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जानिए क्या है तब्लीगी जमात ,कैसे पड़ी इसकी नींव और कैसे यह पूरी दुनिया में फैला

तब्लीगी जमात पर सऊदी अरब ने प्रतिबंध लगा दिया है। धार्मिक प्रचार-प्रसार करने वाले इस संगठन को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं। भारत से शुरुआत के बाद एशिया से लेकर अमेरिका-यूरोप के देशों तक मजबूती से जड़ें जमाए तब्लीगी जमात खुद को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखने की बात कहता रहा है, लेकिन इस पर चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। आइए समङों, तब्लीगी जमात क्या है, कैसे इसकी नींव पड़ी और कैसे यह पूरी दुनिया में फैला। साथ ही, जानें कि किन देशों ने इस पर कार्रवाई की है:

क्यों और कब बना: तब्लीगी जमात की शुरुआत भारत की राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र से 1926 में हुई। मुहम्मद इलियास अल कंधलावी ने पश्चिमोत्तर भारात के मेवात क्षेत्र (अब हरियाणा का हिस्सा) में इस्लाम के उपदेश देने के साथ इसकी शुरुआत की, लेकिन वास्तविकता में इसकी नींव निजामुद्दीन में रखी गई। जमात का उद्देश्य था, मुस्लिमों को इस्लाम के मूल सिद्धांतों के अनुसार चलने और इसके नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना। आगे चलकर इसमें भारत में इस्लाम स्वीकार करने वालों को पुराने हिंदू रीति रिवाज छोड़ने के लिए भी कहा जाने लगा।

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संगठन और कार्यप्रणाली: तब्लीगी जमात एक अनौपचारिक संगठन सरीखा है। यह मीडिया से दूरी बनाकर रखता है और अपने बारे में अधिक प्रचार-प्रसार से बचता है। इसकी गतिविधियों के संचालन का नेतृत्व एक अमीर (प्रमुख) करता है जिसकी नियुक्ति शूरा (केंद्रीय परामर्श समिति) द्वारा की जाती है। पहला अमीर इलियास कंधलावी को बनाया गया था, उसके बाद इलियास के बेटे मौलाना यूसुफ और फिर पोते मु. साद को यह जिम्मेदारी दी गई। विवादों से बचने के लिए जमात ने राजनीतिक मामलों से दूर रहने का फैसला किया।

लगते रहे हैं आरोप: जमात पर कट्टरता के आरोप पहले भी लगे हैं। उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान और ताजिकिस्तान चरमपंथी गतिविधियों के कारण इस पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। 2011 में ट्विन टावर आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने लंबे समय तक तब्लीगी जमात पर कड़ी निगरानी रखी थी। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, तब्लीगी जमात के प्रचारकों के उपदेश चरमपंथी संगठनों से जु़ड़ने का माध्यम रहे। पाकिस्तानी और भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार हरकत उल मुजाहिदीन के संस्थापक तब्लीगी जमात के सदस्य थे। 2015 में अमेरिका के सैन बर्नाडिनो आतंकी हमले के साजिशकर्ता रिजवान फारूक के जमात से जुड़े होने के आरोप लगे। हालांकि जमात ने इन आरोपों से इन्कार किया।

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विश्व के कोने-कोने में मौजूदगी: करीब दो सौ देशों में: तब्लीगी जमात ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया में पांव जमा लिए। एक अनुमान के मुताबिक विश्व के करीब दो सौ देशों में इस संगठन की पकड़ है जिसमें इसका सर्वाधिक प्रभाव दक्षिण एशियाई देशों में है।

एशिया: जमात ने 1946 में विस्तार शुरू किया और पाकिस्तान में सबसे बड़ा केंद्र खोला। 1971 के बाद बांग्लादेश में भी केंद्र स्थापित किया। इंडोनेशिया, थाईलैंड में भी इसके सदस्य हैं। 1991 के सोवियत संघ टूटने के बाद इसका प्रसार मध्य एशिया के देशों में भी हुआ।

सऊदी अरब और ब्रिटेन: स्थापना के दो दशक के भीतर ही जमात का फैलाव दक्षिणपूर्व और दक्षिण पश्चिम एशिया, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका तक हो गया। 1946 में जमात ने सऊदी अरब और ब्रिटेन में अपने मिशन भेजे। इसके बाद अमेरिका और 1970 से 1980 के बीच यूरोप में इसने काम शुरू किया।

फ्रांस तक: 1960 के आसपास जमात ने फ्रांस में प्रवेश किया और 1980 तक वहां उल्लेखनीय विस्तार किया। हालांकि इसके बाद वहां इसका प्रभाव कम हुआ। नई सदी में जमात ने वापसी की और 2006 तक फ्रांस में उसके एक लाख से अधिक सदस्य हो गए। 2007 तक यूनाइटेड किंगडम की 1,350 मस्जिदों में से 600 में तब्लीगी जमात के सदस्य मौजूद थे। प्यू रिसर्च के अनुसार विश्व में तब्लीगी जमात के आठ करोड़ सदस्य हो सकते हैं।

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