Uttar Pradesh

लखनऊ विवि में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती पर हाईकोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक, चयन प्रक्रिया रहेगी जारी

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के 180 पदों पर चल रही चयन प्रक्रिया को अंतिम रूप देने पर अंतरिम रोक लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने चयन प्रक्रिया को जारी रखने की छूट दी है। साथ ही विश्वविद्यालय केा ताकीद किया है कि वह एंथ्रोपोलाजी विभाग में याची के लिए एक पद खाली रखेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार व विश्वविद्यालय को इस मामले में अपना जवाब पेश करने का समय देते हुए अगली सुनवाई 10 मार्च को नियत की है। यह आदेश जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने डा. प्रीति सिंह की याचिका पर पारित किया।

याची ने विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के 180 पदों पर भर्ती सम्बंधी 16 सितंबर 2020 के विज्ञापन में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के चार पदों पर नियुक्ति को चुनौती दी है। याची के अधिवक्ता अनुज कुदूसिया का कहना था कि विज्ञापन के क्रम में शुरू की गई चयन प्रक्रिया में विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर आरक्षण लागू किया गया है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि विषय को इकाई माना जायेगा। विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञापन में आरक्षण संबधी जो मानक लिए गए हैं, वह जो विधि सम्मत नहीं है। एंथ्रोपोलॉजी विभाग के लिए विज्ञापित सहायक प्रोफेसर के चारो पदों पर आरक्षण लागू कर दिया गया है, जबकि याची सामान्य जाति की है और उक्त पद पर चयनित होने के लिए अर्ह होने के बावजूद आवेदन करने से वंचित रह गई है।

याचिका का विरोध करते हुए विश्वविद्यालय के अधिवक्ता अनुराग सिंह का कहना था कि सात मार्च 2019 को केंद्र सरकार द्वारा 10 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया। लिहाजा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार हो गई। कहा गया कि यूपी लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 इस मामले में लागू नहीं होता। इसलिए विषय वार आरक्षण पालिसी नहीं अपनाई गई, बल्कि विश्वविद्यालय को एक इकाई के तौर पर मानते हुए आरक्षण लागू किया गया। जस्टिस अली ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि यह बिंदु विचारणीय है कि क्या राज्य सरकार एक शासनादेश लाकर केंद्र सरकार द्वारा पारित एक अधिनियम के प्रविधान से यूपी लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 के प्रविधानों को समाप्त कर सकती है। 

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