Incredible India: भारत की नायाब और खूबसूरत धरोहर है, शिवपुरी
मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी कहलाती है शिवपुरी। इसके कई कारण हैं। एक तो इसका प्राकृतिक स्वरूप और दूसरा यहां इतना कुछ देखने लायक है कि आपको इसके लिए अच्छा-खासा समय लेकर आना होगा। कल-कल बहते झरने, चारों ओर हरियाली का अंतहीन आवरण देखकर आप लंबे समय तक यहां रहना चाहेंगे। आखिर भागदौड़ भरी जिंदगी में किसे सुकून के दो पल नहीं चाहिए। बारिश के मौसम में यह शहर और भी सुंदर हो जाता है। समुद्र तल से अधिकतम 752 मीटर की ऊंचाई और दो राष्ट्रीय राजमागरें पर स्थित है शिवपुरी। इन्हीं विशेषताओं की वजह से सिंधिया राजवंश ने इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया और उसी समय इसे मिनी शिमला का नाम मिला।
यहां इतने प्राकृतिक झरने हैं कि आपको यहां आने के बाद इनके दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए, जैसे-कुछ भदैया कुंड, भूरा खो, टुण्डा भरका, भरका खो, पवा फॉल या सुल्तानगढ़ आदि। ये बारिश के मौसम में अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। यहां एक बेहद खूबसूरत इमारत है माधव विलास पैलेस। हालांकि, इसे लोगों के दर्शन के लिए नहीं खोला गया है, लेकिन इसकी भव्य वास्तुकला बाहर से ही मन मोह लेती है।
बेजोड़ इमारत जॉर्ज कैसल
माधव नेशनल पार्क में एक सुंदर इमारत जॉर्ज कैसल है, जिसे यहां सबसे ऊंचे क्षेत्र पर बनाया गया है। इसे जीवाजी राव सिंधिया ने बनवाया था। सूर्यास्त के समय में इसकी सुंदरता चरम पर होती है। यह साख्य सागर झील के साथ मिलकर और भी सुंदर प्राकृतिक दृश्य का निर्माण करता है।
तात्या टोपे की बलिदान स्थली
शिवपुरी का इतिहास वर्ष 1857 की क्रांति से भी जुड़ा हुआ है। 18 अप्रैल, 1859 को तात्या टोपे को यहां फांसी की सजा दी गई थी। उन्हें गुना जिले की पाडौन के जंगलों से अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें शिवपुरी लाया गया। यहां जिला जेल की बैरक नंबर 2 में रखा गया था। कलेक्ट्रेट के समीप स्थित कोठी नंबर 17 में उन पर मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुनाई गई। इसका तार अंग्रेजी हुकूमत द्वारा लंदन भी भेजा गया जो कि अब लंदन के म्यूजियम में रखा गया है। जिस कोठी में उन पर मुकदमा चलाया गया था, आजादी के बाद उसे राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक का दर्जा दिया गया है। इसमें तात्या टोपे से संबंधित अभिलेख भी रखे गए हैं। बलिदान स्थली पर प्रतिमा भी स्थापित की गई है। आजाद हिंद फौज के सेनानी कर्नल गुरूबख्श सिंह ढिल्लन की कर्म स्थली भी शिवपुरी रही है। आजादी के बाद वे शिवपुरी के हातौद ग्राम में आकर बस गए। यहां से चुनाव भी लड़ा, लेकिन विजयी नहीं हुए। उनका परिवार आज भी हातौद गांव में रहता है और यहां उनकी स्मृति में दर्शनीय पार्क भी बना हुआ है, जिसमें उनसे जुड़ी स्मृतियां देख सकते हैं।
मां–पुत्र के प्रेम की मिसाल छतरियां
आपको यह जानकर शायद ताज्जुब होगा कि देश में ताजमहल जैसी कई खूबसूरत इमारतें हैं जैसे- शिवपुरी में सिंधिया राजवंश की संगमरमरी छतरियां। ये मां बेटे के प्रेम की अनूठी मिसाल मानी जाती हैं। रात को जगमग प्रकाश में ये खिल उठती हैं। माधवराव प्रथम ने अपनी मां की याद में छतरी का निर्माण कराया था। उनकी इच्छा थी कि जब उनकी मृत्यु हो, तब उनकी छतरी भी उनकी मां की छतरी के ठीक सामने इस तरह से स्थापित की जाएं कि वह अपनी मां के दर्शन कर सकें। यही कारण हैं कि मां-बेटे की छतरियों को इस तरह से बनाया गया है ताकि एक छतरी से दूसरी छतरी को साफ देखा जा सके। पहली छतरी के निर्माण में स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। इसका निर्माण सफेद पत्थरों से कराया गया है। दूसरी छतरी का निर्माण पूरी तरह से संगमरमर से किया गया है। यहां संगमरमर के पत्थरों से ही प्रवेश द्वार भी बने हैं।
