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भारत-अमेरिका व्यापार में फिर बढ़ा तनाव, अमेरिका ने 25% टैरिफ लगाया – आगे और बढ़ोतरी की चेतावनी

6 अगस्त 2025: भारत और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक रिश्तों में एक बार फिर तनाव गहराता जा रहा है। अमेरिका ने भारत से होने वाले कई प्रमुख निर्यात उत्पादों पर 25% तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लागू कर दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौता अंतिम चरण में पहुंचकर विफल हो गया।

तेल आयात नीति बनी विवाद का कारण
जानकारों के अनुसार, इस व्यापारिक दरार की सबसे बड़ी वजह भारत की तेल आयात नीति है, खासतौर पर रूस से लगातार बढ़ते आयात को लेकर अमेरिका की नाराज़गी। अमेरिका का मानना है कि भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की भारी खरीद वैश्विक प्रतिबंधों को कमजोर करती है। वहीं भारत ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा ज़रूरतों के मद्देनज़र यह नीति स्वतंत्र और घरेलू हितों पर आधारित है।
अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “भारत की नीतियां निष्पक्ष बाज़ार व्यवस्था और साझेदार देशों के हितों के विरुद्ध हैं। अगर भारत अपनी रणनीति में बदलाव नहीं करता है, तो टैरिफ की दरें और भी बढ़ाई जा सकती हैं।” अमेरिका के इस कदम से भारत के कपड़ा, दवा, मशीनरी और कृषि उत्पादों के निर्यात पर असर पड़ने की आशंका है।
भारत सरकार ने अमेरिका के निर्णय पर खेद जताते हुए कहा कि यह कदम दोनों देशों के रणनीतिक साझेदारी के मूल भावना के विपरीत है। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत अमेरिका के इस एकतरफा निर्णय के खिलाफ WTO में औपचारिक शिकायत दर्ज करने पर विचार कर रहा है।


अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह टकराव दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक व्यापारिक साझेदारी पर बुरा असर डाल सकता है। भारत-अमेरिका व्यापार वर्तमान में लगभग 175 बिलियन डॉलर के स्तर पर है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी ज़्यादा है।
अब निगाहें दोनों देशों के नेतृत्व पर हैं कि वे इस बढ़ते तनाव को कूटनीतिक संवाद से कैसे सुलझाते हैं। आने वाले हफ्तों में जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर इस मुद्दे पर चर्चा की संभावना है।

  • भारत अमेरिका का 9वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
  • 2024 में भी अमेरिका ने भारत के स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ बढ़ाए थे।
  • रूस से भारत प्रतिदिन लगभग 1.5 मिलियन बैरल तेल आयात कर रहा है।


यह विवाद न सिर्फ भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी अनिश्चितता का नया दौर ला सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देश इस आर्थिक टकराव को कैसे संभालते हैं — बातचीत के ज़रिए या और कड़े कदमों के साथ।

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