हैं। उनके पसंदीदा भोजन उन्हें चढ़ाते हैं तथा उसके पश्चात् जल में उनकी मूर्ति को विसर्जित कर देते हैं।

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