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15 करोड़ वर्ष पहले कैसा दिखाई देता था ब्रह्मांड,जेम्‍स वेब टेलीस्‍कोप से वैज्ञानिक ब्रह्मांड से जुड़े कई रहस्‍य सुलझेगा 

ब्रह्मांड के रहस्‍यों को आज भी हमारे वैज्ञानिक खोल नहीं पाए हैं। आज भी ब्रह्मांड वैज्ञानिकों के लिए एक नई पहेली बना हुआ है। इस पहेली को अब जेम्‍स वेब टेलीस्‍कोप के जरिए सुलझाने की कोशिश की जाएगी। ये टेलीस्‍कोप पहले से ब्रह्मांड में झांक रही टेलीस्‍कोप से काफी अलग है। इसको 28 दिसंबर 2021 को इसे लांच किया जाएगा। कहा जा रहा है कि ये दूरबीन ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह बदल कर रख देगी। इस दूरबीन की मदद से वैज्ञानिक दूरस्थ पिंडों को देख सकेंगे।

ज्यादातर दूरबीनें प्रकाश को जमा करने और उसे फोकस करने के लिए आईनों का इस्तेमाल करती हैं. जितना बड़ा शीशा होगा, दूरबीन भी उतनी शक्तिशाली होगी. आप उन्हें पहाड़ों पर और रेगिस्तानों में देख सकते हैं और उपग्रहों के ऊपर भी वे लगी रहती हैं. अंतरिक्ष में होने का मतलब ये है कि धरती के वायुमंडल से किसी किस्म का अवरोध नहीं रहता है. इसके चलते बिल्कुल साफ और हाई रिजोल्युशन वाली छवियां मिलती हैं।

इस वेब टेलीस्‍कोप में अब तक का सबसे बड़ा प्राइमरी ग्‍लास लगा हुआ है। इसमें 18 स्वर्ण-जड़ित षट्कोणीय छोटे दर्पण शामिल हैं जो हबल से भी छह गुना से ज्यादा बड़े आकार के हैं। इसकी एक बड़ी खासियत ये है कि ये ब्रह्मांड की बेहद बारीक चीज का पता लगा सकेगी। साथ ही ये इंफ्रारेड लाइट में भी झांक सकेगी। इसका अर्थ ये है कि ये ब्रह्मांड में अधिक दूर तक झांक सकेगी। इससे ब्रह्मांड के रहस्‍यों का पता लगाकर उसको समझने में इससे मदद मिल सकेगी। आपको बता दें कि हबल दूरबीन मुख्यतः दृष्टिगोचर प्रकाश को ही देख पाती है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि सभी गर्म पिंड, इंफ्रारेड विकिरण उत्सर्जित करते हैं। इंफ्रारेड लाइट का इस्तेमाल टीवी रिमोटों, नाइट विजन कैमरों और मौसमी उपग्रहों में भी किया जाता है।

ब्रह्मांड में मौजूद बेहद दूर की गैलेक्सियों और तारों को देखने के लिए हमें इंफ्रारेड लाइट की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि इस टेलीस्‍कोप की मदद से इस बात का पता चल सकेगा कि 10-25 करोड़ साल पहले जब ब्रह्मांड में महाविस्‍फोट हुआ था तब वो कैसा दिखाई देता था। वैज्ञानिकों को इस बात की भी उम्‍मीद है कि इससे ब्रह्मांड की पहली शिशु तस्वीरें ही नहीं संभवतः पहली आकाशगंगाओं की तस्वीरें भी मिल सकेंगीं। इसकी वजह से हमारी नजरें वो सब कुछ देख सकेंगी जो हबल के जरिए भी नहीं देखा जा सका है। जेम्स वेब दूरबीन के जरिए धूल के बादलों के पार जाकर देखा जा सकेगा। इससे तारों और ग्रहों के गठन को भी बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।

इस वेब टेलीस्‍कोप में लगे साढ़े छह मीटर चौड़े दर्पण को अंतरिक्ष में भेजना आसान काम नहीं है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि आरियान 5 राकेट के जरिए केवल पांच मीटर से कम चौड़ी चीज को ही भेजा जा सकता है। इसलिए इसको इस तरह से डिजाइन किया गया है कि विशालकाय हाईटेक अरबों डॉलर वाले ओरीगामी टुकड़े की तरह फोल्ड हो सके और राकेट में फिट की जा सके। ये टेलीस्‍कोप दरअसल, इंजीनियरिंग का एक अदभुत नमूना है। ब्रह्मांड में लांच होने के बाद इसको पूरा खुलने में करीब तीन सप्‍ताह का समय लग जाएगा। इस दौरान धरती पर स्थित नियंत्रण टीम को वेब के पहले हिस्से दूर से ही खोलने होंगे। ये टेलीस्‍कोप वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता की पूरी परीक्षा लेगा। इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं होगी। इस दूरबीन का आखिरी गंतव्य धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर होगा। इसलिए इसमें आने वाली किसी भी खराबी को ठीक करना लगभग नामुमकिन होगा।

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