दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास: वर्ल्ड चेस कप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं

भारत की युवा ग्रैंडमास्टर दिव्या देशमुख ने विश्व शतरंज में एक नया इतिहास रच दिया है। महज़ 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने FIDE महिला वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में जगह बनाकर न केवल अपने लिए बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण पैदा किया है। वे ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई हैं।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने के लिए दिव्या ने सेमीफाइनल में रूस की अनुभवी खिलाड़ी अलेक्जेंड्रा कोस्टेनियुक को बेहद कड़े मुकाबले में हराया। दोनों खिलाड़ियों के बीच खेल का स्तर इतना ऊँचा था कि मुकाबला टाईब्रेक तक गया, जहां दिव्या ने अपने आत्मविश्वास और रणनीति का शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की।
दिव्या की इस जीत को महिला सशक्तिकरण और भारतीय शतरंज के विकास के एक प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है। अब तक विश्व शतरंज की शीर्ष स्पर्धाओं में पुरुष खिलाड़ियों का दबदबा रहा है, लेकिन दिव्या ने इस धारणा को तोड़ते हुए साबित कर दिया है कि भारतीय महिलाएं भी वैश्विक मंच पर चमकने का दम रखती हैं।
नागपुर (महाराष्ट्र) की रहने वाली दिव्या ने महज 5 साल की उम्र में शतरंज खेलना शुरू कर दिया था। कम उम्र में ही उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते। वे पहले भी कई एशियाई और राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं, लेकिन FIDE वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचना उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर दिव्या की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए उन्हें बधाई दी। उन्होंने कहा,
“दिव्या देशमुख ने भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया है। यह न केवल शतरंज प्रेमियों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का क्षण है।”
विश्व शतरंज संघ (FIDE) के अध्यक्ष और भारत के कई दिग्गज खिलाड़ियों जैसे विश्वनाथन आनंद और कोनेरु हम्पी ने भी दिव्या को शुभकामनाएं दीं।
अब दिव्या का सामना फाइनल में चीन की वू झियाजी या जॉर्जिया की नाना द्जगनिद्जे से होगा। यह मुकाबला अगले सप्ताह मास्को में खेला जाएगा। यदि दिव्या फाइनल में जीत दर्ज करती हैं, तो वे वर्ल्ड चेस कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बन जाएंगी।
शतरंज विश्लेषकों का मानना है कि दिव्या देशमुख की यह जीत भारतीय शतरंज में एक “नया स्वर्ण युग” लेकर आ सकती है। इससे देश की युवा लड़कियों को खेलों, विशेष रूप से दिमागी खेलों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
दिव्या देशमुख की सफलता सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है पूरे देश के लिए। उन्होंने यह साबित कर दिया कि लगन, परिश्रम और आत्मविश्वास से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।
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