सानिया मिर्ज़ा: अंतिम टूर्नामेंट के पहले राउंड में हारने से थमा सफ़र, खेल जगत लंबे समय तक रखेगा याद
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भारत की मशहूर टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा को अपने करियर के आख़िरी टूर्नामेंट के पहले राउंड में ही हार का सामना करना पड़ा.
दुबई ड्यूटी फ्री टेनिस चैंपियनशिप में यूएस की मेडिसन कीज के साथ महिला डबल्स इवेंट में कोर्ट में उतरीं सानिया को कुदरमेतोवा और सैमसोनोवा की जोड़ी ने लगातार सेटों में 6-4, 6-0 से हराया.
इस हार के साथ ही सानिया मिर्जा के क़रीब दो दशक लंबे करियर का समापन हो गया.
सानिया ने इसी साल 13 जनवरी की शाम को एक भावुक सोशल मीडिया पोस्ट किया था. सानिया ने लिखा, ‘आंखों में आंसू और दिल में भरे गुबार के बीच वह अपने प्रोफेशनल करियर का फेयरवेल नोट लिख रही हैं.’
बीते साल जनवरी में, सानिया ने घोषणा की थी कि 2022 उनका अंतिम सत्र होगा लेकिन वह मांसपेशियों की चोट के चलते अंतिम ग्रैंड स्लैम में हिस्सा नहीं ले सकीं.
ऐसे में संन्यास की उनकी योजना कुछ महीनों के लिए टल गई थी.
सानिया मिर्ज़ा ने लिखा, “पहला ग्रैंड स्लैम खेलने के 18 साल बाद ऑस्ट्रेलियन ओपन उनका आख़िरी ग्रैंड स्लैम होगा.”
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मेलबर्न और दुबई, ये टेनिस टुअर के दो केंद्र तो हैं ही साथ ही बीत तीन दशक के दौरान सानिया के खेल करियर को भी दर्शाते हैं.
सानिया मिर्जा को हमलोगों ने 18 साल पहले मेलबर्न में तब देखा था जब 18 साल की उम्र में वो अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं. तीसरे राउंड में सानिया सेरीना विलियम्स को शॉट दर शॉट जवाब दे रही थीं.
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सानिया का कमाल
उस वक्त ये भी दिखा था कि किसी भी भारतीय महिला की तुलना में उनका फोरहैंड शाट्स ज़्यादा आक्रामक है.
इस्लामोफोबिया के उस दौर में उस युवा मुस्लिम खिलाड़ी को यह मालूम था कि वह क्या हैं और उन्हें क्या पहनना है.
उनकी शार्ट स्कर्ट और बोल्ड संदेशों वाली टी-शर्ट ने कट्टरपंथियों को बेचैन कर दिया था. सानिया शीर्ष स्तर पर टेनिस खेल रही थीं. विजय अमृतराज (सबसे ऊंची 18वीं रैंकिंग) और रमेश कृष्णन (सबसे ऊंची 23वीं रैंकिंग) के बाद भारत की शीर्ष खिलाड़ी बनने का कारनामा भी सानिया ने ही दिखाया था.
रमेश कृष्णन के 22 साल बाद सानिया शीर्ष 30 खिलाड़ियों में जगह बनाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं. इसके बाद 16 साल बीत चुके हैं और सानिया टेनिस कोर्ट में बनी हुई हैं.
27 अगस्त, 2007 को सानिया दुनिया की 27वीं रैंकिंग की खिलाड़ी बनीं थीं. उन्होंने हैदराबाद में आयोजित डब्ल्यूटीए का ख़िताब जीता था और तीन बार डब्ल्यूटीए के फ़ाइनल तक पहुंचीं.
अगले चार साल तक वो दुनिया की शीर्ष 35 खिलाड़ियों में बनी रहीं और इसके बाद अगले चार साल तक उनकी गिनती दुनिया के शीर्ष 100 खिलाड़ियों में होती रही. लेकिन घुटने और कलाई की चोटों ने उनके सिंगल्स करियर पर विराम लगा दिया. लेकिन इसके बाद डबल्स टेनिस में सानिया ने कहीं ज़्यादा सुर्ख़ियां हासिल कीं.
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जीते कई ख़िताब
डबल्स टेनिस में उन्होंने 43 डब्ल्यूटीए ख़िताब हासिल किए और 2015 में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बनने की उपलब्धि भी हासिल की. इसमें छह ग्रैंड स्लैम खिताब भी हासिल किए.
सानिया ने तीन ग्रैंड स्लैम मिक्स्ड डबल्स में हासिल किए, जबकि मार्टिना हिंगिस के साथ उन्होंने एक ही साल विंबलडन, यूएस ओपन और ऑस्ट्रेलियन ओपन का ख़िताब जीता.
