आखिर क्यों गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखना बहुत अशुभ होता, जानिए यहाँ
महाराष्ट्र समेत पूरे देश में गणेश पर्व की धूम है. गणेश चतुर्थी पर घर-घर में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं. गणेश स्थापना-पूजा के साथ गणपति को तरह-तरह के पकवानों और मोदक का भोग लगाया जा रहा है. इस साल गणेश चतुर्थी पर ग्रह-नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग भी बना है, जिस कारण यह पर्व और भी खास हो गया है. गणेश पर्व के 10 दिनों के दौरान भी कई शुभ योग बन रहे हैं जो पूजा-पाठ, उपायों, खरीदारी करने और नए काम की शुरुआत करने के लिए बहुत अच्छे हैं. गणेश चतुर्थी को लेकर हिंदू धर्म शास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं. जिनका जरूर पालन करना चाहिए. ऐसा ही एक नियम चंद्र दर्शन से जुड़ा है.
आज गलती से भी न देखें चांद
गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं क्योंकि इस दिन चंद्रमा को देखना वर्जित किया गया है. भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा देखने से व्यक्ति को अपने जीवन में मान हानि का सामना करना पड़ता है. इस साल चौठ पर्व या कलंक चतुर्थी कुछ लोग 30 अगस्त को मान रहे हैं और कुछ लोग 31 अगस्त को मान रहे हैं. दरअसल, चतुर्थी तिथि 30 अगस्त की दोपहर से शुरू हो चुकी है और 31 अगस्त की दोपहर तक रहेगी. ऐसे में 30 अगस्त और 31 अगस्त दोनों को ही चंद्रमा न देखना ही बेहतर है. आज 31 अगस्त को चंद्रमा न देखने का समय सुबह 09:26 बजे से रात 09:10 मिनट तक है.
…इसलिए नहीं देखते गणेश चतुर्थी का चांद
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार गणेशजी के फूले हुए पेट और गजमुख रूप को देखकर चंद्रमा को हंसी आ गई. इस पर गणेशजी नाराज हो गए और उन्होंने चंद्रमा को शाप दे दिया. उन्होंने कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बड़ा गर्व है इसलिए तुम्हारा क्षय हो जाएगा और कोई तुम्हे नहीं देखेगा. यदि कोई तुम्हे देखेगा तो उस पर कलंक लगेगा. इस श्राप के कारण चंद्रमा का आकार घटने लगा तब चंद्रमा ने शाप से मुक्ति पाने के लिए शिव जी की उपासना की. शिवजी ने चंद्रमा को गणेश जी की पूजा करने की सलाह दी. फिर गणेश जी ने कहा कि मेरे श्राप का असर समाप्त नहीं होगा लेकिन इसके प्रभाव को घटा देता हूं. इससे 15 दिन तुम्हारा क्षय होगा लेकिन फिर बढ़कर तुम पूर्ण रूप प्राप्त करोगे. साथ ही भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो तुम्हे देखेगा उस पर कलंक लगेगा. तब से ही सूर्य 15 दिन घटता है और 15 दिन बढ़ता है. साथ ही भाद्रपद महीने की चतुर्थी को चंद्रमा नहीं देखा जाता है और तब से ही इसका नाम कलंक चतुर्थी भी पड़ गया.
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