किसानों के लिए भाजपा के पास चुनावी वादों के सिवा कुछ भी नहीं
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा से लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि वर्ष 2016 में शुरू हुई फसल बीमा योजना के बावजूद 15 जिलों के किसान अभी भी बीमा के इंतजार में हैं। 31 लाख हेक्टेयर में फसल बर्बाद होने के बाद भी 8,348 करोड़ का क्लेम पेंडिंग है। भाजपा सरकार हर मोर्चे पर नाकामी साबित हुई है। किसानों के लिए इसके पास चुनावी वादों के सिवा कुछ भी नहीं है। कांग्रेस सरकार के बनते ही किसान हितैषी नीतियों को परिपक्वता मिलेगी और एमएसपी का कानूनी हक दिया जाएगा।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश में करीब आठ लाख किसान फसल बीमा करवाते है पर अभी तक सरकार सात जिलों के कलस्टर के लिए एक एजेंसी ही फाइनल कर पाई है। प्रदेश के शेष 15 जिलों का मामला हाई पॉवर परचेज कमेटी की बैठक में होना है बैठक कब होगी कोई पता नहीं है तब तक किसान टेंशन में ही रहेगा। किसान को एक ही बात का डर सता रहा है कि अगर इस बीच कोई बड़ी आपदा आई और फसले बरबाद हुई तो उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। सरकार की ओर से जो भी मुआवजा अगर मिला तो उससे तो फसलों की बिजाई का खर्च भी पूरा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि फसल बीमा के लिए पंजीकरण 31 जुलाई तक होता है
धान, बाजरा, मक्का, कपास, गेहूं, सरसों, चना, जौ, सूरजमुख और मूंग फसल बीमा में कवर होती है।
उन्होंने कहा कि सरकार फसल बीमा कंपनी के लिए दूसरी एजेंसियों पर निर्भर होती है जबकि सरकार को खुद की बीमा कंपनी बनानी चाहिए, ऐसा करने किसानों को ज्यादा लाभ होगा, एंजेसियों की मनमानी पर अंकुश लगेगा। सरकार को खुद ही बीमा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब तक किसान सड़क पर नहीं उतरते, तब तक बीमा कंपनी और सरकार उन्हें मुआवजा नहीं देती। जब मुआवजे की बारी आती है तो बीमा कंपनी कोई न कोई कमी निकाल देती है। उन्होंने कहा कि फसल बीमा योजना सिर्फ बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने का एक माध्यम है। इस व्यवस्था से किसान कंगाल होता जा रहा है और कंपनियां मालामाल हो रही हैं।
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सीयूईटी के नतीजों की घोषणा में देरी ने छात्र और अभिभावक दोनों परेशान
कुमारी सैलजा ने कहा कि सीयूईटी के नतीजों की घोषणा में देरी ने छात्रों और अभिभावकों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है। सरकार ने मई 2024 के मध्य में सीयूईटी परीक्षा आयोजित की थी और तब से छात्र बेसब्री से नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। मध्यम वर्गीय परिवारों की मुख्य चिंता छात्रों के लिए अपनी उच्च शिक्षा के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए उपलब्ध सीमित समय है। कई छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन परिणामों में देरी से उनका प्रवेश सुरक्षित करने की क्षमता बाधित हो रही है। नतीजतन, कई छात्र अनिच्छा से वैकल्पिक विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जैसे कि निजी कॉलेज या स्थानीय विश्वविद्यालय जो सीयूईटी स्कोर स्वीकार नहीं करते हैं। यह स्थिति न केवल छात्रों की शैक्षणिक योजनाओं को प्रभावित कर रही है, बल्कि परिवारों के लिए भावनात्मक संकट भी पैदा कर रही है।
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