43 डब्ल्यूटीए ख़िताब जीतने के अलावा सानिया 23 बार डब्ल्यूटीए डबल्स के फ़ाइनल में पहुंचीं. यहां तक कि 2022 में भी चेक गणराज्य की लुसी हर्डेका के साथ क्ले कोर्ट पर दो डब्ल्यूटीए फ़ाइनल में भी उन्होंने हिस्सा लिया.
सानिया ने अपने करियर का आख़िरी मैच उसी दुबई में खेला और जहां वह अपने बेटे और पति (पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक) के साथ अपना ज़्यादातर समय व्यतीत करती हैं.
मेलबर्न से दुबई तक का सफ़र भले व्यवस्थित दिख रहा हो लेकिन ये सानिया के व्यक्तित्व से पूरी तरह उलट रहा है. क्योंकि करियर में उन्हें समय-समय पर विवादों का सामना भी ख़ूब करना पड़ा.
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अपने पति, पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक और बेटे सनाएब के साथ
भारतीय टेनिस की पहली सुपरस्टार
उन्हें भारतीय टेनिस की पहली महिला सुपरस्टार तो कहा गया था लेकिन वास्तविकता यह है कि बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल के साथ सानिया मिर्ज़ा भारतीय खेल जगत की पहली महिला सुपरस्टार थीं.
चूंकि टेनिस कहीं ज़्यादा व्यापक और ग्लैमर वाला अंतरराष्ट्रीय खेल है, इसलिए सायना की तुलना में सानिया की लोकप्रियता ज्यादा रही.
दो दशक पहले सानिया अपने दौर की भारतीय महिला एथलीटों से काफी अलग थी. वह ना तो संकोची थीं और ना ही डरी सहमी. वह नई सहस्त्राब्दी वाली पीढ़ी की एथलीट थीं, आत्मविश्वास से भरी, स्पष्टता से अपनी बात रखने वाली, निडर और बिंदास.
2005 में इंडिया टुडे पत्रिका के लिए मैंने पहली बार उनका इंटरव्यू किया था.
तब उन्होंने कहा था, “कुछ लोग कहते हैं कि मुस्लिम लड़कियों को मिनी स्कर्ट नहीं पहनना चाहिए, वहीं कुछ लोग कहते हैं कि आप पर समुदाय को गर्व है. मैं उम्मीद करती हूं कि जीवन के दूसरे हिस्से में अल्लाह मुझे माफ़ कर देंगे. लेकिन आपको जो करना है, वह तो करना ही होगा.”
सानिया को जो करना था, उसे वो दो दशक के लंबे समय से करती आ रही हैं. खासतौर पर सानिया के तेज़ तर्रार फोरहैंड शॉट्स, जिनकी याद लंबे समय तक बनी रहेगी.
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विवादों का साया
भारतीय टेनिस इतिहास में उनके इन शाट्स की छाप अमिट रहेगी. हम लोगों ने सानिया मिर्ज़ा को ‘सोसायटी’ जैसी मैगज़ीन के पन्नों पर भी देखा है, क्योंकि वह टेनिस खिलाड़ी होने के साथ साथ एक सुपर सेलिब्रेटी भी रही हैं.
लेकिन सानिया मिर्ज़ा अपनी जिस सबसे बड़ी ख़ासियत के चलते याद की जाती रहेंगी, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. शुक्रवार को अपने संन्यास की घोषणा वाले भावुक पोस्ट में भी उन्होंने इसका ज़िक्र किया है.
सानिया जब छह साल की थीं, तब वह हैदराबाद के निज़ाम क्लब कोर्ट के कोच से लड़ गईं थीं. क्योंकि कोच उन्होंने टेनिस के गुर सीखने के लिहाज से कम उम्र का मान रहे थे.
टेनिस कोर्ट में मुक़ाबला करते वक्त सानिया का अंदाज़ एकदम अलग होता था. जब मुक़ाबला बेहद मुश्किल हो जाता, स्कोरलाइन बहुत नज़दीकी होने लगती, यानी जब दबाव बढ़ता तब सानिया अपने बालों को बांधती, अपने हाथों को पैरों के बगल में मारती और कोर्ट में लड़ने के लिए तैयार हो जाती थीं.
वहीं टेनिस कोर्ट के बाहर, वह वैसी महिला रहीं जिन्हें बताया जा रहा था कि कैसे जीना है. जिन्हें बेमतलब कई विवादों का सामना करना पड़ा. जो अविश्वसनीय ढंग से रूढ़िवाद से ऐसे लड़ रही थीं कि उन्हें अंगरक्षकों के साथ चलना पड़ रहा था. लेकिन दो दशक तक सानिया ने तो पीछे हटीं और ना ही रूकीं.
खेल करियर और जीवन के दौरान, महिला एथलीटों, पुरुष साथियों और करोड़ों प्रशंकों पर सानिया का जादू कई बार दिखा.
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