Uttarakhand

कुंभ योग में छलका आस्था का अमृत

नई उमंग, नई तरंग, नया उल्लास। सूर्य व चंद्र मेष राशि और गुरु कुंभ राशि में संचरण कर रहे हैं। प्रकृति एक नए बदलाव की ओर अग्रसर हो चुकी है। मौसम में भी इस बदलाव का असर साफ महसूस किया जा सकता है। यह ठीक वैसा ही योग है, जैसा समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को पाने के लिए देव-दानव संघर्ष के दौरान बना होगा। ऐसे अमृत योग में कौन भला मां गंगा का सानिध्य नहीं पाना चाहेगा। हर श्रद्धालु के चेहरे पर इस भाव को सहजता से पढ़ा जा सकता है।

हालांकि, कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के चलते श्रद्धालुओं की आमद घटी है और अखाड़ों ने भी अपना लाव-लश्कर सीमित कर दिया है, लेकिन आस्था में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती। दसों दिशाओं में संगीत लहरियों के बीच गंगा मैया और अखाड़ों के ईष्ट देवों की जै-जैकार गूंज रही है। अभी सुबह के पौने नौ बजे हैं। मेला प्रशासन की ओर से हरकी पैड़ी समेत आसपास के घाटों से श्रद्धालुओं को हटाया जा रहा है। अब यहां शाही स्नान के लिए अखाड़ों को पहुंचना है। स्नान क्रम के अनुसार इस बार भी निरंजनी अखाड़े को ही पहले स्नान करना है। उसके साथ आनंद अखाड़ा भी रहेगा।

पंद्रह मिनट गुजरे होंगे कि दोनों अखाड़ों का लाव-लश्कर अवधूती आभा बिखेरता हुआ हरकी पौड़ी आ पहुंचा। यही कुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण है। इस दौरान गंगा में डुबकी लगाने से ज्यादा अवधूतों को डुबकी लगाते देखना अपने आप में अविस्मरणीय अनूभूति है। तकरीबन आधे घंटे बाद इन अखाड़ों ने हरकी पैड़ी से वापसी की और थोड़ी ही देर में हरकी ब्रह्मकुंड से लेकर महिला स्नान घाट तक गंगा का तट श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के साथ ही अग्नि व आह्वान अखाड़ों के साधु-संन्यासी और अवधूतों से पट गया। इस सबके बीच किन्नर अखाड़े के भी अपने अलग ही रंग हैं। अब बारी थी महानिर्वाणी व अटल अखाड़े की और उन्होंने भी ज्यादा देर प्रतीक्षा नहीं कराई। अवधूती उल्लास बिखेरने के बाद जैसे ही ये अखाड़े हरकी पैड़ी से विदा हुए इंतजार होने लगा तीनों बैरागी (वैष्णव) अणियों के पहुंचने का।

इन तीनों अणियों में 18 अखाड़े और 1200 खालसे शामिल हैं, इसलिए इनका लाव-लश्कर भी सबसे बड़ा होता है। धीरे-धीरे अपने ईष्ट और प्रतीकों के साथ बैरागी संत हरकी पैड़ी पहुंचने लगे हैं और तकरीबन 20 मिनट बाद पूरा गंगा तट वैराग्य के भाव में डूबा प्रतीत होने लगा। हालांकि, इस स्नान पर बैरागी संत-महंतों की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी कि सोमवती अमावस्या पर देखने को मिली। बैरागियों के अपने अखाड़ों की ओर प्रस्थान के बाद उदासीन अखाड़ों के दीदार को हमें लंबा इंतजार करना पड़ा। 

एक-सवा घंटे हरकी पैड़ी पर वीरानी पसरी रही, तब जाकर उदासीन संतों के कदम यहां पड़े। पहले आमद हुई श्री पंचायत अखाड़ा बड़ा उदासीन की, जिसके स्नान का भी अलग ही अंदाज है। तकरीबन आधा घंटे अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना के बाद उदासीन संतों ने गंगाजल का पावन स्पर्श किया। उनके हरकी पैड़ी से विदा होने के बाद शाही अंदाज में श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन का प्रवेश हुआ। आखिर में स्नान को पहुंचा निर्मल अखाड़ा और इसी के साथ कुंभ का दूसरा शाही स्नान संपन्न हुआ।

उधर, हरकी पैड़ी में प्रवेश प्रतिबंधित होने के कारण कुंभनगरी के अन्य घाटों पर दिनभर आस्था की डुबकियां लगती रहीं। कोरोना के चलते अपेक्षा से काफी कम श्रद्धालुओं के स्नान को पहुंचने के कारण शहर में किसी तरह की सख्ती भी नजर नहीं आई। लोग सभी रास्तों से आवाजाही करते रहे। हां! इतना जरूर हुआ कि शाम को गंगा आरती के बाद हरकी पैड़ी एक बार फिर श्रद्धालुओं से गुलजार हो उठी। इससे पहले सुबह भी पौने नौ बजे तक यहां आम श्रद्धालुओं को स्नान की छूट रही। इसी कारण मध्यरात्रि से लेकर भोर की बेला तक मेष संक्रांति स्नान को सर्वाधिक श्रद्धालु उमड़े। कुंभ का मुख्य स्नान शांतिपूर्ण और उल्लास के साथ संपन्न होने पर सभी ने राहत की सांस ली। 

Related Articles

Back to top button
Event Services