पिछले साल आज के ही दिन सड़कें और घर हो गए कैदखाने
ठीक एक साल पहले। तिथि 22 मार्च। जब कोरोना के मामले तेजी से बढऩे लगे थे। महामारी हर किसी को अपनी चपेट में लेने को आतुर थी। पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना की चेन तोडऩे के लिए अचानक जनता कफ्र्यू का एलान किया। पूरे देश के साथ अपना शहर हल्द्वानी भी थम गया। सड़कें सूनी हो गई और घर कैदखाने। जहां चहल-पहल थी, सबकुछ ठहर सा गया। जो जहां था, वहीं अटक गया। आज इस घटना को एक साल बीत गए हैं। अब माहौल में रौनक तो है, लेकिन संशय अभी भी बना हुआ है।
वैसे तो देश भर में कोरोना के मामले जनवरी से ही आने लगे थे, लेकिन नैनीताल जिला इससे अछूता ही था। बीमारी का भय था। पर एक भी केस नहीं होने से राहत भी थी। ऐसे में लोगों की कामकाज की भागदौड़ जारी थी। बोर्ड परीक्षाएं चल रही थी और कॉलेजों में पढ़ाई। बाजार खुले थे और बीमारी की आहट परेशानी बढ़ाने लगी थी। देखते ही देखते लॉकडाउन की ओर बढऩे लगे थे। शुरुआत जनता कफ्र्यू से हुई। आज यानी 22 मार्च का ही वो दिन था, जब हम सहमे हुए पूरी तरह घरों में कैद थे। शाम होते ही थाली व घंटी बजाकर हमने अपने अंदर के डर को कम करने की कोशिश तो की, लेकिन महामारी तेजी से पांव पसार रही थी। आज भी उस दिन की याद करते ही लोग ठहर से जाते हैं और दुआ करते हैं, दोबारा ऐसे दि नन देखने को मिलें।
अचानक घर में कैद होना पड़ा था। उस दिन ने हम सभी को धरातल दिखा दिया। परेशानी तो बहुत हुई। बड़ा संकट आया था। वो दिन हम कभी नहीं भूल सकते। अब भी हमें खतरे से बचना है।
जनता कफ्र्यू हम सभी के जीवन का अविस्मरणीय दिन था। हमने अपने जीवन में ऐसा होने की कल्पना तक नहीं की थी। बीमारी से सहमे जरूरी थे, लेकिन उस दिन को भी हमने खुशी से जीने की कोशिश की।
ऐसा दौर आया, जो अप्रत्याशित था। जिंदगी ठहर सी गई थी। मुनष्यता के सामने संकट आते हैं। आत्मविश्वास से सामना करना पड़ता है। खतरा तो अभी टला नहीं, लेकिन वैसा भय अब नहीं है
मुश्किल समय था। मरीजों को देखने में भी डर लगने लगा था। फोन से भी सलाह लेने वालों की संख्या बढ़ गई। खुद भी अजीब सा लगने लगा था। ऐसा पहली बार देखा था। खुद को संभालना भी चुनौती बना रहा।
पहले एकदम अचंभित करने वाला निर्णय लगा। इतिहास में ही ऐसा पहली बार हुआ था। पूरी तरह घर के अंदर ही कैद रहना नया अनुभव था। धैर्य की भी परीक्षा हुई। खुद को व्यस्त रखने के लिए कुछ और काम किया।
जनता कफ्र्यू के ऐलान होते ही लगा कि पता नहीं क्या हो गया। आखिर कब तक ऐसे ही रहना पड़ेगा। कुछ समय जब परिवार के साथ रहने लगे तो पॉजिटिव लगा। लेकिन इससे बहुत कुछ प्रभावित होने लगा।
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