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अदानी ने इसराइल के हाइफ़ा पोर्ट को पाने के लिए क्यों चुकाई बड़ी क़ीमत

भारत के सबसे चर्चित बिजनेसमैन गौतम अदानी ने इसराइल के दूसरे सबसे बड़े पोर्ट का अधिग्रहण किया है.

मंगलवार को इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस डील को भारत-इसराइल के लिए ‘मील का पत्थर’ बताया और गौतम अदानी ने कहा कि वे इसराइल में और भी निवेश करते रहेंगे.

ये उस समय हो रहा है, जब अमेरिकी इंवेस्टमेंट रिसर्च फ़र्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के कारण अदानी समूह मुश्किल दौर से गुज़र रहा है और गौतम अदानी का नाम एशिया के सबसे अमीर शख़्स की फ़ेहरिस्त में नीचे खिसक गया है.

ऐसे समय में अदानी का इसराइल का सबसे बड़ा टूरिस्ट क्रूज़ और शिपिंग के मामले में दूसरा सबसे बड़े पोर्ट के इस सौदे की चर्चा हो रही है. ये इसराइल में भारत का अब तक का सबसे बड़ा निवेश है और इसराइल में बीते एक दशक का सबसे बड़ा विदेश निवेश है.

बीते साल जुलाई में दुनिया के सबसे बड़े पोर्ट डेवलपर और संचालक अदानी समूह और स्पेशल इकॉनमिक ज़ोन लिमिटेड ने इसराइल के इस पोर्ट की लीज़ का टेंडर अपने नाम किया.

ये लीज़ 2054 तक की है. इस डील में 70 फ़ीसदी की हिस्सेदारी अदानी पोर्ट के पास है और 30 फ़ीसदी की मालिक इसराइली केमिकल और लॉजिस्टिक कंपनी गडौत के पास है.

इसराइल के स्थानीय अख़बार हारेत्ज़ ने इस डील पर बीते साल जुलाई में एक लेख लिखा था.

जिसमें कहा गया था कि इस सौदे को पाने के लिए अदानी ने इतनी बड़ी बोली लगाई कि कोई और कंपनी बोली लगा ही नहीं सकी.

रिपोर्ट कहती है, “दो साल से अदानी पोर्ट हाइफ़ा डील को पाने की कोशिशों में लगा था और जब उन्होंने बिड पेश किया तो अदानी ने इसकी क़ीमत इतनी अधिक की कि दूसरे नंबर जो बोली लगाई गई थी, उससे ये क़ीमत 55 फ़ीसदी ज़्यादा थी. इसराइल ने इस डील के लिए 870 मिलियन डॉलर की उम्मीद जताई थी लेकिन अदानी ने 1.18 बिलियन डॉलर का दाव लगाया और इसराइल सरकार की उम्मीद से कहीं बड़ा ऑफ़र दे दिया.”

जब स्थानीय कंपनियों को इस डील के लिए अदानी के ऑफ़र की क़ीमत का पता चला, तो वह ख़ुद इस डील के लिए बोली लगाने से पीछे हट गईं.

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हारेत्ज़ ने डील के समय लिखा था कि डील के लिए लगाई गई इस क़ीमत से साफ़ हो गया था कि गौतम अदानी इसे महज़ एक पोर्ट डील नहीं मान रहे, बल्कि ये एक स्ट्रैटजिक निवेश है.

इसराइल में रह रहे भारतीय पत्रकार हरेंद्र मिश्रा ने इस डील पर नज़र रखी है.

वे कहते हैं, “ये कोई आम डील नहीं है ये एक स्ट्रैटजिक एक्विज़िशन है. जितनी बड़ी बोली अदानी ने लगाई उसे देख कर स्थानीय कंपनियाँ तो दूर ख़ुद इसराइल सरकार भी हैरान थी क्योंकि ये पोर्ट बिलकुल बदहाली की दौर में है. इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से भी और एडमिनिस्ट्रेशन के लिहाज से भी. ऐसे में पोर्ट के लिए उम्मीद से अधिक पैसे देने के पीछे कोई ना कोई बड़ी वजह मानी जा रही है. अभी भी पोर्ट पर काम चल ही रहा है.”

‘डील के पीछे है चीन का डर और अमेरिका का दबाव’

अदानी इस वक़्त भारत में 13 टर्मिनलों का संचालन करते हैं और भारत की मैरिटाइम कमाई पर अदानी समूह की 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी है.

पश्चिम में अदानी पोर्ट की कोई होल्डिंग नहीं है.

ऐसे में माना जा रहा है कि अदानी की हाइफ़ा पोर्ट पर एंट्री एशिया और यूरोप के बीच मैरिटाइम ट्रैफ़िक में इज़ाफ़ा होगा, भूमध्यसागर में वह एक बड़ा एशियाई प्लेयर बनकर उभरेगा.

इस डील के फ़ाइनल होने के समय गौतम अदानी ने ट्वीट किया था, “इस डील का कूटनीति और ऐतिहासिक महत्व है. हाइफ़ा में आकर मैं ख़ुश हूँ, जहाँ 1918 में भारतीयों ने सैन्य इतिहास के सबसे महान घुड़सवारों की टुकड़ी का नेतृत्व किया था.”

