यूपी की 17 नगर निगम सीटों का एनालिसिस:12 पर भाजपा का पलड़ा भारी, 4 पर सपा दावेदार; बसपा के सामने अपनी 2 सीटें बचा पाने की चुनौती
यूपी में दूसरे फेज के मतदान के साथ नगर निकाय चुनाव समाप्त हो गया है। अब इंतजार 13 मई का है। इसी दिन पता चलेगा कि आखिर यूपी के शहरों में किसकी सरकार बनेगी? 2017 में यूपी में 16 नगर निगम सीटें थीं, भाजपा ने 14 जीती थीं। इस बार 17 सीटें हैं। इनमें से 12 सीटों पर मतदान के बाद भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। जबकि 4 पर सपा और एक पर बसपा जीत की दावेदार नजर आ रही है।
भाजपा को कम वोटिंग और अंदरूनी बगावत से डेंट लग सकता है, तो सपा को बसपा के मुस्लिम कार्ड से चोट पहुंच सकती है। क्योंकि बसपा मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर सपा को कमजोर किया है। हालांकि बसपा के सामने अपनी दो सीटें बचा पाना भी मुश्किल नजर आ रहा है।
राजनीति के जानकारों की माने तो भाजपा नगर निगम में 75 फीसदी सीटों पर अकेले लीड कर रही है, जबकि विपक्ष 25 फीसदी मैदान में खेल रहा।
38 जिलों में शाम 6 बजे तक 53 फीसदी मतदान हुआ है…
- पहले कम वोटिंग से बढ़ी हुई बेचैनी को समझते हैं.…
पहले फेज में 37 में से 34 जिलों में वोटिंग कम हुई थी
- पहले फेज में 37 जिलों में मतदान हुआ था। इनमें से 34 जिलों में मतदान प्रतिशत पिछले निकाय चुनाव यानी 2017 के मुकाबले कम रहा था। सिर्फ तीन जिलों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था, ये जिले गोरखपुर, जौनपुर, मुरादाबाद थे।
- नगर निगम की बात करें तो पहले फेज में 10 नगर निगम में वोटिंग हुई थी। इसमें सबसे कम 33.61 प्रतिशत मतदान प्रयागराज में हुआ था। जबकि सबसे ज्यादा 56.37 प्रतिशत मतदान सहारनपुर जिले में हुआ था।
- नगर निकाय चुनाव 2017 में प्रदेश में 3 चरणों में मतदान हुआ था। पहले चरण में 24 जिलों में कुल 52.85 प्रतिशत मतदाताओं ने मत का प्रयोग किया था। इस बार पहले चरण में 52% वोटिंग हुई है।
- दूसरे फेज में 6 बजे तक 53% वोटिंग हुई है। आंकड़े घट-बढ़ सकते हैं, लेकिन फिर भी मतदान पिछली बार से कम हुआ है। इससे राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। सभी पार्टियां इस कैलकुलेशन में लग गई हैं, इसका फायदा और नुकसान किसे होगा।
आइए, अब बात 17 नगर निगम सीटों पर चुनावी सीन की करते हैं, जानते हैं वहां के समीकरण किसके फेवर में हैं-
वाराणसी- प्रधानमंत्री के शहर में भाजपा 28 सालों ने नहीं हारी, इस बार भी आगे
- 1995 से वाराणसी नगर निगम में भाजपा का ही मेयर रहा है। यहां यही माना जाता है कि बस भाजपा का टिकट मिलने के साथ ही प्रत्याशी मेयर बन जाता है। हालांकि इस बार मुकाबला टफ है।
- यहां से योगी सरकार में 3 मंत्री हैं, ऐसे में सभी की साख भी दांव पर लगी हुई है। इसके अलावा शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी की भी साख दांव पर है। क्योंकि उनके इलाके में 24 वार्ड आते हैं, इनमें से 12 वार्ड में बागियों ने मुसीबत बढ़ा दी थी।
- भाजपा ने उन सभी बागियों को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया था। लेकिन अब रिजल्ट के दिन देखना है, बागियों की बगावत असर करती है या नहीं।
- इस बार भाजपा ने अशोक तिवारी पर दांव लगाया है, तो सपा ने कद्दावर नेता डॉ. ओपी सिंह को मैदान में उतारा है।
मुरादाबाद- सपा के गढ़ में भाजपा हैट्रिक के फिराक में है
- यहां भाजपा हैट्रिक लगाने की फिराक में है। भाजपा यहां 2012 और 2017 में जीत चुकी है। मुरादाबाद में जीत का आधार दलित और मुस्लिम वोटर्स तय करते हैं। यही वजह है कि यहां 12 मेयर पद के प्रत्याशी हैं, इसमें से 9 मुस्लिम प्रत्याशी हैं।
- मुरादाबाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का गृह जनपद है। प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यपाल सैनी भी यहीं से आते हैं। यानी यहां पर प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ एक विधायक की प्रतिष्ठा दांव पर है।
- हालांकि मुरादाबाद सपा का गढ़ है, यहां सपा के फिलहाल 5 विधायक हैं, सांसद भी सपा के हैं। सिर्फ एक विधायक भाजपा से हैं।
मेरठ- पिछली बार बसपा जीती थी, इस बार भाजपा और सपा के बीच मुकाबला
- मेरठ में 16 नगर निकाय हैं। इनमें एक नगर निगम, दो नगरपालिका और 13 नगर पंचायतें हैं। यहां नगर निगम में फूल खिलाना बड़ी चुनौती है।
- मेरठ को जीतने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी। इनमें भाजपा के चार सांसद, तीन विधायक और तीन एमएलसी हैं। इनमें दो राज्यमंत्री दिनेश खटीक और डॉ. सोमेंद्र तोमर शामिल रहे। भाजपा के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम भी यहीं से हैं।
- 1995 से 2017 तक यहां पांच बार मेयर का चुनाव हुआ है। इसमें 2 बार भाजपा और तीन बार बसपा जीतने में कामयाब रही है।
- मेरठ सीट पर बसपा की साख दांव पर है, उसे अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखने की चुनौती भी है। मेयर सीट पर भाजपा से पूर्व महापौर हरिकांत अहलूवालिया मैदान में हैं।
- सपा से विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान, बसपा से हशमत मलिक और कांग्रेस से नसीम कुरैशी चुनाव मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है।
गाजियाबाद- भाजपा-बसपा के बीच मुख्य मुकाबला, सपा ने आखिरी वक्त में बदला था प्रत्याशी
- गाजियाबाद में 9 नगर निकाय हैं। इनमें गाजियाबाद नगर निगम भी शामिल हैं। गाजियाबाद नगर निगम की मेयर सीट पर भाजपा से सुनीता दयाल मैदान में हैं।
- सपा से सिकंदर यादव की पत्नी पूनम यादव, बसपा से निसारा खान और कांग्रेस से निसार खान और कांग्रेस से पुष्पा रावत चुनावी मैदान में हैं। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच माना जा रहा है। सपा ने आखिरी वक्त में प्रत्याशी बदल दिया, इसलिए उसका समीकरण खराब हुआ है।
- गाजियाबाद से केंद्रीय राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह, राज्यमंत्री नरेंद्र कश्यप, विधायक नंदकिशोर गुर्जर सहित 5 विधायकों के पास भाजपा की जीत की जिम्मेदारी है।
बरेली- सपा ने आखिरी वक्त पर प्रत्याशी हटाया, बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारकर मुश्किलें बढ़ाई
- बरेली नगर निगम सीट पर भाजपा ने अपने मौजूदा मेयर उमेश गौतम को उतार रखा है। सपा ने आखिरी वक्त में संजीव सक्सेना की जगह आईएस तोमर पर दांव लगा दिया है।
- बसपा ने यूसुफ खां पर दांव लगाकर सपा की मुश्किलें खड़ी कर दी है। बरेली में मुस्लिम वोटों में बिखराव हुआ तो भाजपा की सियासी राह आसान हो सकती है।
- बरेली नगर निगम सीट पर साल 2000 में डॉ. आईएस तोमर निर्दलीय लड़े और जीते थे। बाद में वह सपा में शामिल हो गए। 2005-06 में कांग्रेस की सुप्रिया ऐरन ने जीत हासिल की।
- 2012 में सीट सामान्य हुई और सपा से डॉ. आईएस तोमर चुनाव जीते। 2017 में भाजपा ने उमेश गौतम को चुनाव लड़ाया और उन्होंने जीत हासिल की।
- नगर निगम के 32 साल के इतिहास में भाजपा को तीन, सपा को दो और कांग्रेस को एक बार जीत मिली है। बसपा के हिस्से यह सीट कभी नहीं आई। 1989 में मेयर की जगह नगर प्रमुख का पद था और भाजपा के राजकुमार अग्रवाल ने जीत हासिल की थी। 1995 में यह सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के खाते में गई तो भाजपा के सुभाष पटेल नगर प्रमुख बने।
