पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने कहा-जीत की ललक को भूख में बदलने को जुटना होगा
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उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी की हार की समीक्षा करते हुए इसे अपनी हार माना। इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में उन्होंने उपचुनाव के दौरान उनके कोरोना संक्रमित होने का जिक्र करते हुए कहा कि कोरोना से वह कमजोर तो हुए, लेकिन इतने भी नहीं कि उत्तराखंड में किसी भी चुनाव की चर्चा हो और उनका नाम आलोचना या समालोचना के दायरे में न रहे। दरअसल कोरोना संक्रमण के चलते उपचुनाव में प्रचार के लिए आखिरी वक्त पर सल्ट पहुंचकर भी उन्होंने स्टार प्रचारक की अपनी भूमिका निभाई।उन्होंने कहा कि चुनाव में सल्ट की चेली और उत्तराखंडी पहचान को चुनाव से जोड़ने का प्रयास करती उनकी अपील हारी। भाजपा का संगठन, अकूत धन के साथ सहानुभूति का फैक्टर जीता है। इस तथ्य को भी भुलाया नहीं जा सकता कि सल्ट से पहले थराली और पिथौरागढ़ के उपचुनाव और 2017 के चुनाव में भी उन्होंने उत्तराखंड से जुड़े सवालों व समाधान को प्रमुख मुद्दा बनाया था। इसके बावजूद वह पार्टी को जीत नहीं दिला पाए।
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इस समीक्षा के बहाने हरीश रावत ने 2022 के विधानसभा चुनाव का जिक्र छेड़ने से गुरेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह विवेचना का समय आ गया है कि अगले चुनाव में उत्तराखंड से जुड़ी सोच को लपेटकर एकतरफ रखा जाए और पार्टी को अन्य मुद्दे और तौर-तरीके तय करने दिए जाएं। 2002 से 2017 तक चुनाव में उत्तराखंडी पहचान का एजेंडा न किसी ने सवाल बनाया था और न ही इस पर चुनाव लड़ा गया था। उन्होंने राज्य आंदोलन से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक अपने सियासी सफर में उठाए गए गैरसैंण समेत उत्तराखंड से जुड़े मुद्दों का जिक्र किया।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सल्ट की चुनावी हार एक अंतिम चेतावनी दी। यहां से संभलते हैँ तो 2022 अब भी हमारी सीमा में है। अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य से अप्रत्यक्ष रूप से अपनी तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरीके से भुवन भास्कर पूरी गरिमा के साथ फिर उदित होते हैं, 2022 में भी ऐसा ही होगा। पार्टी के लिए यह जरूरी है कि उनकी उत्तराखंडयुक्त सामाजिक कल्याण, भू सुधार सहित प्रशासनिक सुधार, समन्वित आर्थिक विकास की नीतियों पर विवेचना कर मानव शक्ति की चुनावी उपयोगिता का भी आकलन करे।
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