बांग्लादेश की राजनीतिक आपदा में सांप्रदायिकता फैलाने का प्रयास न करें: शाहनवाज़ आलम”
Yogi ji should not find an opportunity to spread communalism in the political disaster of Bangladesh - Shahnawaz Alam
अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बांग्लादेश की राजनीतिक आपदा को सांप्रदायिकता फैलाने के अवसर की तरह देख रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि बांग्लादेश के हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की कहानी सुना के वो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या पर बढ़त बनाकर अपनी कुर्सी बचा लेंगे. उन्होंने योगी सरकार से बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस से सीख लेने की सलाह दी जिन्होंने सत्ता संभालने की पहली शर्त ही अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बताया है.
कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बांग्लादेश आंतरिक राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. पड़ोसी देशों की अस्थिरता न भारत के हित में है और न भारतीय उपमहाद्वीप के हित में है. ऐसे में ज़िम्मेदार पड़ोसी मुल्क होने के नाते बांग्लादेश में स्थिरता बहाली की कोशिश की जानी चाहिए न की उसका फ़ायदा उठाकर अपने देश में सांप्रदायिक माहौल बनाना चाहिए. उन्होंने हिंदी मीडिया के एक हिस्से द्वारा बांग्लादेश में आर्थिक और रोजगार आधारित कारणों से मची अराजकता को सांप्रदायिक रूप देकर भाजपा के एजेंडा को प्रसारित करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है कि बांग्लादेश के हिंदू नेता भी मोदी सरकार के समर्थक मीडिया समूहों जैसे आर रिपब्लिक पर बांग्लादेश के हिंदू समुदाय पर हमले की झूठी खबरें चलाकर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि योगी आदित्यनाथ का बयान उत्तर प्रदेश में रह रहे बांग्लाभाषी भारतीय मुसलमानों के खिलाफ हिंसा उकसाने की कोशिश का हिस्सा है. इलाहाबाद और लखनऊ समेत कई शहरों में असम और पश्चिम बंगाल के गरीब मुस्लिम कूड़ा बीनने से लेकर साफ सफ़ाई जैसे मजदूरी वाले काम करते हैं. पहले भी आरएसएस और भाजपा से जुड़े अराजक तत्वों ने उन्हें बांग्लादेशी बताकर प्रताड़ित किया है. मुख्यमंत्री बांग्लादेश की राजनीतिक उथल-पुथल का लाभ उठाकर फिर से वैसा ही माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बांग्लादेश के घटनाक्रम से राजनैतिक लाभ उठाने के बजाय भाजपा सरकार को सबक सीखने की ज़रूरत है कि किसी खास विचारधारा, पार्टी के समर्थकों या जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में भर देने से किस तरह का विद्रोह पैदा हो सकता है. उन्होंने कहा कि आरएसएस से जुड़े लोगों को विश्वविद्यालयों में बिना मेरिट के ही प्रोफेसर नियुक्त करना और पिछड़ों दलितों को अयोग्य बताकर उनकी सीटों को सामान्य वर्ग से भर देना या लेटरल एंट्री से आरएसएस समर्थकों को आईएएस बना देना और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत सिर्फ़ एक ही कथित उच्च जाति के लोगों को नौकरियां देना भारत में भी अराजकता की स्थिति पैदा कर सकता है.
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