यह तस्वीर सीएम योगी की आजमगढ़ में रैली की है। मंच पर सांसद निरहुआ भी मौजूद रहे।
कानपुर- भाजपा 20 साल यहां काबिज, इस बार सपा ने सबसे ज्यादा ताकत यहीं पर लगाया है
- यूपी का चौथा सबसे बड़ा नगर निगम कानपुर है। कानपुर नगर निगम का बजट 1400 करोड़ रुपए का है। यहां भाजपा तीन बार से काबिज हो रही है।
- 1995 में सरला सिंह भाजपा से मेयर बनी थीं। इसके बाद 2000 में कांग्रेस के अनिल शर्मा ने मेयर बने थे। 2006 से लगातार भाजपा कानपुर में मेयर पद पर जीत दर्ज कर रही है।
- 2006 में भाजपा के रवींद्र पाटनी ने जीत दर्ज की थी। 2012 में जगतवीर सिंह द्रोण मेयर बने थे। 2017 के निकाय चुनाव में प्रमिला पांडेय ने जीत दर्ज की थी।
- कानपुर नगर निगम की मेयर सीट पर बीजेपी ने अपनी मौजूदा मेयर प्रमिला पांडेय पर दांव लगा रखा है तो सपा ने वंदना बाजपेयी, कांग्रेस से आशनी अवस्थी और बसपा ने अर्चना निषाद को उतारा है। इस तरह से बसपा को छोड़कर बाकी तीनों पार्टियों ने ब्राह्मण कार्ड चला है।
- भाजपा ने यहां अपने सांसद सत्यदेव पचौरी की बेटी नीतू सिंह को टिकट नहीं दिया, जबकि वो प्रबल दावेदार मानी जा रही थीं। इससे कानपुर में भाजपा के अंदर बगावत भी देखने को मिली है। वोटिंग के दिन भी पचौरी ने भाजपा उम्मीदवार प्रमिला पांडेय पर निशाना साधा।
- सपा ने सबसे ज्यादा ताकत कानपुर में ही लगाई है, अखिलेश के अलावा यहां डिंपल यादव भी प्रचार करने पहुंची।
अयोध्या- भाजपा ने मौजूदा मेयर का टिकट काटा, मुकाबला भाजपा और सपा में
- अयोध्या नगर निगम 2017 में बनी थी। यहां पहली बार भाजपा जीती थी। इस बार भाजपा ने अपने मौजूदा महापौर ऋषिकेश उपाध्याय की जगह पर गिरीशपति त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया है।
- सपा से आशीष पांडेय, बसपा से रामूर्ति यादव, कांग्रेस से प्रमिला राजपूत मैदान में हैं। भाजपा के लिए अयोध्या सीट काफी अहम है। क्योंकि 2024 का चुनाव सामने है।
लखनऊ- भाजपा की जीत लगभग तय, सिर्फ हार-जीत के अंतर का इंतजार
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के संसदीय क्षेत्र होने के नाते हमेशा से इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। लखनऊ भाजपा की गढ़ सीटों में भी शुमार है।
- 2017 में भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया 1.30 लाख वोट से सपा प्रत्याशी मीरा वर्धन से जीतीं थीं। 2012 में भाजपा से डॉ. दिनेश शर्मा एक लाख वोट से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. नीरज बोरा से जीते थे।
- लखनऊ नगर निगम इस बार महिला के आरक्षित है। भाजपा ने महिला मोर्चा से जुड़ी रही सुषमा खरकवाल को प्रत्याशी बनाया है।
- सपा ने वरिष्ठ पत्रकार वंदना मिश्रा को तो बसपा ने शाहीन बानो को उतारा है। इसी तरह कांग्रेस से संगीता जायसवाल और आम आदमी पार्टी से अंजू भट्ट प्रत्याशी है।
- मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। लेकिन सीट भाजपा की ही सिक्योर मानी जा रही है।
आगरा- भाजपा को बगावत भारी पड़ सकती है, मुकाबला बसपा से, दलित वोटर निर्णायक हैं
- आगरा नगर निगम में 1989 से 2017 तक छह बार कमल खिला है। बसपा ने टक्कर जरूर दी, लेकिन सफलता नहीं मिली।
- तीन दशकों से आगरा पर कब्जा जमाए बैठी भाजपा की राह इस बार आसान नहीं दिख रही। टिकट के बंटवारे से नाराज खटीक समाज में बगावत के सुर बुलंद हो रहे हैं। इसके साथ ही बसपा का वाल्मीकि कार्ड पार्टी को मजबूती प्रदान कर रहा है।
- बसपा ने यहां से लता वाल्मीकि को टिकट दिया है। भाजपा ने हेमलता दिवाकर कुशवाहा को टिकट दिया है।
