त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारी है एटोपिक डर्माटाईटिस,जानें क्या है इसके लक्षण
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एटोपिक डर्माटाईटिस (Atopic Dermatitis), एक्ज़िमा का सबसे आम प्रकार है, इसे एटोपिक एक्ज़िमा (Atopic eczema) भी कहा जाता है। यह मुख्य तौर पर बच्चों को होता है, लेकिन किशोरावस्था तक बना रह सकता है। एक्ज़िमा ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा पर खुजली, स्किन का लाल, रूखा या फटने जैसे लक्षण होते हैं। कभी-कभी तरल या खून भी निकलता है। इसकी वजह से अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएं, जैसे नींद न आना, आत्मविश्वास में कमी, अवसाद हो जाता है और जीवन की गुणवत्ता कम होकर स्कूल में प्रदर्शन या काम में मन नहीं लगता है। एडी से दुनिया में 20 फीसदी बच्चे और 3 फीसदी व्यस्क पीड़ित हैं।
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क्या है एटोपिक डर्मेटाईटिस?
2 टर्शियरी हॉस्पिटल्स में डर्मेटोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. नीना मदानी का कहना है, “हर पांच बच्चों में से एक बच्चा एटोपिक डर्मेटाईटिस (एडी) से पीड़ित होता है, जिसे एटोपिक एक्ज़ेमा भी कहा जाता है। यह एक सामान्य और चिरकालिक बीमारी है, जिसमें त्वचा लाल हो जाती है और उसमें खुजली व जलन मचने लगती है। यह बीमारी आमतौर से छोटी उम्र में शुरू होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह बीमारी बड़े होने तक बनी रहती है और कुछ में बड़े होने तक इस बीमारी के लक्षण सामने नहीं आते हैं। एडी आमतौर पर शिशुओं की कोहनी के अगले हिस्से में या फिर घुटनों के पिछे होता है, लेकिन इससे चेहरा, गला, सिर, कलाई और पूरा शरीर भी प्रभावित हो सकता है। चकत्ते हल्के होने से लेकर गंभीर भी हो सकते हैं और पीड़ित के जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकते हैं। त्वचा की इस गंभीर बीमारी के शारीरिक लक्षणों के अलावा मरीज़ में अस्थमा और मनोवैज्ञानिक परेशानियां, जैसे नींद न आना, चिंता और अवसाद आदि भी उत्पन्न हो सकते हैं। हल्के एडी से पीड़ित व्यस्कों को भी इस बीमारी से भारी परेशानी हो सकती है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ सकता है और उन्हें चिंता, अवसाद का जोखिम बढ़ जाता है और समाज में अलग-थलग पड़ने पर वो आत्महत्या तक कर सकते हैं।”
मरीज़ करते हैं इन परेशानियों का सामना
आईजेडी और आईजेएसए में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, सीएनएमसी व असिस्टैंट एडिटर, डॉ. अभिषेक डे का कहना है कि अनियंत्रित, हल्की या गंभीर एटोपिक डर्मेटाईटिस के मरीजों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस बीमारी की अनिश्चित स्थिति के कारण रुक-रुक का जलन होती है, जिससे मरीजों में घबराहट होती है और वो एक संतोषजनक जिंदगी जीने में असमर्थ हो जाते हैं। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों और व्यस्कों को नींद की समस्याएं हो सकती हैं। बार-बार रुककर जलन होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, जिससे अन्य बच्चों के मुकाबले वो पिछड़ जाते हैं। एडी का बच्चों एवं व्यस्कों के आत्मविश्वास पर नकारात्मक असर होता है। बच्चे के मन में उनकी कमजोर छवि घर कर जाती है और उन्हें एडी को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। आत्मविश्वास की कमी से उनका सामाजिक कौशल भी प्रभावित होता है। लेकिन उचित सहयोग और मार्गदर्शन से बीमारी के प्रति उनका सकारात्मक दृष्टिकोण बन जाता है।
बच्चे हो जाते हैं चिड़चिड़े- रोज़गार मिलने में आती है दिक्कत
कोलकाता के इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के पीडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एवं हेड, डॉ. संदीपन धर ने बताया, “इस बीमारी से तनाव, भावनात्मक अवसाद, सामाजिक कलंक, शर्मिंदगी, एवं दैनिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं। जब किसी को एटोपिक डर्मेटाईटिस जैसी चिरकालिक बीमारी होती है, जो इसका उनके शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं। हल्की या गंभीर एटोपिक डर्मेटाईटिस के मरीजों को जीवनशैली में भारी परिवर्तन करने पड़ते हैं। शरीर का कौन सा हिस्सा एडी से पीड़ित है, इस आधार पर व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले काम पर इसका काफी बुरा असर पड़ सकता है। जिसके परिणामस्वरूप एडी से पीड़ित व्यस्कों को रोजगार के अवसर पाने में अक्सर मुश्किल होती है। जो मरीज रोजगार नहीं करते, उन्हें वित्तीय समस्याएं हो सकती हैं, जिससे उनके इलाज एवं जीवन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ सकता है। दैनिक जरूरतों के लिए अपर्याप्त फंड से अवसाद एवं नियमित वित्तीय चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। दूसरी तरफ एडी से पीड़ित बच्चे त्वचा में जलन और खुजली के कारण चिड़चिड़े हो जाते हैं और वो ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। उनका आत्मसम्मान गिर जाता है, शर्मिंदगी के कारण वो दूसरे बच्चों के साथ घुल मिल नहीं पाते, और त्वचा की समस्या के कारण मजाक और उपहास का शिकार हो जाते हैं।
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