सीएम पुष्कर सिंह धामी चम्पावत से लड़ सकते है विधानसभा उप चुनाव,कांग्रेस को मिली राहत
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चम्पावत से विधानसभा उप चुनाव लडऩे की चर्चा है। स्थानीय विधायक कैलाश गहतोड़ी पहले विधायक थे, जिन्होंने धामी के खटीमा से चुनाव हारने के बाद उनके लिए अपनी सीट छोडऩे की पेशकश की। खैर, यह भाजपा का अंदरूनी मामला है, लेकिन इससे राहत कांग्रेस को मिली है। कांग्रेस को भय सता रहा था कि 2007 और 2012 की तरह 2022 में भी मुख्यमंत्री को विधायक बनाने के लिए कहीं विपक्ष का विधायक अपनी सीट न छोड़ दे।
2007 में भाजपा के भुवन चंद्र खंडूड़ी के लिए कांग्रेस के टीपीएस रावत और 2012 में कांग्रेस के विजय बहुगुणा के लिए भाजपा के किरण मंडल ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा नेतृत्व द्वारा धामी को ही मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय के बाद कांग्रेस खेमे में घबराहट फैल गई थी कि कहीं इतिहास फिर दोहरा न दिया जाए। इसीलिए कांग्रेस अब कुछ सुकून में है।
चुनाव परिणाम से सपा, बसपा बेचैन
समाजवादी पार्टी ने इस बार भी पिछले चार विधानसभा चुनावों का प्रदर्शन दोहराया। पहले कभी कोई सीट हासिल नहीं की, इस बार भी मामला शून्य पर ही अटका रहा। बहुजन समाज पार्टी के लिए परिणाम जरूर कुछ राहत देने वाले रहे। पिछली बार सूपड़ा साफ हो गया था, लेकिन इस चुनाव में दो सीटों पर परचम फहरा दिया। वैसे, बसपा पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में सात और आठ सीटें तक जीत चुकी है। भले ही चुनाव परिणाम से कोई बहुत अधिक उम्मीद इन दोनों दलों को नहीं थी, लेकिन परिणाम आने के बाद बाकायदा प्रदर्शन की समीक्षा करते हुए सपा-बसपा ने सख्त कदम उठाए हैं। सपा ने हरिद्वार जिले को छोड़ शेष 12 जिलों में अपनी कार्यकारिणी भंग कर दी। दो सीट जीतने के बावजूद बसपा ने भी अपने प्रदेश अध्यक्ष को बदल डाला। यद्यपि, पिछले 21 साल में बसपा डेढ़ दर्जन से अधिक प्रदेश अध्यक्ष बदल चुकी है।
तीन खाली सीटों के 37 दावेदार
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 70 में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की। अलग राज्य बनने के बाद पांचवें विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी दल ने लगातार दूसरी बार बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाई। राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने पूरे 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेंगे, लेकिन शपथ ली मुख्यमंत्री समेत नौ सदस्यों ने। तीन सीट अब भी खाली रखी गई हैं। पिछली सरकार के दो मंत्री कांग्रेस में चले गए, एक चुनाव हार गए।
तीन सीट पहले से खाली थीं और तीन पुराने मंत्रियों को ड्राप कर दिया गया। पिछली सरकार के पांच मंत्री जगह बचाने में सफल रहे, तीन नए चेहरों को मंत्री बनने का अवसर मिला। चर्चा है कि मंत्रिमंडल में तीन जगह इसलिए खाली छोड़ी गई हैं, ताकि मंत्री बनने से रह गए 37 विधायकों को भविष्य के लिए उम्मीद बंधी रहे।
हाईकमान जो कहे, बस वही सही
विधानसभा चुनाव निबट गए, कांग्रेस बहुमत के 36 के आंकड़े को तो नहीं छू पाई, लेकिन 11 से 19 तक जरूर जा पहुंची। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भ्रमित दिख रही कांग्रेस अब भी उलझन का शिकार है। चुनाव में करारी हार का ठीकरा प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के सिर फूटा, पार्टी ने उन्हें किनारे लगा दिया। स्थिति यह है कि संगठन के मुखिया की कुर्सी तो खाली है ही, विधायक दल का नेता तय करने के मामले में भी एक राय नहीं। अब हाईकमान जिस पर हाथ धर देगा, वही नेता।
ऊहापोह की इस स्थिति का परिणाम यह रहा कि विधानसभा सत्र में मुख्य विपक्ष कांग्रेस बगैर नेता के सदन में पहुंची। वह तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री अनुपमा, जो इस बार विधायक बनी हैं, ने पहले ही दिन मोर्चा संभाल लिया, अन्यथा विपक्ष के नाम पर कांग्रेस की उपस्थिति महसूस ही नहीं होती।
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