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जानिए- क्या होते हैं वायरस के नए वैरिएंट्स और आर वैल्यू से कैसे तय होती है संक्रामकता दर

महामारी के दूसरे दौर से जंग में हम सब इसी कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। शुरू में ही पता चल गया था कि दुनिया के कई हिस्सों में कोरोना वायरस अपना रंग-रूप बदल रहा है। अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि नए रूप में यह ज्यादा संक्रामक और घातक (इसकी पुष्टि नहीं) हो चुका है। यह भी समय से पता लग चुका था कि भारत में भी नए रूपों वाले वायरस से लोग संक्रमित हो चुके हैं। इतनी सारी जानकारी के बाद भी हम लोग उस स्तर की सावधानी नहीं बरत सकें जिसकी इन परिस्थितियों में जरूरत थी। आइए समझते हैं कि वायरस के नए वैरिएंट्स क्या होते हैं और ये किस प्रकार मूल से अलग होते हैं?

नए स्ट्रेन या वैरिएंट्स

वायरस में बदलाव की एक सहज प्रक्रिया होती है। खुद के अस्तित्व के लड़ाई के क्रम में यह अपने जेनेटिक तत्वों या शरीर में बदलाव करता रहता है। कोविड-19 का वायरस भी इससे अलहदा नहीं है। करीब डेढ़ साल पहले दुनिया के विज्ञानियों ने इस बात का पता लगा लिया था कि चीन से पैदा होने वाला यह वायरस तेजी के साथ रूप बदल रहा है। इस प्रक्रिया को म्युटेशन या उत्परिवर्तन कहते हैं। म्युटेशन अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है। दुनिया में इस वायरस के हजारों परिवर्तित रूपों का पता चल चुका है। वायरस के इसी बदले रूप को वैरिएंट्स या स्ट्रेन कहा जाता है। इनके ब्राजील, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका का स्ट्रेन दुनिया में नए सिरे से मामलों की वृद्धि के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हैं। इसी बीच भारत में एक डबल म्युटेशन (दोहरे बदलाव) की भी पुष्टि हुई है।

चिंता का विषय

वायरस के इन नए रूपों को लेकर दुनिया के वैज्ञानिक इसलिए चिंतित हैं क्योंकि इनसे संक्रमण के मामलों में विस्फोट हो सकता है। उनकी यह चिंता अब कई देशों में दूसरी, तीसरी और चौथी लहर के रूप में दिखने भी लगी है। अध्ययनों में यह बात तो सामने आई है कि वायरस के नए रूप मूल की तुलना में ज्यादा संक्रमक हैं लेकिन अमेरिकी संस्था सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार इस बात के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं कि वायरस के रूप बीमारी को ज्यादा गंभीर करने में सक्षम हैं। अगर सिर्फ ये तेजी से संक्रमण भी फैलाते हैं तो भी देशों के स्वास्थ्य ढ़ांचे चरमरा सकते हैं। डर का माहौल पैदा हो सकता है। अस्पताल में भर्ती कराने वाले लोगों की संख्या में तेज इजाफा हो सकता है। कमजोर इम्युनिटी वाले लोग अगर इसकी जद में आते हैं तो उनकी जिंदगी पर खतरा हो सकता है।

संक्रामक वायरस भी खतरनाक

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर एडम कुचारस्की ने एक अध्ययन में बताया कि कैसे ज्यादा संक्रामक वायरस भी ज्यादा घातक वायरस के मुकाबले अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हो सकता है। अध्ययन में एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना की गई जिसमें वायरस के तीनों रूपों में से प्रत्येक से दस हजार संक्रमण हो चुका है। इसके बाद इन रूपों से हर छह दिन में मौतें किस तरह बढ़ती हैं।

संक्रमण रफ्तार और क्षमता

सार्स- सीओवी-2 वायरस के ब्रिटिश वैरिएंट्स को लेकर शुरुआत में बात सामने आई कि यह मूल वायरस की तुलना में 70 फीसद ज्यादा संक्रामक है। इस संदर्भ में लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन ने अलग-अलग गणितीय मॉडल पर इसकी संक्रामकता को जांचने का काम किया। उनके अध्ययन में सामने आया कि यह मूल वायरस की तुलना में 56 फीसद अधिक संक्रामक है।

वायरस की आर वैल्यू

किसी वायरस का आर नंबर का मतलब होता है कि किसी संक्रमित व्यक्ति से कितने लोग संक्रमित हो रहे हैं हैं। इस वायरस का आर नंबर 0.4 से 0.7 के बीच आया। अगर किसी वायरस का यह नंबर एक या उससे अधिक है तो समझिए कि उससे संक्रमित व्यक्ति एक या उससे अधिक व्यक्तियों को संक्रमित कर रहा है। अगर किसी संक्रामक वायरस का आर नंबर एक से अधिक है तो खतरा ज्यादा गंभीर हो जाता है। एक तो वह खुद अधिक संख्या में नए लोगों को संक्रमित करेगा और उससे संक्रमित व्यक्ति भी अन्य को संक्रमित करेंगे।

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