14 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इसराइल के दौरे पर थे और इस दौरान एक अप्रत्याशित, बिना किसी पूर्व योजना के कूटनीतिक शिखर सम्मेलन हुआ.

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इस सम्मेलन में जो बाइडन, इसराइल के उस समय के प्रधानमंत्री याएर लापिड, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूएई के शासक मोहम्मद बिन ज़ाएद शामिल हुए.

इस सम्मेलन को नाम दिया गया I2U2. इस सम्मेलन का उद्देश्य चारों देशों के बीच निवेश के सहयोग को बढ़ाना है. इस सम्मेलन को चीन का पाकिस्तान और ईरान के साथ मिल तैयार किए गए फ़ोरम के काउंटर के तौर पर भी देखा गया.

इस सम्मेलन का फल भी तुरंत देखने को मिला. नेताओं की इस मुलाक़ात के बाद उसी दिन गौतम अदानी ने हाइफ़ा पोर्ट के निजीकरण का बिड अपने नाम कर लिया.

हरेंद्र मिश्रा ने कहते हैं, “जिस दिन चारों देशों के नेताओं ने ये बैठक की ठीक उसी दिन ये बिड अदानी ने जीत ली. इस डील के पीछे माना जा रहा है कि अमेरिका का बहुत दबाव था. अमेरिका बिल्कुल नहीं चाहता था कि किसी भी सूरत में ये पोर्ट चीन को मिले.”

जुलाई 2019 में हाइफ़ा के इस पोर्ट के पास ही एक अन्य पोर्ट को चीन ने 25 साल की लीज़ पर लिया था.

इस डील ने अमेरिकी प्रशासन में उथल-पुथल मचा दी थी. इसराइल अमेरिका का बेहद क़रीबी सहयोगी है.

अमेरिका को डर था कि अफ्रीका, पूर्व एशिया की तरह चीन इसराइल में अपनी पैठ ना मज़बूत कर ले. अमेरिका और इसराइल कई संवेदनशील राष्ट्रीय-सुरक्षा के मुद्दे पर एक-दूसरे का साथ देते हैं. जैसे ईरान पर अमेरिका को इसराइल का पूरा साथ मिलता है.

हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, “अमेरिका इस डील के पीछे है क्योंकि वह नहीं चाहता था कि चीन को कोई मौक़ा मिले. अमेरिका लगातार इसराइल पर ये दबाव बना रहा था कि ये डील चीन के साथ नहीं होनी चाहिए. लेकिन बदले में इसराइल ने भी ये कहा कि टेंडर के वक़्त अगर कोई निवेश नहीं करने आएगा, तो डील उसे मिलेगी जो बोली लगाएगा. ऐसे में अमेरिका ने सुनिश्चित किया कि डील को किसी भी हाल में चीन के हाथों में जाने से बचाया जाए. साथ ही भारत भी इसराइल का क़रीबी सहयोगी है, तो ऐसे में चीन का यहाँ बढ़ता दख़ल उसके लिए भी चिंता का कारण था.”

इसराइल में एक दशक का सबसे बड़ा निवेश

इसराइल में जानकार ये मान रहे हैं कि ये वहाँ बीते एक दशक में हुआ सबसे बड़ा विदेशी निवेश है.

इस पोर्ट की स्ट्रैटजिक लोकेशन इसे ख़ास बनाती है. ये भूमध्यसागर में एशिया और यूरोप के बीच एक हब बन सकता है. कई रिपोर्ट में ये भी दावा किया जा रहा है कि इस पोर्ट के शुरू होने से स्वेज़ नहर का महत्व कम हो जाएगा.

हरेंद्र मिश्रा के मुताबिक़, “भारत का इस पोर्ट पर आना इसलिए भी अहम है क्योंकि अगर इसे हब बनाना है तो इसराइल के पड़ोसी मुल्क लेबनान, जॉर्डन सीरिया के सहयोग की ज़रूरत होगी. इन देशों के साथ इसराइल के संबंध तो बहुत बेहतर नहीं है लेकिन अगर भारत इस प्रोजक्ट में शामिल रहता है, तो इन देशों को एक साथ ला पाना आसान हो जाएगा.”

माना जा रहा है कि अदानी यहाँ एक रेलवे लिंक भी आने वाले वक़्त में बनाएँगे, जो हाइफ़ा को जॉर्डन से होते हुए सऊदी अरब से जोड़ेगा.

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हाइफ़ा पोर्ट का इतिहास

हाइफ़ा के इतिहास में भारत की मौजूदगी

मंगलवार को इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गौतम अदानी की मौजूदगी में कहा कि ये जगह डील एक मील का पत्थर है.

100 साल पहले भारतीयों ने इस शहर को आज़ाद कराया था. आज फ़िर भारत इस पोर्ट के ज़रिए आर्थिक रूप से इसराइल को मज़बूती दे रहा है.

इस शहर का इतिहास भारत से जुड़ा हुआ है.

23 सितंबर को इसराइल हाइफ़ा दिवस के रूप में मनाता है.

साल 1918 में पहले विश्व युद्ध में ब्रितानी सामाज्य की ओर से भारत की घुड़सवार टुकड़ियों ने इसराइल के हाइफ़ा शहर को तुर्की और जर्मनी की सेना से आज़ाद कराया था.

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