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महिला आरक्षण पर ‘सुप्रीम’ टिप्पणी,‘कानून के जनगणना के बाद लागू होने वाले हिस्से को रद्द करना मुश्किल’

प्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महिला आरक्षण कानून को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अमल करने की मांग वाली याचिका को लंबित याचिका के साथ जोड़ने का फैसला लिया है। अदालत का कहना है कि महिला आरक्षण कानून के उस हिस्से को रद्द करना ‘बहुत मुश्किल’ होगा, जिसमें कहा गया है कि इसे जनगणना के बाद लागू किया जाएगा।

यह है मामला

गौरतलब है, महिला आरक्षण कानून को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अमल करने की अर्जी कांग्रेसी नेता जया ठाकुर की ओर से दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि बहु प्रतिक्षित महिला आरक्षण विधेयक संसद से पास हो चुका है। यह अब कानून बन गया है, लेकिन कहा गया है कि यह परिसीमन के बाद लागू होगा। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि इस मामले में निर्देश दिया जाए कि इस पर अमल लोकसभा चुनाव से पहले हो।

शीर्ष अदालत का इनकार

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता जया ठाकुर की याचिका पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि इस मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका लंबित है। उस लंबित याचिका के साथ ही जया ठाकुर की याचिका पर 22 नवंबर को सुनवाई करेगी।  

ठाकुर की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलील को स्वीकार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि जो कदम उठाया गया वो बहुत अच्छा कदम है। 

ठाकुर की वकील का तर्क

वकील ने कहा था कि यह समझा जा सकता है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए आंकड़ें जुटाने के लिए जनगणना की आवश्यकता होती है, लेकिन आश्चर्य है कि महिला आरक्षण के मामले में जनगणना का सवाल कहां उठता है। सिंह ने कहा कि कानून का वह हिस्सा जो कहता है कि इसे जनगणना के बाद लागू किया जाएगा, मनमाना है और इसे खत्म किया जाना चाहिए। 

पीठ का जवाब

इस पर पीठ ने कहा, ‘अदालत के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल होगा। हम आपके तर्क को समझ गए हैं। आप कह रहे है कि महिला आरक्षण के लिए जनगणना की जरूरत नहीं है, लेकिन बहुत सारे मामले हैं। पहले सीटें आरक्षित करनी होंगी। साथ ही अन्य भी काम करने होंगे।’

लंबित मामले के साथ…

सिंह ने इसके बाद नोटिस जारी करने और याचिका को अन्य मामले के साथ सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। इस पर अदालत ने कहा कि वह याचिका को खारिज नहीं कर रही है, न ही नोटिस जारी कर रही है। इसे केवल लंबित मामले के साथ जोड़ रही है।

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