Uttarakhand

उत्तराखंड: स्मार्ट इलेक्ट्रिक बस जबरदस्त साबित हो रहा सौदा, कमाई से तीन गुना ज्यादा संचालन पर खर्च

देहरादून, स्मार्ट सिटी कंपनी के तहत शहर में संचालित की जा रही स्मार्ट इलेक्ट्रिक बस जबरदस्त घाटे का सौदा साबित हो रहीं। बीती 21 फरवरी से आइएसबीटी-राजपुर मार्ग पर चलाई गई पांच स्मार्ट बसों पर दो माह में लगभग 38 लाख रुपये खर्च आया, जबकि कमाई 11 लाख हुई। यानि कमाई से तीन गुना ज्यादा धनराशि इनके संचालन पर खर्च हुई। स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से इस खर्च की एवज में बस संचालन कर रही कंपनी को 32.34 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया। ऐसे में स्मार्ट बस के संचालन की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं। सिटी बस सेवा महासंघ ने इनका संचालन शहर के बाहरी मार्गों पर करने की मांग की है।

शहर को प्रदूषणमुक्त करने, आरामदायक सफर और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के मकसद से गत 21 फरवरी को मुख्यमंत्री ने दून शहर में स्मार्ट सिटी की ओर से पांच लो-फ्लोर इलेक्ट्रिक स्मार्ट बसों के संचालन को हरी झंडी दिखाई थी। बस संचालन की जिम्मेदारी मैसर्स एवरी ट्रांस कंपनी के पास है। स्मार्ट सिटी कंपनी एवं मैसर्स एवरी ट्रांस में पीपीपी मोड में करार है। जिसके अंतर्गत बस भी मैसर्स एवरी ट्रांस उपलब्ध कराएगी और संचालन की पूरी जिम्मेदारी संभालेगी। इस एवज में स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से मैसर्स एवरी ट्रांस को 66.78 रुपये की प्रति किमी दर से भुगतान किया जाएगा। बस पर चालक कंपनी के हैं, जबकि परिचालक को परिवहन निगम ने उपलब्ध कराया हुआ है। शहर में कुल 30 स्मार्ट बस संचालित होनी हैं। पहले चरण में 21 फरवरी से पांच बसों का संचालन आइएसबीटी-राजपुर मार्ग पर शुरू किया गया था।

सूचना के अधिकार के तहत सिटी बस सेवा महासंघ को मिली जानकारी में पता चला कि 21 फरवरी से 25 अप्रैल तक इन पांच बसों ने 55825 किमी यात्रा की। फिर 26 अप्रैल से कोविड कर्फ्यू के कारण बसों का संचालन बंद हो गया था। स्मार्ट सिटी कंपनी ने जानकारी दी है कि संचालन शुरू होने के बाद से 25 अप्रैल तक दो माह की अवधि में इन बसों पर कुल 37 लाख 67 हजार 649 रुपये का खर्च आया है। मैसर्स एवरी ट्रांस ने स्मार्ट सिटी कंपनी को भुगतान के लिए इसका बिल भेजा था। स्मार्ट सिटी कंपनी ने 15 अप्रैल तक संचालन की एवज में कुल 32 लाख 34 हजार 244 रुपये का भुगतान मैसर्स एवरी ट्रांस को कर दिया है।

स्मार्ट सिटी कंपनी पर पांच लाख 33 हजार 405 रुपये बकाया हैं। दो माह में इन बसों ने यात्री किराये के रूप में केवल 11 लाख 14 हजार 705 रुपये की कमाई की। सिटी बस सेवा महासंघ के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल ने आरोप लगाया कि स्मार्ट बसों को सिर्फ सिटी बसों का वजूद समाप्त करने के मकसद से चलाया गया। अगर यह इसी तरह घाटे में चलती रहीं तो केंद्र सरकार की ओर से स्मार्ट सिटी के अंतर्गत मिलने वाला बजट इन्हीं बसों पर खर्च हो जाएगा। इनकी समीक्षा के बगैर कंपनी ने पांच बसें रायपुर मार्ग पर और संचालित कर दीं।

विक्रम व ई-रिक्शा हैं घाटे का कारण

स्मार्ट इलेक्ट्रिक बस के घाटे का असल कारण विक्रम व ई-रिक्शा माने जा रहे हैं। इन्हीं की वजह से सिटी बस भी बेहद घाटे में चल रहीं। विक्रम को ठेका परमिट मिला हुआ है, इसके बावजूद ये स्टेज कैरिज के तहत अवैध रूप से संचालित हो रहे। मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार विक्रम केवल गैराज टू गैराज चल सकते हैं, यानी फुटकर सवारी नहीं ले सकते। इसके बावजूद शहर में नियमों को रौंदकर वर्षों से फुटकर सवारी के साथ विक्रम दौड़ रहे।

इसी वजह से हर मार्ग पर घाटा होने पर 304 में से 90 सिटी बसों के परमिट सरेंडर चल रहे। अब बाकी कसर ई-रिक्शा ने पूरी कर दी। पुलिस और परिवहन विभाग ने ई-रिक्शा के लिए मार्ग तय हुए हैं। नियमानुसार यह शहर के मुख्य मार्गों पर नहीं बल्कि अंदरूनी मार्गों पर चल सकते हैं, लेकिन ये भी बेधड़क मुख्य मार्र्गों पर दौड़ रहे। जब तक विक्रम एवं ई-रिक्शा का संचालन तय नियमानुसार नहीं होगा तब तक स्मार्ट बसों का घाटा कम नहीं होगा।

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