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शर्तों में उलझी ट्रैफिक लाइटें लगवाने की योजना, एजेंसी नहीं कर पा रही क्वालीफाई; कमेटी पर खड़े हुए सवाल

हरियाणा में ट्रैफिक लाइटें लगवाने की योजना शर्तों में उलझ गई है। पहले निगम को एजेंसी मिली लेकिन वह डिस्क्वालिफाई हो गई। जिसके बाद से दो बार टेंडर रिकॉल हो चुका है। अब लंबी जद्दोजहद के बाद एक एजेंसी मिली है। उसके दस्तावेजों की जांच की जा रही है। बता दें शहर में पांच प्वाइंटों पर नई ट्रैफिक लाइट लगाई जानी है।

शहर में ट्रैफिक व्यवस्था को कंट्रोल करने के लिए लगाई ट्रैफिक कंट्रोल लाइट खराब पड़ी हैं। किसी का ब्लिंकर काम नहीं कर रहा है तो किसी में लाइट नहीं जग रही है। इन लाइटों के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम की है लेकिन अधिकारी इन्हें ठीक नहीं करा सके हैं।

कई माह से ट्रैफिक लाइटों की व्यवस्था टेंडर सिस्टम में उलझी हुई है। पहले निगम को एजेंसी मिली लेकिन वह डिस्क्वालिफाई हो गई। जिसके बाद से दो बार टेंडर रिकाल हो चुका है। अब लंबी जद्दोजहद के बाद एक एजेंसी मिली है। उसके दस्तावेजों की जांच की जा रही है। यदि इस एजेंसी के भी दस्तावेज पूरे नहीं हुए तो फिर से टेंडर आगे बढ़ाना पड़ सकता है।

शहर में पांच प्‍वाइंटों लगेगी नई ट्रैफिक लाइट

शहर में पांच प्वाइंटों पर नई ट्रैफिक लाइट लगाई जानी है। इसमें विश्वकर्मा चौक, ट्रैफिक पार्क चौक, कन्हैया साहिब चौक, पंचायत भवन व गुलाबनगर चौक पर ट्रैफिक लाइट लगाई जानी है। इसमें सबसे जरूरी विश्वकर्मा चौक की लाइट है।

यहां पर लगी लाइट काफी समय से खराब पड़ी है। जबकि यह सबसे महत्वपूर्ण प्वाइंट है, क्योंकि इसी चौक से लेकर उत्तर प्रदेश, रादौर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत व दिल्ली के लिए वाहन निकलते हैं। यहां पर ट्रैफिक का अधिक दबाव रहता है। इसके अलावा अन्य ट्रैफिक लाइटें भी खस्ताहाल हैं।

बैठक में लगातार उठ रहा मामला

सड़क सुरक्षा कमेटी की हर बैठक में खराब ट्रैफिक लाइटों का मुद्दा उठता है। पुलिस के साथ-साथ जिला परिवहन कार्यालय की ओर से भी यह मुद्दा कमेटी की बैठक में शामिल किया जाता है। हर बार एजेंसी के डिस्क्वालिफाई होने का तर्क अधिकारी देते रहे हैं। लगभग आठ माह से लाइटें दुरुस्त नहीं हो सकी। नई लाइटों की प्रक्रिया भी आगे नहीं बढ़ सकी। मार्च माह में फिर से सड़क सुरक्षा की बैठक प्रस्तावित है। इसमें इस बार भी ट्रैफिक लाइटों का मुद्दा उठेगा।

50 लाख रुपये की लागत से लगेगी ट्रैफिक लाइट

ट्रैफिक लाइटों को लगवाने का यह टेंडर लगभग 50 लाख रुपये का है। एजेंसी के डिस्क्वालिफाई होने के बाद नया टेंडर लगाने में समय लगता है। इसमें कम से एक माह का समय लग जाता है। दो बार टेंडर में आई एजेंसी डिस्क्वालिफाई हो गई। जिससे समय अधिक लग रहा है। अधिकारियों को शार्ट टर्म टेंडर लगाने का भी सुझाव दिया गया लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। हर बार अधिकारी टेंडर रिकाल करते हैं।

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