- भाजपा से मेयर पद के लिए इटावा सांसद रामशंकर कठेरिया और केंद्रीय राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने प्रतिष्ठा बना ली थी। प्रो. बघेल अपनी बेटी और प्रो. कठेरिया अपनी पत्नी के लिए प्रयासरत थे।
- जानकारों का मानना है कि खटीक समाज की बेरुखी और वाल्मीकि, जाटव और मुस्लिम गठजोड़ निकाय चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है।
- 2017 निकाय चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी नवीन जैन 2.17 लाख वोट लेकर विजयी हुई थे। उन्होंने बसपा के दिबंगर सिंह धाकरे को हराया था। सामान्य सीट होने के चलते धाकरे को 1.43 लाख वोट मिले थे।
गोरखपुर- भाजपा ने उम्मीदवार बदला है, मुकाबला सपा से, कायस्थ और निषाद वोटर निर्णायक
- गोरखपुर नगर निगम सीट इस बार अनारक्षित है। शहर निगम में 80 वॉर्ड हैं। गोरखपुर जिले में 11 नगर पंचायत हैं। गोरखपुर में शुरू से ही भाजपा का दबदबा रहा है। नगर निगम की मेयर सीट पर ज्यादातर भाजपा ने ही परचम लहराया है। यहां कायस्थ और निषाद वोटर निर्णायक माने जाते हैं।
- गोरखपुर नगर निगम की सीट इस बार अनारक्षित है। 2017 में मेयर पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित था। 2017 में मेयर पद पर भाजपा से सीताराम जायसवाल विजयी हुए थे।
- इस बार भाजपा ने पैथालाजिस्ट डॉ.मंगलेश श्रीवास्तव को मेयर पद का प्रत्याशी बनाया है। उनका मुकाबला सपा की मेयर पद की उम्मीदवार काजल निषाद और बसपा उम्मीदवार नवल किशोर नाथानी हैं। काजल 2022 के विधानसभा में भी कैंपियरगंज से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
अलीगढ़: त्रिकोणीय मुकाबला, बसपा और सपा के मुस्लिम उम्मीदवार से भाजपा आगे
- अलीगढ़ नगर निगम में 2017 में बसपा ने बाजी मारी थी। इस बार महापौर चुनाव में भाजपा ने प्रशांत सिंघल को प्रत्याशी बनाया है।
- सपा ने जमीर उल्लाह और बसपा से सलमान शाहिद प्रत्याशी है। धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर होने वाले मतदान के दम पर इस बार भी अलीगढ़ महापौर पद पर त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है।
- भाजपा लगातार चार बार से जीती हुई सीट को 2017 में हारने के बाद अब हर कीमत पर वापसी को प्रयासरत है।
- इस बार नगर निगम अलीगढ़ सीमा विस्तार के बाद 9 लाख मतदाता मतदान करेंगे। अलीगढ़ में 9 लाख मतदाताओं में से तीन लाख मुसलमान, सवा लाख अनुसूचित, 2 लाख वैश्य, सवा लाख ब्राह्मण हैं।
यह तस्वीर पहले फेज के दौरान लखनऊ मेट्रो में अखिलेश यादव के प्रचार करने की है।
झांसी- मेन मुकाबला भाजपा और सपा के बीच
- नगर निगम मेयर सीट पर 2017 में भाजपा ने जीत हासिल की थी। भाजपा प्रत्याशी रामतीर्थ सिंघल मेयर बने थे और उन्होंने बसपा के प्रत्याशी बृजेन्द्र कुमार व्यास को सोलह हजार से अधिक वोटों से हराया।
- इस सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप जैन आदित्य तीसरे नंबर पर रहे थे, जबकि सपा चौथे स्थान पर सिमट गई थी।
- भाजपा ने इस बार बिहारीलाल आर्य को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं सपा से सतीश जतारिया, बसपा से भगवन दास फुले, कांग्रेस से अरविंद कुमार चुनावी मैदान में हैं। मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही माना जा रहा है।
प्रयागराज- भाजपा की बेचैनी को बगावत और कम वोटिंग ने बढ़ाया
- भाजपा ने मंत्री नंद गोपाल नंदी की पत्नी अभिलाषा नंदी का टिकट काटकर इस बार गणेश केसरवानी को टिकट दिया है। जिससे भाजपा में बगावत भी देखने को मिली है।
