रालोद से चुनाव चिह्न छिना तो सपा से गठबंधन के नतीजों पर होगा असर, वेस्टर्न UP में लगेगा झटका
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नगरीय निकाय चुनाव से पहले राष्ट्रीय लोकदल का उत्तर प्रदेश से राज्य पार्टी का दर्जा छिन जाने का असर गठबंधन के सहयोगी समाजवादी पार्टी पर भी पड़ेगा। सपा पश्चिम यूपी में रालोद के ही सहारे भाजपा को चुनौती दे रही थी। हाल ही में हुए खतौली विधानसभा उपचुनाव में रालोद की जीत ने सपा को और बल दे दिया था। अगर रालोद का चुनाव चिह्न छिन गया तो सबसे ज्यादा नुकसान पश्चिम यूपी में गठबंधन को हो सकता है।
रालोद की नींव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ने वर्ष 1996 में रखी थी। वर्ष 2002 में उसे राज्य पार्टी का दर्जा मिला था। करीब 21 वर्ष बाद उसकी राज्य पार्टी की मान्यता खत्म हो गई है। अब रालोद पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल माना जाएगा। इस समय रालोद के उत्तर प्रदेश में नौ विधायक हैं। रालोद राजस्थान में भी सक्रिय रहती है, वहां उसका एक विधायक है। प्रदेश में वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में है।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने सपा के साथ गठबंधन करते हुए 33 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे सिर्फ आठ सीटों पर ही सफलता मिली थी। उसे मात्र 2.85 प्रतिशत वोट ही मिला था। हाल ही में खतौली विधानसभा के उपचुनाव में उसे सफलता मिली थी। चुनाव आयोग के निर्णय से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पार्टी निकाय चुनाव भी सपा के साथ मिलकर लड़ने जा रही है। इसका असर गठबंधन पर तो नहीं पड़ेगा किंतु रालोद, सपा से सीटें मांगने में कमजोर जरूर पड़ जाएगी। अगर चुनाव चिह्न छिन गया तो रालोद की मुसीबतें और बढ़ जाएंगी।
सपा भी रालोद के प्रत्याशियों को अपने चुनाव चिह्न पर मैदान में उतार सकती है। ऐसे में जीतने वाले प्रत्याशी सपा के ही कहलाएंगे। इसका असर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भी रालोद पर पड़ेगा। दरअसल, राज्य पार्टी का दर्जा खत्म होने के बाद उसका चुनाव चिह्न (हैंडपंप) मुक्त श्रेणी में चला जाएगा। ऐसे में रालोद या कोई भी दल उसे हासिल करने के लिए आयोग में अनुरोध कर सकता है। रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे कहते हैं कि निश्चित तौर पर हमारी पार्टी के लिए यह बड़ा झटका है। जल्द ही पार्टी रणनीति बनाकर आगे की तैयारी करेगी। चुनाव चिह्न बचाने के लिए भी पार्टी प्रयास करेगी।
ऐसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
- कोई पार्टी तीन राज्य मिलाकर लोकसभा की दो प्रतिशत सीटें (11 सीटें) जीते।
- कोई पार्टी चार लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में छह प्रतिशत वोट हासिल करे।
- किसी पार्टी के पास चार या इससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता हो।
- इन शर्तों में जो पार्टी एक भी शर्त पूरा करती है, उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है।
वर्ष 2019 के लोस चुनाव में नहीं मिली थी एक भी सीट
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद के हिस्से में एक भी सीट नहीं आई थी। उसे महज 1.69%वोट हासिल हुए थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव उसे एक सीट पर जीत हासिल हुई थी, हालांकि वोट 1.78% ही मिला था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी रालोद के खाते में एक भी सीट नहीं आई थी। उसे चुनाव में 0.86% वोट ही मिले थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने 2.33% वोट पाकर नौ सीटों पर जीत दर्ज की थी।
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