Uttarakhand

सत्ता के गलियारे से: तीन सीटों के तीन दर्जन दावेदार

 मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दिल्ली दौरे पर और भाजपा नेताओं की धड़कनें फिर बढऩे लगी हैं। सत्ता सुख के स्पर्श को लालायित नेता, जो विधायक नहीं हैं, वे तो पिछले एक साल से दिन गिन ही रहे हैं, इस बार विधायकों की इच्छा भी हिलोरें ले रही है।

चर्चा है कि इस दिल्ली दौरे में मंत्रिमंडल की उन तीन सीटों को लेकर कुछ फैसला हो सकता है, जो अब तक रिक्त हैं। इन तीन सीटों के लिए भाजपा के तीन दर्जन से ज्यादा विधायक दावेदार हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री धामी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने वाले हैं।

तीन दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने 40 मिनट प्रधानमंत्री से भेंट की। संकेत साफ हैं कि उत्तराखंड भाजपा में कुछ बड़ा और महत्वपूर्ण होने जा रहा है। अब लोकसभा चुनाव को एक वर्ष का ही समय शेष है, तो कहा जा सकता है कि उम्मीदें पालना कतई गलत नहीं होगा।

कुछ हो जाए, हम नहीं सुधरेंगे

वर्षभर समय से बजट के सदुपयोग का राग अलापा जाता है, मगर अंत में होता वही है, जो चला आ रहा है। इस बार भी उत्तराखंड ने वर्षों पुरानी परंपरा पर कदमताल की। गुजरे वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने और अंतिम दिनों पर ही बजट की भारी-भरकम धनराशि खर्च करने का दारोमदार रहा।

अकेले मार्च में पांच से छह हजार करोड़, तो अंतिम दो दिन में 1700 करोड़ का बजट खर्च किया गया। इतनी ताकत झोंकने के बाद वर्षभर में बजट खर्च की धनराशि 55 हजार करोड़ के आसपास पहुंची। बजट खर्च को लेकर विभागों का यह लापरवाह रवैया राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी ठीक नहीं हो पाया है।

बेहतर होता कि बजट खर्च की जो रफ्तार मार्च में दिखती है, वह पूरे वर्ष रहे तो चंद दिनों में बजट ठिकाने लगाने की ऐसी नौबत आएगी ही नहीं। यह तो तब होगा, जब नौकरशाही सुधरने को तैयार हो।

एक ही कक्षा, ऊब गए हरक

उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद, लगभग तीन दशक में यह पहला अवसर है जब हरक सिंह रावत विधायक तक नहीं हैं। इस दौरान हरक मंत्री रहे या फिर नेता प्रतिपक्ष। पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा से कांग्रेस में लौटे, लेकिन चुनाव मैदान में नहीं उतरे।

अब जाकर उन्होंने वह कारण सार्वजनिक किया कि क्यों उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। बकौल हरक, पिछले 30 वर्षों से सरकार के साथ या नेता प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करने का मौका मिला। यह ऐसा ही था कि लगातार एक ही कक्षा में बैठना।

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