देश की आबादी में बुजुर्गो का हिस्सा 8.6 फीसद था जो वर्ष 2041 तक बढ़कर 15.9 फीसद हो जाने की संभावना
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हाल ही में केंद्र सरकार ने छोटी बचत योजनाओं पर देय ब्याज दरों में की गई कमी को वापस ले लिया। लेकिन अगली तिमाही में सरकार फिर ऐसा फैसला कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्गो पर पड़ेगा। ग्रामीण बुजुर्ग अभी भी इन योजनाओं में निवेश करते हैं और इसकी ब्याज आय से जीवन-यापन करते हैं। एसबीआइ ने इस समूचे तंत्र पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा है कि देश में बुजुर्गो की आबादी बढ़ते देख सरकार को छोटी बचत योजनाओं को आकर्षक बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। वर्ष 2011 में देश की आबादी में बुजुर्गो का हिस्सा 8.6 फीसद था जो वर्ष 2041 तक बढ़कर 15.9 फीसद हो जाने की संभावना है।
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एसबीआइ की रिपोर्ट कहती है कि जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है वहां कम लोग पोस्ट ऑफिस की बचत योजनाओं में पैसा लगाते हैं। लेकिन बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में 60 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों के लिए निवेश की पहली पसंद ये योजनाएं ही होती हैं।
महाराष्ट्र की कुल आबादी में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 11.5 फीसद है। लेकिन पोस्ट ऑफिस में उनके सिर्फ 37,937 करोड़ रुपये जमा हैं। दूसरी तरफ बंगाल की कुल आबादी में 11.1 फीसद बुजुर्ग हैं और उन्होंने इन योजनाओं में 77,696 करोड़ रुपये जमा कराए हैं।
उत्तर प्रदेश की आबादी में महज 7.9 फीसद हिस्सेदारी रखने वाले बुजुर्गो के 60,156 करोड़ रुपये पोस्ट ऑफिस में जमा हैं। राजस्थान और बिहार जैसे कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में भी पोस्ट आफिस के माध्यम से चलाई जा रही बचत योजनाओं में बड़ी राशि रखी जाती है।
छोटी बचत योजनाओं को आकर्षक बनाने के लिए एसबीआइ ने तीन सुझाव दिए हैं। पहला, वरिष्ठ नागिरकों के लिए जमा योजनाओं पर ब्याज को पूरी तरह से टैक्स-फ्री किया जाए। अभी ब्याज की पूरी राशि पर टैक्स लगता है।
एसबीआइ का कहना है कि इन योजनाओं में 73,275 करोड़ रुपये जमा हैं और इन पर टैक्स छूट देने से सरकार पर कोई बड़ा बोझ नहीं होगा। दूसरा, आयु के हिसाब से ब्याज देने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। अभी बुजुर्गो को ज्यादा ब्याज देने की व्यवस्था है, लेकिन इसमें कई श्रेणियां बनाई जा सकती हैं ताकि ज्यादा आयु होने पर और ज्यादा ब्याज मिलना सुनिश्चत हो। तीसरा सुझाव यह है कि पीपीएफ में न्यूनतम 15 वर्षों तक की लॉक-इन अवधि की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए।
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