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महापौर और नगर आयुक्त के बीच तनातनी से नगर निगम में मचा हड़कंप

लखनऊ। राजधानी लखनऊ के नगर निगम में इन दिनों महापौर सुषमा खर्कवाल और नगर आयुक्त गौरव कुमार के बीच जारी टकराव ने प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। दोनों के बीच मतभेद इतने बढ़ गए हैं कि निगम की बैठकों से लेकर विकास कार्यों तक पर असर दिखाई देने लगा है।

महापौर ने आरोप लगाया है कि कार्यकारिणी की पिछली बैठकों में लिए गए कई महत्वपूर्ण निर्णयों को अब तक लागू नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि चौक-चौराहों के नाम बदलने, स्ट्रीट लाइट लगाने, और सड़कों की मरम्मत जैसे प्रस्ताव महीनों से लंबित पड़े हैं। महापौर ने यह भी सवाल उठाया कि जब कार्यकारिणी के निर्णयों का पालन ही नहीं होता, तो फिर बैठक बुलाने का क्या औचित्य रह जाता है।

वहीं, नगर आयुक्त गौरव कुमार ने अपने पक्ष में यह तर्क दिया है कि नियमों के अनुसार प्रशासनिक अधिकार निगम आयुक्त के पास हैं, और सभी कार्य निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही किए जा रहे हैं। इस बीच, महापौर ने नगर आयुक्त पर यह भी आरोप लगाया कि उन्हें कई कार्यक्रमों — जैसे सेवानिवृत्त कर्मचारियों के सम्मान समारोह और मृतक आश्रितों की नियुक्ति कार्यक्रम — में आमंत्रित नहीं किया गया, जो संस्थागत अपमान के समान है।

विवाद बढ़ने के बाद महापौर ने घोषणा की है कि वे अब हर दिन सुबह 10 से 12 बजे तक नगर निगम मुख्यालय में बैठेंगी और आम नागरिकों की शिकायतें सीधे सुनेंगी। इससे पहले निगम की कार्यशैली को लेकर वे कई बार असंतोष जता चुकी हैं।

इस विवाद के चलते नगर निगम के कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। शहर में स्ट्रीट लाइट, सफाई व्यवस्था और सड़कों की मरम्मत जैसी बुनियादी सेवाओं पर असर पड़ा है। निगम की अगली बैठक 30 अक्टूबर को होने जा रही है, जिसमें दोनों पक्षों के बीच मतभेद सुलझाने की कोशिश की जाएगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद केवल महापौर और नगर आयुक्त के बीच का व्यक्तिगत मतभेद नहीं है, बल्कि यह स्थानीय शासन प्रणाली में जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के अधिकारों के टकराव का बड़ा उदाहरण है। अगर समय रहते समाधान नहीं निकला, तो इसका सीधा असर शहर के विकास कार्यों पर पड़ेगा।

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