मणिकूट पर्वत की पौराणिक जानिए इसका महत्व
भगवान नीलकंठ महादेव की भूमि और ऋषि-मुनियों की तपस्थली मणिकूट पर्वत की पौराणिक परिक्रमा यात्रा गुरुवार की सुबह पांडू गुफा की पूजा अर्चना के साथ आरंभ हो गई है। इस परिक्रमा में बारह सिद्ध द्वारों की विधिवत पूजा-अर्चना का महत्व है। तो चलिए आपको मणिकूट परिक्रमा के बारह द्वारों के बारे में भी बताते हैं।
गुरुवार को आत्मकुटीर आश्रम के संत राही बाबा के सानिध्य में मणिकूट परिक्रमा की शुरुआत लक्ष्मणझूला में पांडु गुफा स्थित प्रथम द्वार की पूजा के साथ की गई। इस दौरान पारंपरिक वाद्यों के साथ वैदिक मंत्रों से पूरा माहौल गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने हर-हर महादेव व बम-बम भोले के जयकारों से यात्रा का शुभारंभ किया। इस यात्रा में बारह द्वारों पर हुनमान, भगवान विष्णु, गरुड़, गुरु वृहस्पति, 64 योगिनी, माता काली, बाल कुंवारी माता, माता भुवनेश्वरी व उनकी सहयोगी शक्तियां माता कूष्मांडा, माता विध्यवासिनी, भगवान शिव के गण नंदी, वीरभद्र महादेव, भगवान गणेश व शिव के प्रधान गणों की पूजा की जाती है।
कार्यक्रम संयोजक पूर्व दायित्वधारी रमेश उनियाल ने बताया कि पहले यह यात्रा 2 दिन में वाहनों और पैदल चलकर पूरी की जाती थी। मगर, अब सड़क मार्ग होने के कारण यात्रा एक ही दिन में पूरा करना संभव हो गया है। उन्होंने बताया कि गुरुवार देर सायं यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचेगी।
तीर्थनगरी में गंगा की बायीं ओर स्थित मणिकूट पर्वत का आदि काल से ही धार्मिक महत्व रहा है। भगवान शिव का प्राचीन नीलकंठ मंदिर भी इसी मणिकूट पर्वत पर ही स्थित है। इस पर्वत की तलहटी में आकर मां गंगा का वेग भी धीमा पड़ जाता है। मान्यता है कि इस तपोभूमि में ध्यान व समाधि में लीन ऋषि-मुनियों के तप में गंगा का कोलाहल कोई खलल न डाले, इसलिए मां गंगा यहां आकर अपने वेग को शांत कर देती है।
मान्यता है कि स्वर्गारोहिणी के समय पांडवों ने भी मणिकूट पर्वत पर तप किया था। त्रेता युग में भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने भी यहां तप किया था, जबकि द्वापर युग में महावीर हनुमान ने भी इस स्थान को तप के लिए चुना था। वहीं, सतयुग में देवताओं के गुरु वृहस्पति द्वारा भी यह स्थान पूजित माना जाता है।
मणिकूट परिक्रमा के यह हैं बारह द्वार
प्रथम द्वार- पांडु गुफा (लक्ष्मणझूला)
द्वितीय द्वार- गरुड़चट्टी
तृतीय द्वार- फूल चट्ट
चतुर्थ द्वार- काली कुंड (आत्मकुटीर)
पंचम द्वार- पीपल कोटी
षष्टम द्वार- दिउली
सप्तम द्वार- सयार गढ़ (तैड़ो)
अष्टम द्वार- मां विध्यवासिनी मंदिर
नवम द्वार- नंदी द्वार (बीन नदी)
दशम द्वार- वीरभद्र (बैराज)
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