छठ पूजा विशेष: छठ पूजा की शुरूआत कब और किसने की थी और जानिए छठ महापर्व में क्यों कैसे भरी जाती है कोसी
छठ पूजा 17 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर को खत्म होगा, जानते हैं इस चार दिवसीय छठ महापर्व का इतिहास
हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की शुरूआत नहाय-खाय से होती है, जो कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। इस साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि 18 नवंबर दिन शनिवार को सुबह 09:18 am से प्रारंभ होगी।इस तिथि का समापन 19 नवंबर दिन रविवार को सुबह 07:23 am पर होगा. उदयातिथि के आधार पर छठ पूजा 19 नवंबर को है, उस दिन छठ पूजा का संध्या अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ पूजा का त्योहार बिहार के लोगों का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है। छठ पूजा बिहार से ये त्योहार यूपी से लेकर दिल्ली और महाराष्ट्र तक में फेमस हो चुका है। बिहार के लोग इसे हर जगह काफी धूमधाम से मनाते हैं।ऐसे में छठ पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे इस पर्व को मनाने की शुरुआत हुई थी। जानते हैं
छठ पूजा की शुरूआत कब और किसने की थी
छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम सीता माता, द्वापर में कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कहानियां क्या हैं।
राजा प्रियवंद से जुड़ी छठ कथा
कहते हैं राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई।यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो।माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी।इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
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