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षटतिला एकादशी आज, जानें महत्व..

आज षटतिला एकादशी है। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का अधिक महत्व है। माघ माह के कृष्ण पक्ष में पड़नेवाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। षटतिला एकादशी के महत्व के बारे में जानकारी देते हुए वेदाचार्य पंडित रमेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि सूर्य उत्तरायण है और मकर राशि में है, इसलिए इस एकादशी को व्रत के साथ-साथ भगवान को तिल का भोग लगाना चाहिए। इस दिन तिल का दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अपने प्रसाद में भी तिल की सामग्री का सेवन करना चाहिए। इस दिन चावल का त्याग करना चाहिए। इस्कॉन धनबाद के प्रेमदास बताते हैं कि षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखकर घर पर हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए। यही एक व्रत है, जो मनुष्य को मोक्ष के द्वार तक ले जाती है।

षटतिला एकादशी की कथा: खंडेश्वरी मंदिर के पुजारी राकेश पांडे षटतिला एकादशी की कथा पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि वस्तुतः एकादशी तो मोक्ष का व्रत है, लेकिन विशेषकर षटतिला एकादशी दान का व्रत है, क्योंकि इस दिन किया गया दान न सिर्फ भौतिक जीवन में अपितु बैकुंठ में भी वैभव से परिपूर्ण करता है। षटतिला एकादशी की कथा है कि एक ब्राह्मणी भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। प्रत्येक माह एकादशी का व्रत कर विष्णु की उपासना करती थी। लेकिन दान नहीं करने की वजह से भगवान यह सोच कर चिंतित हुए कि बैकुंठ में रहकर भी यह ब्राह्मणी आतृप्त रहेगी, इसलिए भगवान विष्णु स्वयं भिक्षा लेने उनके घर पहुंचे। लेकिन दान में ब्राह्मणी ने एक मिट्टी का पात्र दे दिया। देहावसान के बाद जब वह बैकुंठ पहुंची, तो उसे इसका अहसास हुआ। बाद में उसने बैकुंठ में रहकर ही षटतिला एकादशी का व्रत किया।

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