उन्हें तब तक गोली चलाने का आदेश दिया गया था जब तक प्रदर्शनकारी की मौत न हो जाए
म्यांमार में 27 फरवरी को जो कुछ हुआ उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम ही होगी। इसी दिन सेना ने प्रदर्शनकारियों अंधाधुंध फायरिंग की थी जिसमें 38 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि ये सिलसिला आगे भी बंद नहीं हुआ और सैन्य शासक अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को इसी तरह से दबाने की कोशिश में लगे हैं। 27 फरवरी को सेना के जिन जवानों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था उनमें था पेंग भी शामिल थे। 27 वर्षीय इस जवान को म्यांमार के खंपेत में प्रदर्शनकारियों पर मशीन गन से गोलियां चलाने का आदेश दिया गया। लेकिन पेंग ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। अगले दिन सेना के अधिकारी ने उससे इस बारे में जवाब तलब किया और कहा कि यदि उसको ही गोली मार दी जाती। पेंग ने एक बार फिर से अपने उसी जवाब को दोहराते हुए गोली चलाने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही उसने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया।
इसके बाद शुरू हुआ तीन दिनों का थका देने वाला लंबा सफर। सेना से इस्तीफा देने के बाद पेंग को इस बात का डर सता रहा था कि उसके और उसके परिवार के साथ कुछ गलत हो सकता है। ये सोचकर उसने देश छोड़कर भारत के राज्य मिजोरम में आने का फैसला किया। ये सफर मुश्किल था। हर कदम पर सेना का खतरा था। भारत के बोर्डर में इस तरह से चोरी-छिपे दाखिल होना भी खतरे से खाली नहीं था। लेकिन उसके पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था। पेंग ने अपना ज्यादातर सफर रात के घुप अंधेरे में पूरा किया। रॉयटर्स से बात करते समय पेंग को ट्रांसलेटर की जरूरत पड़ी। रॉयटर्स ने उसका पुलिस और नेशनल आईकार्ड देखकर उसका नाम कंफर्म करा है। पेंग ने बताया कि उसके अलावा छह और जवानों ने भी 27 फरवरी को अपने अधिकारी के गोली चलाने के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि उसने उनका नाम नहीं बताया।
1 मार्च को म्यांमार पुलिस की तरफ से मिजोरम पुलिस को इस बारे में जो जानकारी दी गई पेंग की कहानी उससे मेल खाती है। रॉयटर्स के मुताबिक म्यांमार से तीन और पुलिस कांस्टेबल भी सीमा पार कर भारत में दाखिल हुए हैं। मिजोरम पुलिस ने भी चारों की जानकारी हासिल की है और ये जानना चाहा है कि उनके इस तरह से चोरी-छिपे भारतीय सीमा में दाखिल होने की क्या वजह रही है। मिजोरम पुलिस को दिए गए एक साझा बयान में इन्होंने बताया है कि सैन्य शासन के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था।
ऐसी सूरत में वो अपने ही लोगों को नहीं मार सकते थे। वो लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कह रहे थे। गौरतलब है कि म्यांमार की सेना के प्रमुख ने 1 फरवरी की देश की लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने या बल प्रयोग करने के सवाल पर सैन्य शासन का कहना है कि उन्होंने बेहद संयंम से काम लिया। प्रदर्शनकारियों को समझाने की भी पूरी कोशिश की गई, लेकिन बदले में उन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और सेना के जवानों पर हमला किया। रॉयटर्स के मुताबिक अपने अधिकारियों का आदेश न मानने के बाद देश छोड़कर भारत आने का ये पहला मामला है जिसको मीडिया में लाया गया है। जहां तक म्यांमार में हो रहे प्रदर्शनों की बात है तो असिसटेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स जो कि एक एडवोकेसी ग्रुप है के मुताबिक इनमें सेना के हाथों अब तक 60 लोग मारे जा चुके हैं और 1800 के करीब लोग हिरासत में लिए गए हैं। हालांकि रॉयटर्स ने इन लोगों की संख्याओं के बारे में कोई पुष्टि नहीं की है।
रॉयटर्स ने भारतीय पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा है कि मुताबिक म्यांमार में तख्तापलट की घटना के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद से करीब सौ पुलिसकर्मी अपने परिवार के साथ भारत में आ चुके हैं। इनमें से कुछ ने मिजोरम के चंपाई जिले में शरण ले रखी है। इनमें से तीन का इंटरव्यू रॉयटर्स ने किया है। ये तीनों ही म्यांमार पुलिस से जुड़े हुए थे। पेंग ने जो आईकार्ड दिखाया है उसमें लगी फोटो में वो म्यांमार पुलिस की वर्दी में दिखाई दे रहा है। हालांकि इस पर कोई तारीख दर्ज नहीं की गई है।
उसके मुताबिक नौ वर्ष पहले वो म्यांमार पुलिस में शामिल हुआ था। पेंग का ये भी कहना है कि म्यांमार के पुलिस कानून के मुताबिक प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए रबर की बुलेट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यदि किसी भी सूरत उनपर गोली चलानी ही पड़े तो वो घुटने से नीचे मारी जानी चाहिए, जिससे उसको रोका जा सके। पुलिस को जान लेने का अधिकार नहीं है। लेकिन उनके अधिकारी ने उन्हें प्रदर्शनकारियों पर तब तक गोली चलाने का आदेश दिया था जब तक वो मर न जाएं।
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