पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के ध्रुवीकरण दांव से सजग अखिलेश और जयंत
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दिल्ली सीमा से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का रोमांच बढ़ता जा रहा है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन की आग से यहां उठते रहे धुएं को भाजपा की 2014 और 2017 की रिकार्ड जीत पर कुहासा मानकर ही दो नौजवान अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की उम्मीदें इस धरती पर जवान हुई हैं। हाथ थामकर सपा और रालोद के मुखिया सत्ताधारी दल से मुकाबले के लिए तैयार हैं। भरोसा है कि किसान के रूप में एकजुट जाट-मुस्लिम का गठजोड़ उनकी नैया पार लगाएगा, लेकिन ध्रुवीकरण से एकतरफा जीत के भाजपा के दांव से भी वह सजग हैं। किसानों से वादे हैं, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का वास्ता है… ताकि गन्ना के खेत में ध्रुवीकरण का ‘जिन्ना’ अबकी बार खड़ा न हो पाए।
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मुजफ्फरनगर दंगों के कारण वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव व उसके बाद 2017 का विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारने वाली समाजवादी पार्टी की उम्मीदें इस बार किसानों पर टिकी हुई हैं। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद मुजफ्फरनगर व मेरठ में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ संयुक्त प्रेसवार्ता में पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश ने किसानों के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर हमले किए। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को याद करते हुए उनके लिए भारत रत्न देने की मांग की, साथ ही उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए किसानों को संपन्न बनाने की बात कही।
सपा का दावा है कि दंगों की तपिश लंबे समय तक महसूस करने वाले मुजफ्फरनगर व आसपास के क्षेत्रों में कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर जाट व मुस्लिम एकजुट होकर उतरे थे। इस क्षेत्र में जाट-गुर्जर समेत मुस्लिम समुदाय के लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं। सपा व रालोद को यहीं से उम्मीद की रोशनी दिखाई दे रही है। दोनों ही दल किसानों को एकजुट करने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं।
अखिलेश ने यहां गंगा-जमुनी तहजीब को याद करते हुए यह भी कहा कि नकारात्मक राजनीति को हम और जयंत मिलकर खत्म करेंगे। अखिलेश ने किसान आंदोलन में मारे गए किसानों की याद में मेरठ में शहीद स्मारक बनाने की घोषणा कर इस मुद्दे को जीवित रखने का प्रयास किया।
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी भी साफ कर चुके हैं कि चौधरी अजित सिंह का भी राजनीतिक फार्मूला जाट व मुसलमान का नहीं था, उन्होंने किसान व कमेरा वर्ग को संगठित किया था, आज फिर हम मिलकर उसी राह पर चल रहे हैं। चूंकि मुजफ्फरनगर गन्ना बेल्ट है, इसलिए अखिलेश ने यहां गन्ना किसानों का मुद्दा भी उठाया। दोनों नेताओं ने अपने आपको किसानों के बेटे के रूप में पेश किया और उनके हक के लिए लड़ने की बात भी कही है।
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