- सपा ने अजय श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है। बसपा से पहले अतीक की बीवी शाइस्ता मैदान में उतरने वाली थी, लेकिन उमेश पाल हत्याकांड के बाद मायावती ने शाइस्ता की जगह पूर्व विधायक सईद अहमद को टिकट दिया है।
- कांग्रेस ने प्रभा शंकर मिश्रा को टिकट दिया है। प्रभा शंकर मिश्रा पुराने कांग्रेसी है और उनका अपना वोट बैंक है।
- चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सीएम योगी के प्रचार से माहौल बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है। सपा ने भाजपा को पिछली बार कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन इस बार अतीक का परिवार सपा के खिलाफ है।
- बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट उतार दिया है। इसलिए इस सीट पर फिलहाल भाजपा का पलड़ा भारी दिख रही है। हालांकि पहले फेज में सबसे कम 33 फीसदी मतदान यहीं हुआ था। ऐसे में भाजपा की बेचैनी बढ़ी हुई है।
सोमवार को कानपुर में सांसद डिंपल यादव ने कार के ऊपर बैठकर पार्टी प्रत्याशी वंदना बाजपेई के लिए प्रचार किया था।
सहारनपुर- भाजपा और बसपा के बीच सीधा मुकाबला
- नगर निगम चुनाव में भाजपा और बसपा के बीच सीधा मुकाबला है। दलित-मुस्लिम समीकरण के चलते बसपा के पक्ष में मुस्लिमों और दलितों का ध्रुवीकरण देखने को मिला है।
- महापौर की सीट के लिए भाजपा ने डॉ. अजय कुमार, बसपा ने पूर्व विधायक इमरान मसूद की भाभी खतीजा मसूद, सपा ने विधायक आशु मलिक के भाई नूर हसन मलिक, कांग्रेस ने प्रदीप वर्मा एडवोकेट, आप ने सहदेव सिंह को चुनाव में उतारा है। तीन निर्दलीय समेत आठ प्रत्याशी चुनावी रण में हैं।
शाहजहांपुर- पहला मेयर किसका होगा, भाजपा ने सपा को बड़ा डेंट दिया है
- शाहजहांपुर नगर निगम में पहली बार महापौर पद के लिए चुनाव हो रहा है। भाजपा ने नामांकन के अंतिम दिन से एक दिन पहले एक दिन पहले सपा की महापौर प्रत्याशी अर्चना वर्मा बनाकर बड़ा सियासी दांव चला।
- सपा ने माला राठौर, बसपा ने शगुफ्ता अंजुम और कांग्रेस ने निकहत कबाल पर दांव लगाया है। नगर पालिका की सीट के रहते हुए शाहजहांपुर में सपा का दो दशक से कब्जा रहा है, लेकिन इस बार उसे अपने वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती है।
मथुरा- भाजपा के सबसे कड़ी चुनौती यहीं पर, तीन पार्टियों ने निर्दलीय को समर्थन दिया
- मथुरा-वृंदावन मेयर पद के लिए भाजपा से विनोद अग्रवाल प्रत्याशी हैं। उनके मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवार राजकुमार रावत को कांग्रेस, सपा और RLD ने समर्थन दिया है। इस मुकाबला कड़ा है। भाजपा के लिए सीएम योगी भी यहां रैली कर चुके हैं।
- भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले राजकुमार रावत सबसे मजबूत कैंडिडेट हैं। रावत बसपा से हाल ही में इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए थे। 2007-2012 तक बलदेव सीट से और 2012-2017 तक गोवर्धन सीट से विधायक रह चुके हैं।
फिरोजाबाद- भाजपा अपनी सीट बचाने के लड़ रही है
- 2017 के चुनाव में भाजपा की नूतन राठौर मेयर बनी थीं। इस बार भाजपा ने कामिनी राठौर को टिकट दिया है, जबकि सपा से मीना राठौर को टिकट मिला है।
- बसपा ने रुखसाना बेगम को टिकट दिया है। लेकिन इस बार यहां की सियासत बदली हुई नजर आ रही है। बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से यहां के समीकरण बदल गए हैं। हालांकि मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही है।
अब निकाय चुनाव में पार्टियों की रणनीति और चुनौती समझते हैं-
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