इन्कम टैक्स:जब तक ज़्यादातर लोग टैक्स दायरे में नहीं आते, बड़ी राहत की गुंजाइश नहीं
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बजट आने वाला है। सबकी निगाह इन्कम टैक्स स्लैब पर है। लेकिन लगता है इसमें कुछ होने वाला नहीं है। माना कि नौ राज्यों और लोकसभा चुनाव के पहले का भी यही बजट होगा लेकिन सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मोदी सरकार कभी चुनावी बजट लाई ही नहीं। इस बार भी ऐसी कोई संभावना नहीं है। घुमा- फिराकर कुछ कर दिया जाए तो अलग बात है लेकिन सीधे- सीधे इन्कम टैक्स स्लैब में कुछ करने की गुंजाइश नहीं लगती। दरअसल सरकार की दुविधा ये है कि 140 करोड़ के इस देश में इन्कम टैक्स देने वाले केवल आठ करोड़ लोग हैं। इसका मतलब ज़्यादातर कर्मचारी ही टैक्स दे रहे हैं। वो भी इसलिए कि तनख़्वाह में से सीधे कट जाता है। भारत सरकार के कर्मचारी और पेंशनर्स लगभग एक करोड़ हैं। एक करोड़ ही राज्य सरकारों के कर्मचारी हैं। चार करोड़ वे कर्मचारी हैं जो ऑर्गनाइज सेक्टर के हैं। अधिकांश लोग यही हैं जो टैक्स देते हैं।
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कुल मिलाकर व्यापारियों पर इन्कम टैक्स देने का ज़्यादा दबाव नहीं है। इसलिए वे देते भी नहीं। पर्चियों पर दुनिया चल रही है। आम आदमी को भी पर्ची सिस्टम सस्ता पड़ता है इसलिए वो भी पक्की रसीद का दबाव नहीं बनाता। टैक्स पेयर कम होने की वजह से सरकार को इन्कम टैक्स में राहत देने से परहेज़ रहता है। होना यह चाहिए कि कर्मचारियों के अलावा मोटी कमाई करने वाले ज़्यादातर लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जाए। ज़्यादा से ज़्यादा लोग टैक्स देंगे तो टैक्स में बड़ी राहत देने के बावजूद सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा। मात्र पाँच प्रतिशत आयकर दाताओं के भरोसे राहत की बात करना बेमानी है।
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हालाँकि पहले इन्कम टैक्स को ख़त्म करने का सुझाव भी कुछ विद्वानों ने दिया था, लेकिन सरकार ने इस ओर शायद ज़्यादा प्रयास नहीं किया। सुझाव यह था कि इन्कम टैक्स को ख़त्म करके बैंक में जमा और निकासी पर एक प्रतिशत टैक्स लगा दिया जाए। योजना अच्छी थी और इससे टैक्स कलेक्शन में भी भारी इज़ाफ़ा होता लेकिन हर योजना का ख़तरा भी होता है। ख़तरा यह था कि लोगों ने बैंक में पैसा ही रखना बंद कर दिया तो क्या होगा?
हालाँकि घर में पड़े पैसे को निकालने की भी सरकार के पास कई विधियाँ हैं। लेकिन सरकार भी आख़िर कहाँ- कहाँ छापे मारती? छापों के सहारे तो दुनिया नहीं चलाई जा सकती! ख़ैर, जो भी हो, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जब तक टैक्स के दायरे में नहीं लाया जाता, वर्तमान आयकर दाताओं को किसी बड़ी राहत मिलने की कोई संभावना नज़र नहीं आती।
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