21 अगस्त, 1921 को राजमाता जीजाबाई की मूर्ति की स्थापना की गई थी, तो 6 जनवरी, 1926 को बेटे माधवराव प्रथम की मूर्ति की स्थापना की गई थी। प्रवेश द्वारों पर चांदी की परत भी चढ़ी हुई है। यहां हर सुबह आरती व शाम भजन भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
राजा नल की नगरी नरवर अब है हेरिटेज टाउन
शिवपुरी शहर से 28 किमी. दूर एबी रोड सतनवाडा से होकर नरवर तक पहुंच सकते हैं। आजादी के पहले नरवर जिला हुआ करता था। बाद में शिवपुरी को जिला बनाया गया। राजा नल और दमयंती की नगरी माने जाने वाले नरवर का इतिहास काफी पुराना है। यहां एक किस्सा प्रचलित है कि जब राजा नल सारा राजपाट जुए में हार गए थे तो वे राजपाट छोड़कर कहीं जा रहे थे तभी वहां मंदिर में पसर देवी की प्रतिमा प्रकट हुई। मान्यता है कि देवी आज भी राजा नल के खजाने की रक्षा कर रही हैं। दरअसल, यहां महल में ही पसर देवी का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। किले में पत्थर का विशाल सीप भी है जिसमें बड़ी मात्रा में चंदन घोला जाता था। नरवर को हेरिटेज टाउन का दर्जा भी दिया जा रहा है। किले की तलहटी में मां लोढी का मंदिर है।
सुरवाया की गढ़ी
शिवपुरी-झांसी फोरलेन पर शिवपुरी से 22 किमी. दूर सुरवाया की गढ़ी स्थित है। यह काफी प्राचीन है और इसमें मंदिर भी हैं। ऐसी किंवदंती हैं कि जब पांडव कौरवों से जुए में अपना राजपाठ हार गए थे और उन्हें अज्ञातवास दिया गया था। उस दौरान वे इस इलाके में रहे थे। यहां एक विशालकाय चक्की भी है जिसे भीम की चक्की कहा जाता है। मान्यता है कि इसे भीम चलाया करते यही भी कहा जाता है कि पांडवों ने शिवपुरी में बाणगंगा और बैराड़ में कीचक की मढ़ी में अपना अज्ञातवास काटा था।
चंद्रशेखर आजाद की कर्मभूमि खनियाधाना
खनियाधाना को क्रांतिकारी चंद्रशेखर की कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है जो शिवपुरी से 120 किमी दूर है। उन्होंने सीतापाठा मंदिर के घने जंगलों में बम के जो परीक्षण किए थे। उसकी निशानी आज भी देखी जा सकती है। आजाद को खनियाधाना स्वतंत्र रियासत के महाराजा खलक सिंह जूदेव लेकर आए थे। कहते हैं जब खलकसिंह जूदेव अपनी कार से झांसी के मिस्त्री सिराजुददीन के यहां पहुंचे थे तो वहां पर काकोरी कांड के बाद फरार चल रहे चंद्रशेखर आजाद मिले, जो सिराजुददीन के यहां मिस्त्री का काम कर रहे थे। सिराजुददीन ने उन्हें खलकसिंह के साथ खनियाधाना के लिए भेजा था लेकिन बसई के पास जब खलक सिंह लघुशंका के लिए गए तो उनके पैर के पास एक सांप आया जो उन्हें काटने वाला था तभी चंद्रशेखर आजाद ने बंदूक की गोली से सांप को मार दिया। इसके बाद खलकसिंह समझ गए कि यह मिस्त्री नहीं, बल्कि कोई क्रंतिकारी है। खलकसिंह और चंद्रशेखर की मित्रता हो गई और वह रात को महल में रूकते थे और दिन में सीतापाठा के घने जंगलों में बम बनाकर उसका परीक्षण करते थे। चंद्रशेखर आजाद का मूछों पर तांव देते हुए फोटो खनियाधाना के मम्माजू पेंटर ने ही बनाया था।
सैरः कब और कैसे?
शिवपुरी जाने के लिए ग्वालियर नजदीकी एयरपोर्ट है। यह शहर रेल नेटवर्क से देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा है। साथ ही, नियमित बस सेवाएं भी हैं जिनसे आप यहां आ सकते हैं। यहां आने का उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च है।
अन्य खबरों के लिए हमसे फेसबुक पर जुड़ें। आप हमें ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं. हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब कर सकते हैं।
किसी भी प्रकार के कवरेज के लिए संपर्क AdeventMedia: 9336666601