दवाओं की कमी से बढ़ गया है खतरनाक बैक्टीरिया की चपेट में आने का जोखिम- डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट
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संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)ने कहा है कि कोरोना काल में दूसरे संक्रमणों को रोकने के नए उपचारों में कमी आ रही है। इसकी वजह से दुनिया के कुछ खास सबसे खतरनाक बैक्टीरिया की चपेट में आने का भी जोखिम पहले से अधिक हो गया है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट एंटीमाइक्रोबियल पाइपलाइन को जारी करते हुए यहां तक कहा है कि मौजूदा समय में जो 43 एंटीबायोक्टिस दवाएं बन रही हैं उनमें कोई भी दवा औषधि-प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुके 13 बक्टीरिया से बढ़ते खतरे का सामना करने में सक्षम नहीं है।
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संगठन की सहायक महानिदेश डॉक्टर हनान बालखी के मुताबिक नई प्रभावशाली एंटीबायोटिक्स दवाओं के विकास, उत्पादन और वितरण अवरोध की वजह से एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का प्रभाव काफी अधिक बढ़ रहा है। इस वजह से बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण का सही इलाज करने की हमारी क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसी स्थिति में बच्चों के अलावा उन लोगों को गरीबी में जीवन जीते हैं सबसे अधिक खतरा है। हालांकि एंअीबायोटिक दवाओं के लिये एंटीबॉडीज हासिल कर चुके संक्रमण दूसरों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 10 में से जिन 3 नवजातों को ब्लड इंफेक्शन होता है उनकी मौत केवल इसलिए हो जाती है क्योंकि उनके इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं एंटीबायोटिक होती हैं जो इस तरह की बीमारी में कारगर या असरदार नहीं रही हैं। इसी तरह से बैक्टीरियाई निमोनिया ने भी उपलब्ध दवाओं के लिये प्रतिरोधी क्षमता विकसित की है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का ये एक प्रमुख कारण बनती है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में उपलब्ध लगभग सभी एंटीबायोटिक्स दवा 1980 में विकसित की गई दवाओं के ही संशोधित रूप हैं। इन दवाओं पर हम सभी काफी निर्भर हैं। रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध वैश्विक समन्वय के निदेशक हेलेयेसस गेताहून ने कहा है कि मौजूदा महामारी से मिले अवसर का फायदा हमें नई व प्रभावशाली एंटीबायोटिक्स दवाओं की रिसर्च और उनके प्रोडेक्शन के रूप में उठाना चाहिए। इसके लिए निवेश किए जाने को भी उन्होंने जरूरी बताया है।
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